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मध्यप्रदेश के शासकीय कैलेंडर वर्ष 2018 में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का चित्र लगाया जाए*
Ⓜ *मुकेश जैन ढाना* Ⓜ
सागर। *मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र भेजकर श्री दिगंबर जैन पंचायत सभा सागर के कार्यकारी अध्यक्ष मुकेश जैन ढाना ने मांग की है कि वर्ष 2018 के शासकीय कैलेंडर में संत शिरोमणि जैनाचार्य विद्यासागर जी महाराज का चित्र प्रकाशित किया जाए।*
*श्री दिगंबर जैन पंचायत सभा सागर के कार्यकारी अध्यक्ष मुकेश जैन ढाना ने मुख्यमंत्री से अपील की है कि 28 जून 2017 से 17 जुलाई 2018 तक आचार्य श्री का 50वां दीक्षा दिवस संयम स्वर्ण जयंती महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। 17 जुलाई 2018 को आचार्य श्री के दीक्षा के 50 वर्ष पूर्ण हो जाएंगे।*
*चूंकि मध्यप्रदेश के शासकीय कैलेंडर में हर वर्ष विभिन्न स्थानों और धार्मिक स्थलों के चित्र प्रकाशित होते हैं। उल्लेखनीय है कि इस सदी के महान संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद से लगभग 1 हजार से अधिक मुनि महाराज, आर्यिका माताजी और ब्रम्हचारी भैया, बहिनें दीक्षित हैं और लगातार अलग अलग क्षेत्रों में धर्म की प्रभावना कर रहे हैं।* *आचार्यश्री अहिंसा के प्रति कृत संकल्पित, हथकरधा के माध्यम से स्वरोजगार का अलख जगाने वाले, मूक पशुओं की रक्षा के लिये आचार्य श्री के आशीर्वाद से पूरे देश में 130 गौशालाएं संचालित है। तीर्थ रक्षा के अंतर्गत लाल पत्थर से एकदर्जन से अधिक स्थानों पर विशाल मंदिरों का निर्माण कार्य चल रहा है। ये मंदिर 1500 से 2000 वर्ष तक सुरक्षित रहेंगे और बालिकाओं को संस्कारित शिक्षा देने हेतु मध्यप्रदेश में जबलपुर, महाराष्ट्र में रामटेक और छत्तीसगढ में डोंगरगढ में प्रतिभास्थली के नाम से स्कूली शिक्षा का कार्य लगातार चल रहा है। संस्कारों की इस बगिया में शिक्षा पाकर बालिकाएं शिक्षित होकर उच्च और प्रशासनिक पदों पर चयनित हो रहीं है*।
*वर्ष 2018 के शासकीय कैलेंडर में जुलाई माह के पेज पर दिगंबर मानसरोवर के राजहंस महामनीषी आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का चित्र और किसी एक तीर्थ क्षेत्र का चित्र प्रकाशित किया जाए। उल्लेखनीय है कि पिछले 2-3 वर्षों में देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री कई राज्यों के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री और अनेकों महान हस्तियों ने दर्शन लाभ कर आशीर्वाद लिया है*
Ⓜ *मुकेश जैन ढाना* Ⓜ
*एमड़ी न्यूज़ सागर*
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today pravachan जीवन का निर्वाह नहीं निर्माण करो । -आचार्य श्री विद्यासागर जी #AcharyaVidyasagar
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा कि वृक्ष होता है जिसकी शाखाये होती है उसमें से पहले कली खिलती है फिर फूल खिलता है फिर उसमें फल आता है । यह एक स्वतः होने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया है । इसी प्रकार यह प्रतिभास्थली है जिसमे ये छोटी - छोटी बच्चियां पढ़ाई के साथ - साथ संस्कार भी ग्रहण कर रही है । आप लोगो की संख्या अभी कम है आप संख्या की चिंता मत करो आप अपना काम ईमानदारी से मन लगाकर करो तो आपको सफलता अवश्य ही मिलेगी और आप के नये सखा मतलब आपके नये मित्र भी यहाँ आयेंगे और आपकी संख्या भी बढ़ जायेगी। यहाँ इन बच्चों की पढ़ाई और संस्कार के लिए समाज का सहयोग मिलना आवश्यक है और इनकी शिक्षिकाएं भी अपने कर्तव्यों का पालन बहुत अच्छे से कर रही है । यहाँ पैसों का उतना महत्व नहीं है। आप लोग कहते है न की पैसा तो हाँथ का मैल है इसे निर्मल करने का इससे अच्छा और कोई उपाय नहीं है । समाज को इसके लिए हमेशा उत्सुक रहना चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को अपने सामर्थ्य के अनुसार यहाँ अपने पैसों का सदुपयोग करना चाहिये। यहाँ बच्चों का निर्वाह नहीं निर्माण हो रहा है जो भविष्य में इसे और आगे पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ाते रहेंगे । आप लोगो का प्रयास सराहनीय है और आगे भी आप लोग ऐसा ही सहयोग इन बच्चों को देंगे जिससे यह कार्य आगे चलता रहेगा व बढ़ता रहेगा । यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।
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#भगवान_स्वरूप #समवसरन तीर्थंकर भगवान हमेशा निःशस्त्र और निर्वस्त्र ही रहते हैं, फिर भी वे निर्भय रहते हैं, क्योकि उनके आसपास के 2500 किलोमीटर डायमीटर के क्षेत्र में रहने वाले सभी जीवों के किसी भी अन्य जीव को भी मारने के भाव ही उपजते नहीं हैं.
जब भगवान समवशरण में विराजमान होते हैं, तब चारों दिशाओं से 12 योजन या लगभग 150 किलोमीटर पहले से ही तीर्थंकर भगवान के लोगों को दर्शन होने लगते हैं. तीर्थंकर भगवान समवशरण में केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद बोलते नहीं हैं. फिर भी उनके शरीर के माध्यम से ॐ की ध्वनि सुनाई देती है और उसमें पूछने वाले सभी मनुष्य, पशु-पक्षी आदि तिर्यंच और स्वर्ग के देवों के सभी प्रश्नों के उत्तर उनकी अपनी-अपनी 718 तरह की भाषाओं में मिल जाते हैं. हमको भी सभी प्रश्नों के उत्तर हमारी अपनी ही भाषा में मिल जाते हैं. इसी को भगवान का उपदेश कहा जाता है.
जब हम समवशरण में जाते हैं, तब हमको भगवान के पीछे के भामंडल में हमारे तीन पूर्व के भव, एक वर्तमान का भव और तीन आगे आने वाले भव; इस तरह कुल सात भव दिखते हैं. साथ ही हमारे सभी प्रश्नों के उत्तर भी मिल जाते हैं. इस तरह हम वहां से पूर्ण संतुष्ट होकर ही बाहर आते हैं. अधिकांश बार तो वहां पर हम सभी भगवान के इस अतिशय या चमत्कार को देखने और अपने भविष्य को जानने के लिए ही गये थे. यह हमारे देश में जो सात जन्मों का बंधन कहा जाता है, वह भी चूँकि भगवान के समवशरण में हर एक व्यक्ति को उसके सात जन्म दिखते हैं, इसलिए यह कथन प्रचलित हो गया है कि सात जन्मों का बंधन होता है. इस तरह तीर्थंकर भगवान सभी जीवों को उनके सच्चे धर्म से, सात्विक वृत्तियों से उनका परिचय करवाते रहते हैं.
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