12.05.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 12.05.2018
Updated: 14.05.2018

News in Hindi

Gem Quotation by Muni PranmyaSagar Ji

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What is so beautiful is Acharya Vidyasagarji's hand positions. To the untrained eye, one may feel this is simply blessings. It is deeper than that, the left hand absorbs the energies of "space". The right hand sends out the energy in the form of "metta bhavna". Just as a regulator transfers the electricity. The regulator, in this case, is Vidyasagarji (his body is the regulator, his "being" is the intelligence that chooses that - for him is now a 'choiceless choice").

He looks down, not out of humility, but out of the realization of the futility of his ego. He (ego self) is no thing. But He (as choice with such deep strength of dedication to a path) is the distinction "everything / nothing" sending his prayers for the next stage upliftment of the soul. He sees no difference between titles and positions, but recognizes the soul's journey. #ThisIsPower #ThisIsSurrender

-Parth Salva, USA

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#सल्लेखना --आचार्यश्री वर्द्धमानसागर जी महाराज(दक्षिण) के निर्यापकाचार्यत्व में पूज्य महामुनि श्री संयमसागर जी मुनि महाराज (93 वर्ष) की यम सल्लेखना चल रही है 6 दिन से मुनिश्री ने जल के भी आजीवन त्याग किए है आज तो चटाई के भी त्याग करके मिट्टी में बैठकर सल्लेखना शुरु की है ऐसे त्यागी मुनि महाराज की सल्लेखना निर्विघ्न सम्पन्न होवे, मुनिसंघ बेलगाँव में मिरज के पास चिकोड्डी तालुका कोथली गांव के देशभूषण आश्रम(कर्नाटक) में विराजमान है

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*स्वस्तिक क्या? क्यों? कैसे?

स्वस्तिक अत्यंत मांगलिक एवं गूढ़ अर्थ रखने वाली मंत्र या आकृति है।जिसे हम हर मांगलिक कार्यक्रम चाहे वह लौकिक हो या धार्मिक अवश्य बनाते हैं। इसको बनाने का एक क्रम है।सबसे पहले इसके मूल में दो दण्ड (। --) इनमें से खड़ी रेखा जन्म का प्रतीक है,क्योंकि जन्म नीचे से ऊपर की ओर होता है। इसलिये इसे हमेशा नीचे से ऊपर की ओर ही खींचना चाहिये।और आड़ी रेखा मरण का प्रतीक है, क्योंकि मृत्यु के समय व्यक्ति इसी अवस्था में होता है।इसलिये पहले खड़ी रेखा फिर आड़ी रेखा ही खींचना चाहिये,क्योंकि पहले जनम और फिर मरण होता है।

इसके बाद इनसे जुड़ी चार छोटी रेखा चारों गतियों की प्रतीक है।और फिर इन चारों छोटी रेखाओं के साथ जुड़ी ऊर्ध्वमुखी रेखाचिह्न चारों गतियों के परिभ्रमण से मुक्ति के सूचक है।इन्हें जरूर बनाना चाहिये,क्यों कि हम चारों गतियों के दुखों से मुक्ति पाना चाहते हैं।यही हमारा अंतिम लक्ष्य है।
इसके बाद हम चारों खानों में बिन्दु बनाते हैं।ये वास्तव में बिन्दु नहीं है कूट अंक है,जो इस प्रकार लिखे जाते हैं --
पहले खाने में ५,फिर उसके बराबर में ४ फिर नीचे २४,फिर उसके बराबर में ३।
इनमें से ५ अंक पंचपरमेष्ठी का सूचक है, ४ अंक चारों अनुयोगों का सूचक है,२४ अंक चौबीस तीर्थंकरों के सूचक है,और ३ अंक रत्नत्रय का सूचक है।
स्थापना (ठोने)में स्वस्तिक के ऊपर तीन बिन्दु भी बनाते हैं,जो द्रव्य कर्म,भावकर्म और नोकर्म के प्रतीक है।और उसके ऊपर अर्धचन्द्राकार बनाते हैं,जो सिद्ध शिला का प्रतीक है।

पंचपरमेष्ठी (५) और चौबीसों तीर्थंकरों (२४) के बताये मार्ग का अनुसरण करते हुये चारों अनुयोगों (४) के माध्यम से अपने आत्मस्वरूप को समझकर व स्वरूप की आराधना करते हुये रत्नत्रय (३) प्राप्त करके, द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म (३बिन्दु) को क्षय करते हुये सिद्धशिला को प्राप्त करने का सुंदर संदेश इस स्वस्तिक से हमें प्राप्त होता है।
*🔴जैनम् जयतु शासनम् वंदे श्री वीरशासनम्🔴*

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“सम्यक्काय कषाय लेखना - सल्लेखना "- सम्यक् प्रकार से शरीर और कषायों को कृष करने का नाम सल्लेखना है। शरीर के पोषण से कषायों में वृद्धि होती है इसलिए शरीर का पोषण हमारे लिए अभिशाप सिद्ध हो जाता है, क्योंकि इससे कर्मों का बंध जारी रहता है रुकता नहीं है। उसी प्रकार यदि कषायों के वशीभूत होकर शरीर को तपाया जाता है तो भी वह हमें और अभिशाप सिद्ध होता है क्योंकि कषाय के माध्यम से बन्ध जारी रहता है। इसी बात को समझाते हुए आचार्य महाराज ने यह कहा कि सल्लेखना मत्यु के समय ही होती हो ऐसा नहीं है, किन्तु सल्लेखना प्रति समय भी चल सकती है क्योंकि सल्लेखना का अर्थ है- काय के प्रति निरीहता। सल्लेखना में मात्र शरीर को ही क्षीण नहीं किया जाता, बल्कि कषायों को भी क्षीण किया जाता है। जिस प्रकार वृक्ष की ऊपरी वृद्धि करने के लिए नीचे की हरी-भरी पत्ती की कटिंग कर दी जाती है उसी प्रकार से व्रतों की वृद्धि करने के लिए शरीर के प्रति निरीहता होना और कषायों का कृष् होना आवश्यक है।

How are you old? तुम कितने पुराने हो गये हो। यह मुहावरा अपने आप में बहुत मायना रखता है। मत्यु महोत्सव को याद कराता है। आचार्य महाराज हम सभी को यही शिक्षा दे रहे हैं कि प्रत्येक साधक, धर्मात्मा को प्रतिक्षण कषायों को कम करते जाना चाहिए। आयु का कोई भरोसा नहीं है इसलिए आज एवं अभी आत्मकल्याण में प्रवृत्त हो जाना चाहिए। धन्य हैं, हमारे गुरूवर जो स्वयं कषायों को दिन-प्रतिदिन कृष् करते जा रहे हैं एवं हम सभी साधकों को भी यही उपदेश दे रहे हैं

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A REQUEST... आप भारत के किसी भी कोने में घूमने /पिकनिक मनाने जाए तो वहा के जैन मंदिर में जरुर जाए जैसे शिमला, मसूरी, बैंगलोर, चेन्नई, गोवा, नैनीताल, म्य्सुर, मुंबई, दार्जलिंग, माउन्टआबू, मनाली, उटी या कोई भी सब जगह अपने जैन मंदिर है और वहा पर धर्मंशाला भी है तो आप रुक भी सकते है... pls share it maximum. अगर आपको किसी स्थान के दिगंबर जैन मंदिर की जानकारी चाहिए तो आप यहाँ कमेंट करके भी पुच सकते है! thankew 🙂

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