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कल का दिन ललितपुर के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाने वाला दिन होगा क्योंकि कल ललितपुर के युवा नेता #गुड्डू #राजा के नेतृत्व में एक विशाल वाहन रैली जिसमे लगभग 400 चार पहिया वाहन एक साथ कतारबद्ध चलते हुए पपौरा जी पहुचेंगे जहाँ वर्तमान के वर्धमान आचार्य श्रेस्ठ विद्यासागर जी महाराज की चरण वंदना करते हुए उनके ललितपुर आने भावना को भाते हुए निवेदन करेंगे गुरुवर निहारो ललितपुर पधारो
रैली की प्रमुख विशेषता यह होगी कि प्रत्येक वाहन अपनी इक्क्षा और समर्पण से सभी धर्म और जाति के लोगो द्वारा एकत्रित हुए है जो स्वयं गुरुदेव की ललितपुर आने की राह देख रहे है और पलक पावड़े बिछाये प्रतीक्षारत है
गुरुवर के चरणों मे नमन
मुनिवर के चरणों मे नमन
तूने खूब दिया भगवान तेरा बहुत बड़ा अहसान
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कोई कहे वृक्ष पहले आया बीज? बीज कहे मेरे कारण वृक्ष आया तो वृक्ष कहता मेरे कारण बीज आता! ये तो अनादि हैं.. चलता आया हैं क्रम.. -आचार्य श्री विद्यासागर जी @ #पपोरा
इसका कोई ना, करता हरता.. अमिट अनादि हैं! जीव रु पुदग़ल कर्म उपाधि हैं..
Great Initiative #share please 🙏🙂 #ShikharJi
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___________एक समय की बात है जब हमारे आचार्य भगवन के पास एक लड़का आया और बोला आचार्य श्री में *IAS के लिए बहुत मेहनत कर रहा हु मेरा हर बार रिज़ल्ट्स अच्छा आता है पर मेरा चयन नही होता में यह किताबे लाया हूं आप चाहे तो कही से भी प्रश्न पूछ लीजिये मुझे सब याद है तो आचार्य श्री जी ने उस लड़के की किताब से कुछ प्रश्न पूछे तो उसने सारे जबाब सही दिए तो आचार्यश्री ने कहा तुमको तो सब याद है अच्छा एक बात बताओ आप मन्दिर जाते हो, अभिषेक करते हो उस युवक ने कहा कि आचार्य श्री में पढ़ाई के कारण नही जा पाता तो आचार्य महराज बताया प्रतिदिन मंदिर जाओ अभिषेक पूजन करो उस युवक ने बैसा ही किया और अगले test ओर intreview में वो सेलेक्ट हो गया उसके बाद जब बो आचार्यश्री जी के पास दर्शन करने गया और बोला आचर्य श्री जी मेरा चयन हो गया तो आचर्य श्री ने कहा तुम मेहनत तो कर रहे थे पर तुम्हरा पुरुषार्थ ओर भाग्य साथ नही दे रहा था पर *जैसे ही तुमने मंदिर में भगवान का अभिषेक पूजन किया तो आपका पूरूषार्थ उदय में आ गया और आपका काम बन गया*
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आज 95 Year के महतपस्वी मुनि संयमसागर जी की समाधि हो गयी! #ओम्_शांति
feel it ❤️ जिनेंद्र भगवंता.. आदिनाथ अरिहंता.. ❤️ मिथ्यात्व बिरथेने.. सम्यक् दर्शन विरचेने.. [ मतलब मिथ्यात्व छोड़ो.. सम्यक को प्राप्त करो ] 🙏 सुने कन्नड़ भाषा में 95 Year के मुनि संयमसागर जी की मधुर आवाज़ में.. साथ में हैं आचार्यविद्यासागर जी के शिष्य.. जो इस स्तोत्र को सुन हर्षित हो रहेहैं:)) स्तुति का अर्थ हमें समझ नहीं आया पर सुन बहुत ही शांति मिली ❤️❤️😇 #share करना ना भूले
पिछले 2 दिनों से मीडिया हो या WhatsApp पूरे दिन बाबाओं को लेकर समाचार और चुटकुले चल रहे हैं ।
मेरा ऐसा मानना है कि जिस ने भी कानून का उल्लंघन किया है वो कोई भी हो, उसे भारत की न्याय व्यवस्था कड़े से कड़ा दंड देगी
लेकिन जो रुख हम सब लोगों ने अपनाया है उसे ऐसा ही माहौल बनने लगा जैसे कि निर्भया रेप कांड के बाद लग रहा था कि,देश का हर पुरुष बलात्कारी है, उसी तरह का माहौल आज बनाया जा रहा है जैसे देश का हर साधु संत भ्रष्ट आचरण का है । इस कठिन दौर में मेरा आप सभी से निवेदन है कि एक बार आचार्य गुरुवर विद्यासागर महाराज की क्रियाओं, कार्यो पर जरुर ध्यान दें तब आप अपनी विचारधारा को बदलने मजबूर हो जाएंगे कि हर साधु संत वैसा नहीं है जैसा आज मीडिया और WhatsApp के कुछ ज्ञानी लोग माहौल बना रहे हैं
,🙏 जैन आचार्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज बाल ब्रह्मचारी हैं,आ हिंदी भाषी सुदूर कर्नाटक के सडलगा ग्राम में जन्म हुआ था, आचार्य श्री ने पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए जैन मुनि की दीक्षा ली, आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज से आचार्य पद प्राप्त किया, इस वर्ष आचार्य श्री के मुनि दीक्षा लिए 50 वर्ष हो चुके हैं, इन 50 वर्षों में आचार्य गुरुवर ने पाँच सौ से ज्यादा मुनि एवं आर्यका दीक्षा दी है, 2000 से ज्यादा ब्रम्हचारी भाई बहिन दीक्षा के पहिले कठिन जीवन और संयम का पालन कर रहे है,
सभी जैन मुनि इसी तरह कठिन जीवन चर्या का पालन कर रहे हैं, जैन मुनि की चर्या और जीवन चरित्र बहुत कठिन है जैन मुनि पूर्णता दिगंबर अवस्था में रहते है, दिगम्बर यानी कुछ भीम छुपा नही, न शरीर, ना वैभव, न धन और ज्ञान भी सब के लिए खुला है, जैन मुनि पैदल चलते हैं बिना किसी जूते चप्पल को पहने, जैन मुनि 24 घंटे में एक बार आहार ग्रहण करते हैं आहार ग्रहण करने की क्रिया भी बहुत कठिन होती है, भोजन के छः रस होते हैं दूध दही घी तेल शक्कर और नमक यही भोजन को स्वादिष्ट बनाते हैं, अनेक जैन मुनि 6 रसों में से अनेक रसों का त्याग किये रहते है, अपनी उंगलियों और हथेलियों को पात्र बनाकर भोजन ग्रहण करते हैं, किसी तरह की कोई वस्तु हाथ पर लेकर भोजन ग्रहण नहीं करते भोजन करते समय पूर्ण शुद्धता का पालन किया जाता है किसी भी अशुद्धि की दशा में उसी क्षण भोजन समाप्त कर दिया जाता है उसके बाद जल भी ग्रहण नहीं करते, कितनी भी गर्मी हो, सर्दी हो भोजन और जल सिर्फ एक बार ही ग्रहण किया जाता है, जैन मुनि भोजन अपने उधर पोषण के लिए नहीं बल्की सिर्फ शरीर चलाने के लिए जितना आवश्यक हो उतना ही ग्रहण करते हैं एक बात का और ध्यान रखा जाता है कि इतना ही भोजन ग्रहण किया जाए ताकि डकार आने पर भोजन मुंह में ना आ जाय।
दिगंबर अवस्था में रहने वाले मुनि किसी भी मौसम में पंखा, AC,हीटर, कूलर आदि का उपयोग नहीं करते, ना ही सोने के लिए किसी भी तरह के वस्त्र या बिस्तर का उपयोग करते उपयोग करते है, चटाई या लकड़ी पर एक करवट भोर के पूर्व तक विश्राम करते हैं, और तत्पश्चात साधना में लीन हो जाते हैं
स्त्री स्पर्श कभी भी नहीं होता और यदि भीड़ या किसी धोखे से किसी स्त्री का स्पर्श हो जाए तो वह स्वयं प्राश्चित करते हैं, यह देश के सभी जैन साधुओं की चर्या है
मैं एक बार पुनः आपको आचार्य श्री के संयम और ज्ञान की बात बताता हूं आचार्यश्री अनेक वर्षों से घी शक्कर नमक दही तेल आदि का पूर्ण त्याग किए हैं, ड्राई फ्रूट्स आदि भी ग्रहण नहीं करते आचार्य श्री का कोई ट्रस्ट नहीं है ना ही कोई बैंक अकाउंट है ना ही कोई समिति है ना ही कोई आश्रम है ना कोई बंगला है ना कोई गाड़ी है उनके पास एक मोर पंख की पिच्छी है और एक कमंडल है जिसका हर वर्ष चातुर्मास के पश्चात वह त्याग कर देते हैं आचार्य श्री ना तो कोई चमत्कार करते हैं ना ही कोई इलाज ।
बात करते है आपके मन, आपकी आत्मा की शुद्धि की, आचार्य श्री कभी भी किसी भी कार्य को करने के लिए नहीं कहते लेकिन उनकी भावना मात्र से ही वहां के लोग जनसेवा के हितार्थ कार्य प्रारंभ कर देते हैं, इस हेतु आचार्य श्री के कोई निर्देश नहीं होती बस प्रवचन के दौरान यह भावनाएं होती है, उदाहरण के लिए यह कहा गौ रक्षा की जाए जबलपुर में दयोदय तरथ आज 1500 मृतप्राय गायों को पलता है पूरे देश मे इसी तरह की सैकड़ो गौशालाएं बीमार लाखो गयो को आश्रय दे रही है, बेटियों का स्कूल है जिसमे आधुनिक शिक्चा संस्कारो के साथ दी जा रही है, आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दर्शन के लिए पूरी दुनिया से श्रद्धालु आते हैं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति आते हैं लेकिन उनका आगमन और दर्शन ठीक वैसे ही होता है जैसे आम व्यक्ति का हो क्योंकि आचार्यश्री का कोई दरबार नहीं है आचार्य श्री के दर्शन पूरी दुनिया के लिए सुलभ है ।
आचार्य श्री नंगे पैर हर मौसम में सैकड़ों किलोमीटर की हर प्रदेश में हर शहर में यात्राएं की है क्योंकि उनका कोई एक ठिकाना तो है नहीं वह कब जाएंगे कहां जाएंगे कहां रुकेंगे कोई नहीं जानता, लाखों श्रद्धालु जो हर धर्म से है आचार्य श्री के भक्त लेकिन अनुशासन देखते बनता है ।
🙏🙏🙏आचार्य श्री के भक्त अरबपति है जो जन सेवा के कार्यों में करोड़ो रुपए दान देते है, बिना किसी नाम के और बिना किसी लाभ की भावना के, आहिंदी भाषी आचार्य श्री 8 भाषाओं के ज्ञाता है आचार्य श्री के द्वारा लिखित मूक माटी पर अभी तक 100 से ज्यादा शोध किए गए हैं और किए जा रहे है,
कहा जा सकता है कि मैंने यह जैन मुनियो को महिमा मंडित करने के लिए नही लिखा है, लेकिन मेरा निर्विकार उद्देश्य कि देश की सभी साधु संतों को वे किसी भी धर्म संप्रदाय के हो, शंका की नज़र से देखा जा रहा है, मेरा सिर्फ उद्देश्य है संत समाज मे कुछ बुरे, पाखण्डी है, लेकिन सभी संत, साधु एक से नही है, जो बुरे है उनकी शिकायत की जानी चाहिए दंड दिलवाए जाना चाहिए, लेकिन सभी को मजाक के पात्र न बनाये, अभी कुछ हुआ भी नही लेकिन लोग अभी से बाबा रामदेव को जेल भेजने का मजाक बना रहे है, आखिर क्यों??
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गिरनार पर्वत पर कहा कहा दर्शन हैं List...
नेमिनाथ स्वामी ने जिस टोंक से मोक्ष प्राप्त किया वो पाचवी टोंक है, भगवान के प्रथम गणधर का नाम 'दत्त' था, तथा वे काफी समय नेमिनाथ भगवान् के साथ यहाँ गिरनार पर रहे, इसी गिरनार को अपने तीन-तीन कल्यानको से पवित्र किया, चरण चिन्ह पूजने की परंपरा जैन धर्मं के अन्यथा कही नहीं मिलती, जब समन्तभद्र स्वामी इस गिरनार पर आये तो इसकी महिमा गाये बिना रह ना सके, जब आचार्य कुन्द कुन्द स्वामी इस पर्वत आये तो खूब ध्यान लगाए और देवी अम्बिका को बुला आदि दिगंबर कहलवाए, इसी पर्वत पर आचार्य धरसेन स्वामी ने पुष्पदंत महाराज और भूतबली महाराज को बचा हुआ दुर्लभ जिनवाणी का ज्ञान दिया जिसके बाद षतखंडागम ग्रन्थ की रचना की जो की 2,000 वर्ष से भी प्राचीन तथा वर्तमान मूल ग्रन्थ है!
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प्रश्न:- #दिगम्बर_साधुओ के बारे में उनकी नग्नता को लेकर कई भ्रांतियाँ है। एक तो यह कि भाई समाज में कोई तो नग्न नहीं रहता है, फिर यह शख्स नग्न क्यों रहता है? इसे नग्न रहने का क्या अधिकार है? जैन तो जानते हैं कि यह एक परंपरा है किंतु इस सिलसिले में जैनो के अलावा दूसरों को क्या उत्तर दे?
उत्तर:- #दिगंबर_साधु को देखकर सभी को कम से कम यह विचार अवश्य करना चाहिए कि इनके नग्न रहने का क्या कारण है क्या इनके पास वस्त्रों का अभाव है या ये विक्षिप्त है? क्या नग्नता इनकी मजबूरी है या ये इस तरह नग्न रहकर हमें अल्पतम लेकर अधिकतम लौटाने और अनासक्त होकर जीवन जीने का संदेश दे रहे हैं। वास्तव में दिगंबर जैन मुनि की नग्नता अपरिग्रह का चरम विकास है। यह नग्नता मजबूरी नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक समृद्ध जीवन दर्शन है। दिगंबर मुनि बनना एक निर्मूल दर्पण बनने जैसा है। सामान्यतः नग्न होना अभद्रता मालूम पड़ सकती है लेकिन दिगंबर मुनि की वीतराग नग्न मुद्रा में अभद्रता का अहसास नहीं होता। वैसे देखा जाए तो वस्त्र पहने हुए भी व्यक्ति अपनी आंख के इशारे से या अंग संचालन से दूसरे के मन में विकार विकृति को जन्म दे देता है। वस्त्र पहनने का ढंग भी कभी-कभी अश्लीलता का प्रदर्शन करता हुआ मालूम पड़ता है। लेकिन दिगंबर साधु की सौम्य वीतराग-मुद्रा सभी को निर्विकार होने का संदेश देती है।
काका काललेकर ने जैन तीर्थ गोम्मटेश्वर पर विराजमान भगवान बाहुबली की दिगंबर प्रतिमा के दर्शन करके लिखा था- "कैसी अपूर्व है इस मूर्ति की अंगकांति! दिगंबर और पवित्र, मोहक और पावक, तारक और उद्धारक! दर्शन करते ही ह्रदय में नवीन सात्विक आनंद स्फुटित होने लगा क्षण भर में वैराग्य और कारुण्य के मानो प्रपात गिरने लगे और चित्त प्रक्षालित होकर क्षणभर में उस भव्यता की ऊँचाई तक चढने लगा।"
असल में, जब नग्नता आत्मानुशासन या संयम के साथ घटित होती है तब उसका सौंदर्य भी पवित्र होता है। राग-द्वेष को त्याग कर ही कोई ऐसी निरावरित नग्नता का पवित्र सौंदर्य स्वयं में प्रकट कर पाता है। यदि हम जीवन की मौलिकता को पाना चाहते हैं हमें भीतर-बाहर सब तरह से निरावरित होना होगा।
-मुनि क्षमासागर जी
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