22.05.2018 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 22.05.2018
Updated: 23.05.2018

Update

5 types of Living Beings from one sensed to five sensed.. as per Jainism! #worthyRead • #share

Jains have categorized all the living beings (jivas) that can be found in the earthly realm. This is important because the fundamental Jain principle of ahimsa (nonviolence) extends to all jivas.

In Jain thinking, a jiva is a soul attached to a body. Since a soul is of flexible size, the same soul can fit inside an ant's body as a human's. According to the Jain scriptures, there are 8.4 million species of jivas. They fall into two main categories: immobile single-sensed and mobile and multi-sensed. And within these categories are subcategories, as follows:

A. Immobile and single-sensed
1. Earth-bodied (clay, sand, metal)
2. Water-bodied (dew, fog, ice, rain, ocean)
3. Fire-bodied (flames, hot ash, lightening)
4. Air-bodied (wind and cyclones)
5. Plant-bodied (trees, seeds, roots)
a. One-souled (trees, branches, seeds)
b. Multi-souled (root vegetables)

B. Mobile and multi-sensed
1. Two-sensed: touch and taste (shells, worms, microbes)
2. Three-sensed: touch, taste and smell (lice, ants, moths)
3. Four-sensed: touch, taste, smell, sight (scorpions, crickets, spiders, flies)
4. Five-sensed: touch, taste, small, sight and hearing (humans and animals)

a. Infernal (in one of the hells)
b. Non-human
c. Celestial (in one of the heavens)
d. Human

Photograph Detail: Standing Statue of Lord Shantinatha @ Naugaja,Neelkanth village, Tehla, Alwar District, (Rajasthan) India.

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शिर्डी ज्ञान तीर्थ पर भगवान पार्श्वनाथ जी का अभिषेक 😍 भक्ति बेक़रार हैं, आनंद अपार हैं, तेरे पद चिन्हों पर चलने को प्रभु जी मेरा अंतर्मन बेक़रार हैं:)

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Update

जीवन में कितनी ही विपत्ति, कितनी भी परेशानी आए, उससे डरकर #आत्महत्या नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति आत्महत्या कर लेते हैं। मरण की इच्छा करते हैं। वह संल्लेखना मरण या समाधिमरण नहीं होता।
यह बात अतिशय क्षेत्र पपौरा में शनिवार को आचार्य श्री विधासागर जी महाराज ने प्रवचन में कही। उन्होंने कहा कि वेदना सहन करने हम तैयार हैं। निश्चित रूप से शरीर काम नहीं करता, बैठना नहीं बनता, करवट लेने की हिम्मत नहीं होती। लेटे-लेटे घाव बन जाते हैं, लेकिन हम बर्दाश्त करते रहते हैं। आत्मविश्वास ऐसा है कि उसका फल हमें मिलेगा। भूख तो, लेकिन इच्छा नहीं है।

उपवास का महत्व बताया:
आचार्य ने उपवास का महत्व बताते हुए कहा कि 24 घंटे तक कुछ नहीं खाएंगे, जो लोग वस्तु का त्याग करते हैं। नियम धर्म से भोजन करते हैं। रात्रि में भोजन नहीं करते हैं। रात्रि में पानी का भी त्याग करते हैं। उनको अपने जीवन काल में किसी वस्तु की कमी नहीं आती है। उन्होंने कहा कि अब शरीर काम नही करता तो बुद्धि पूर्वक नियम लिया जाता है, जब तक प्राण नहीं निकलेंगे रात्रि में अन्न फल नहीं लेंगे। खाने की इच्छा तो है, लेकिन क्षमता नहीं है, तो हमको खाने की इच्छा नहीं करना चाहिए।। कभी भी हम मृत्यु को प्राप्त हो सकते हैं।

7 प्रकार के नरक हैं
आचार्य श्री ने कहा कि 7 प्रकार के नरक हैं। नारकीय जीव को नरक में भूख सहन करनी पड़ती है। भूखे प्यासे रहते हैं। नरक में जीवों को कई प्रकार की यातनाएं भोगनी पड़ती हैं। नरक के जीव अपनी भूख मिटाना चाहते हैं, लेकिन भूख को मिटा नहीं पाते हैं। आपको भी भूख लगती है। आप अपने भोजन का प्रबंध करके रखते हैं। असंयम के कारण कई बार खाते हैं। नरक के जीव भूख मिटाना चाहते हैं, लेकिन वेदना के कारण भूख- प्यास मिटा नहीं पाते हैं

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समय प्रति क्षण जा रहा है,शरीर भी प्रति क्षण जारहा है,संसार की क्षण भंगुरता का ध्यान रखिए और अच्छे कर्म करिए। -आचार्य श्री विद्यासागर जी #GemWords

Time is passing,Your body is getting aged day by day as well, Have a deep thought of the impermanence of the universe and perform good deeds to the maximum.

News in Hindi

#केशलोंच मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने आज महाअतिशयकारी श्री ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र #नारेली में केशलोंच किया । #Sudhasagar

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