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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 25 जुलाई 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
News in Hindi
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 38* 📜
*किसनमलजी भंडारी*
*'पाप करो सब लोग'*
गतांक से आगे...
भंडारीजी द्वारा रचित महत्वपूर्ण कुछ कविताएं भी यहां उद्धृत की जा रही हैं। अग्रोक्त पद्य उन्होंने तब सुनाए थे, जब उनके एक मित्र शिवराजजी संघवी ने उनको बार-बार वैष्णव धर्म की ओर आकृष्ट करने का प्रयास किया।
"कहां चोर साहूकार आगियो दिनेश कहां
कहां धातु माटी कहां स्वर्ण को वंश है
कहां है कनेर पुष्प चंप हूं की चाल चहै
जेते हैं पाखंड षट्काय हू के कंस है
कहै किसनेस कहां दिवस रु रात्रि कहां
कहां काठ चंदन कहां काग अरु हंस है
अवर अधर्म तम रूप ज्यों पिछाणो जग
सोचो सुधर्म जैन भानु तो प्रशंस है"
"चोरन को चांदनी सुहात मन मांय नाय
जहां तहां तावले को अन्न हु न भात है
अहि डस जात जाको विख हू लखात नांह
नीम की निमोली पत्ते फीके फरसात है
अंधेरो उलूक चहै उद्योत न सुहावै देखो
आ ही गत पेख देख भागल भरमात है
'किसन' कहै है सच्चो जग जिन माग अच्छो
अवर अपच्चो पंथ कच्चो दरसात है"
*किसनमलजी द्वारा रचित सम्यक्त्व से संबंधित कविताओं* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 384* 📝
*वर्चस्वी आचार्य वीर*
वीराचार्य श्वेतांबर मंदिर मार्गी थे। वे विद्या और बुद्धि से संपन्न थे। वे योग के विशेषज्ञ थे। वे शास्त्रार्थ करने में दक्ष थे। गुजरात नरेश जयसिंह सिद्धराज उनके व्यक्तित्व से प्रभावित थे।
*गुरु-परंपरा*
चंद्रगच्छ की षाण्डिल्ल शाखा में भावदेवसूरि हुए। उनके पट्टधर विजयसिंहसूरि श्री वीराचार्य के गुरु थे। युगप्रधानाचार्य षाण्डिल्य से जिस षाण्डिल्य गच्छ का उद्भव हुआ, वह बहुत प्राचीन है। प्रस्तुत वीराचार्य चंद्रगच्छ से संबंधित षाण्डिल्ल शाखा में हुए। इस षाण्डिल्ल शाखा का संबंध चंद्रगच्छ से होने के कारण प्राचीन षाण्डिल्य गच्छ से भिन्न है।
*जीवन-वृत्त*
वीराचार्य का पाटण नरेश सिद्धराज जयसिंह की सभा में विशेष सम्मान था। नरेश की भक्ति के कारण वीराचार्य लंबे समय तक पाटण में विहरण करते रहे। एक दिन नरेश सिद्धराज जयसिंह ने विनोद में वीराचार्य से कहा "राज्याश्रय के कारण दुनिया में आपका महत्त्व है।"
वीराचार्य के हृदय में नरेश के द्वारा कही हुई यह बात चुभ गई। उन्होंने तत्काल नरेश के सामने अन्यत्र विहरण करने का निश्चय प्रकट किया। प्रत्युत्तर में नरेश बोले "आचार्यवर! मैंने यह बात विनोद में कही थी। आपको मैं यहां से किसी प्रकार से जाने नहीं दूंगा।" आचार्य बोले "राजन् मुनि पवन की तरह अप्रतिबद्ध विहारी होते हैं। उन्हें कौन रोक सकता है?"
राजा ने अपनी बात को रखने के लिए नगर के द्वारपालों को आज्ञा दी वे वीराचार्य को नगर से बाहर नहीं जाने दें। द्वारपालों में नरेश के आदेश का जागरूकता से पालन किया। वे अपने द्वार पर सावधानी के साथ पहरेदारी करने लगे। नगर के प्रत्येक द्वार पर राजा ने कड़ा पहरा लगा दिया। वीराचार्य भी अपने विचारों से दृढ़ थे। संध्या प्रतिक्रमण के बाद उन्होंने आसन लगाकर योग के द्वारा प्राण वायु का निरोध किया और विद्या द्वारा आकाश मार्ग से पल्ली नगर में पहुंच गए।
*क्या नरेश सिद्धराज जयसिंह ने पुनः वीराचार्य को नगर में पधारने हेतु प्रार्थना की... और वीराचार्य ने उसे स्वीकार किया...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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