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प्रिय Young Jaina Awardee,
मुनिश्री क्षमा सागर जी महाराज के दीक्षा दिवस के अवसर पर, मैत्री समूह आप सभी Young Jaina Awardee (2001 से 2008 तक) को Get-Together के लिए 19 एवं 20 अगस्त को कुंडलपुर जी (दमोह, मध्यप्रदेश) आमंत्रित कर रहा है,
आप अपने आगमन का कॉन्फ़र्मेशन फ़ॉर्म में डिटेल्ज़ भर कर दे 🙏🏻
Form link: https://goo.gl/4ELTfF
मैत्री समूह
+91 94254 24984
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एक दिन संघ आहारचर्या के लिये निकलने के लिये आचार्य विद्यासागर सभागृह के पीछे की ओर बने मन्दिर जी मे एकत्रित हुआ वही बाजू में एक गैलरी भी है जिसमे दोनो छोर से हवा आने जाने का मार्ग खुला हुआ है लेकिन वही ऊपर की ओर पाँच छः छत्ते मधुमक्खीयो ने बना रखे है चुकि छत्ते होना एक सहज बात थी सो कुछेक साधु वहां खड़े होकर आपस मे एक दूसरे की कुशलक्षेम पूंछ रहे थे
आचार्य श्री विधि लेकर निकले ही थे कि ना जाने अचानक क्या हुआ सभी छत्ते की मधुमक्खियां एक साथ छत्ता छोड़ कर भिनभिनाने लगी, मधुमक्खियों का भिनभिनाना देख कर सभी महाराज अंदर मन्दिर जी मे आ गए और जाली का दरवाजा बंद कर लिया लेकिन मुनि श्री धीरसागर जी महाराज वहां खड़े हो कर जाप कर रहे थे सो वे निश्चल वही खड़े रहे
अगले ही पल का दृश्य बड़ा ही भयावह था देखने वालों की तक आत्मा सिहर गयी क्योंकि जितनी भी मक्खी थी एक साथ उनके शरीर पर बैठती चली गयी एक मिनिट में ही उनका पूरा शरीर मधुमक्खियों से ढक गया था हिम्मत करते हुए एक मुनिराज ने पिच्छी से हटाते हुए सभी मक्खियों को उनके ऊपर से अलग किया तब तक शरीर के प्रत्येक हिस्से में बे बड़ी बेदर्दी से काट चुकी थी यहां तक कि आंख नाक कान के अंदरूनी भाग में भी काटने के डंक स्पष्ट रूप से देखे जा सकते थे किंतु मुनि धीरसागर जी अब भी वैसे ही कायोत्सर्ग की मुद्रा में खड़े हुए जाप दे रहे थे
मधुमक्खियों के उड़ते ही जब संघ के सभी मुनिराजों ने आकर उन्हें सम्हाल कर नीचे लकड़ी के पाटे पर लिटाया ओर उनके डंक निकालने लगे सभी हतप्रभ थे हजार से ज्यादा काटे निकल चुके थे फिर भी सारे शरीर मे कांटे अभी भी दिखाई दे रहे थे
कांटो के निकलते निकलते धीरसागर जी का शरीर विष के प्रभाव से काफी फूल गया था देखने मे ही ऐसा प्रतीत होने लगा था जैसे किसी गुब्बारे में पानी भर दिया गया हो । अब तो काटे निकालने में भी डर लगने लगा था किंतु मुनि धीरसागर जी के धीरज को देखिये मुँह से आह भी नही निकल रही थी, इतने में शोर होने लगा आचार्य श्री आहार के उपरांत वापिस आ रहे थे सभी ने आचार्य श्री को जानकारी दी किन्तु आचार्य श्री भीड़ में आ कर देखने की जगह अपने कक्ष में जाकर बैठ गए और सभी से एकांत करने को कह मुनि श्री को कक्ष में ही लाने का निर्देश दिया
बड़ी मुश्किल से दो मुनिराज उनके विकृत शरीर को उठाकर आचार्य भगवन के कक्ष में ले गए तब आचार्य भगवन उठे और चंदन के शीतल तेल एवं रुई लाने कहा । आचार्य श्री ने रुई पर थोड़ा सा चन्दन तेल लेकर मुनि धीरसागर जी की पलको पर जो विकृत होकर लटक गयी थी लगाया और तेल की शीशी को बापिस रखने दे दिया
वहां खड़े एक मुनिराज ने शीशी अपने हाथ मे ली और उसे रखने मात्र बीस कदम ही गए होंगे और तेज कदमो से चलते हुए तुरंत वापिस भी आ गए किन्तु अंदर का नजारा देख वह एक दम से अवाक रह गए मुनि धीरसागर जी एकदम से स्वस्थ होकर आचार्य भगवंत की वंदना कर रहे थे ऐसा आश्चर्य ओर चमत्कार अपनी आंखों से देख उन्हें अपने गुरु आचार्य विद्यसागर जी पर गुरुर हों गया और श्रद्धा अपने चरम पर पहुच गयी
ऐसे साधक जिन्होंने साधना को ही सर्वोपरि माना और साधना के प्रभाव से प्राप्त इन ऋद्धि सिद्धियों को अपने जीवन मे कोई महत्व ही नही दिया तभी तो लोक में शिरोमणि संत के रूप में पूज्य हुए, ऐसे संत आचार्य विद्यासागर जी महाराज के चरणों मे अपने शीश को नवाता हुआ भांवना भाता हु वे सदा जयवंत हो_
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परिस्थिति को सहज भाव से स्वीकारें।
एक नदी तेज धार के साथ बही जा रही थी। उस नदी में दो तिनके थे। पहला तिनका नदी की धार से झूझ रहा था और दूसरे तिनके ने सोचा यह नदी सागर की यात्रा में निकली है, चलो, मैं भी कुछ दूर इसके साथ चलूँ। वह नदी के साथ बहा जा रहा था और पहला तिनका नदी से झूझ रहा था। फिर क्या था? नदी की धार का प्रवाह उछला और उसने तिनके को उचठा के एक तरफ फेंक दिया, और दूसरा तिनका नदी के साथ अहोभाव से बहता-बहता सागर तक पहुँच गया।
हमारी स्थिति भी तिनके की तरह है। एक तिनका वह है जो जीवन की धार के साथ बहता है। अहोभाव के साथ बहता है, सुख-दुःख, संयोग-वियोग, हानि-लाभ को सहज भाव से स्वीकार लेता है। शांति के सागर में समा जाता है और जो समय की धार से जूझता है, समय उसे उठाकर एक तरफ फेंक देता है। वह कहीं का नहीं रहता।
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काशी का यह राजकुँवर.. यही देव सम्मेद शिखर गिरी वाला!
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मुनि पुंगव सुधासागर जी महाराज कहते है कि अपने से श्रेस्ठ व्यक्ति की सदा अनुमोदना और प्रशंसा सदा करते रहना चाहिये क्योंकि एक ना एक दिन हम भी अपने इसी गुण के कारण उनके जैसे बन सकते है
अशोक पाटनी आर के मार्बल किशनगढ़, प्रभात जी शाह कन्नौज हाल निवासी मुम्बई, राजा भैया सूरत, तरुण जी काला व्यावर हाल निवासी मुम्बई, रतन लाल जी बैनाड़ा आगरा इन सभी नामो को प्रायः हम सुनते है और याद भी हो गए है
ये सभी नाम है हमारे भारत के दानवीर भामाशाहो के जिनके द्वारा प्रतिवर्ष इतना दान दिया जाता है जितना हम अपनी पूरी जिंदगी में कमा भी नही पाते क्या आपने कभी इनमें से किसी को देखा है क्या आप इनमें से किसी को जानते है तो में आपको बता देता हूं भीड़ में एक किनारे बहुत ही सादगी से बैठा हुआ शख्स इनमें से कोई एक हो सकता है यानी इतना पैसा दान करने वाला वह शख्स भीड़ के बीचों बीच सादा सफेद कपड़ो में बैठा हुआ किसी भी मान प्रतिस्ठा से दूर गुरु चरणों मे अपनी भक्ति करने बैठा रहता है
इन सभी दानवीर भामाशाहों की दानवीरता नम्र स्वभाव और वात्सल्यता हमे प्रेरणा देती है कि हम भी भविष्य में सद कार्यो को करते हुए इनके जैसे बनने का संकल्प ले जगत पूज्य मुनि पुंगव सुधासागर जी एवं उनके दीक्षा प्रदाता गुरू आचार्य विद्यासागर जी द्वारा बताए गए धर्म कार्यो का अनुसरण करते हुए अपने जीवन को धन्य करे
मुनि पुंगव सुधासागर जी महाराज कहते है कि अपने से श्रेस्ठ व्यक्ति की सदा अनुमोदना और प्रशंसा सदा करते रहना चाहिये क्योंकि एक ना एक दिन हम भी अपने इसी गुण के कारण उनके जैसे बन सकते है
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सोने चाँदी के व्यापारी श्री #ताहिरखान जी ने दुबई से आकर मुनि श्री #प्रमाणसागर जी को श्रीफल भेंट किया #share
आज रतलाम में मुनिश्री प्रमाणसागर जी महाराज के पावन चरणों में रतलाम के मुस्लिम समाज के अध्यक्ष और सोने चाँदी के व्यापारी श्री ताहिरखान जी ने दुबई से आकर मुनि श्री को श्रीफल भेंट किया और महाराज जी से निवेदन किया की आपके सानिध्य का लाभ सभी समाज को मिले। उन्होंने कहा की वह नित्य प्रतिदिन शंका समाधान को टी वी पर देखते हैं। अब यह लाभ साक्षात लेंगे और शंकाओ का समाधान लेंगे। जय हो आचार्य भगवन्त विद्यासागर जी महाराज की। उनके साथ रतलाम धर्म प्रभावना समिति के अध्यक्ष श्री ओम अग्रवाल जी भी थे। #ShankaSamadhan
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#Treasure 😍
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मुनि श्री प्रणम्य सागर जी... गणधर किसे कहते हैं?
गणधर मतलब गणों के समूह को धारण करने वाले गणधर कहलाते हैं। गणधर की विशेषता होती है कि उन्हें सभी प्रकार की रिद्धियो का ज्ञान होता है वह केवल ज्ञान को नहीं जानते हैं पर अनेक ज्ञान रिद्धियों के धारी होते हैं इसलिए वह भगवान की ओंकारमयी वाणी जब खिरती है तब उसको समझ के उसे एक द्विभाषी के रूप में हमें अपनी अपनी भाषा में हमें समझा देते हैं। गणधर ही भगवान् की वाणी को समझ कर चार अनुयोगों में विभक्त कर देतें हैं। प्रथमानुयोग, करुणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग। गणधर आचार्य परमेष्ठी की श्रेणी में आते हैं।
और जैसा कि महाराज श्री ने आज बताया कि हम लोगों का ज्ञान है वह इंद्रिय ज्ञान है यानी कि जो ज्ञान दूसरे पर डिपेंड हो जिसको हम कम भी कर सकते हैं ज्यादा भी कर सकते हैं जो ज्ञान कम भी हो सकता है ज्यादा भी हो सकता है या खत्म भी हो सकता है वह इंद्रिय ज्ञान है और केवल ज्ञान जो होता है वह ना कम होता है न ज्यादा होता है हमेशा एक सा रहता है। हमारा ज्ञान यानी इंद्रिय ज्ञान क्षायोपक्षमिक ज्ञान है और केवल ज्ञान क्षायिक ज्ञान कहलाता है।
तीर्थंकर के पद के बाद महान पुण्यवान पद गणधर परमेष्ठी का ही आता है इसलिए उन्हें हमारा बारंबार वंदन हैं!!
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#जब_अमेरिकी_राजदूत_गुरुचरणो_में_आए clip🙂
अमेरिकी राजदूत केथिन जस्टर ने खजुराहो में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सम्मुख सप्ताह में एक दिन के मांसाहार का त्याग किया। उस समय का यह 1 मिनट का वीडियो है आचार्य महाराज द्वारा अहिंसा मार्ग में अग्रसर होने का निर्देशन भी उन्हें प्राप्त हुआ, जस्टर महोदय ने अत्यंत आदर भाव से गुरु जी की चरण रज अपने माथे पर धारण की।