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👉 *चेन्नई (माधावरम)*: *अणुव्रत महासमिति द्वारा निर्देशित व्यसनमुक्ति प्रकल्प* के तहत अणुव्रत समिति द्वारा *"अणुव्रत" के इतिहास की पहली मैराथन दौड़ का आयोजन..*
*महत्त्वपूर्ण झलकिया*ं ~
💦 *"Wake-up, Say No To Addiction"* की महत्त्वपूर्ण थीम के साथ इसका आयोजन शहर के माधावरम इलाके में किया गया।
💦 *मैराथन" में 5 k m और 10 k m* की 2 श्रेणियां रखी गयी।
💦सवेरे 5.30 बजे मैराथन शुरू हुआ।
💦 मुम्बई से समागत योगा ट्रेनर और एक्टर मोना नाहटा द्वारा व्यायाम व योगा करवाया गया।
💦 कार्यक्रम के दौरान होस्ट पास्कार और गार्गी ने मनोरंजक प्रस्तुतियों से समां बांधे रखा।
💦 मुख्य अतिथि के रूप में *तमिल सिनेमा के जानेमाने कॉमेडी एक्टर श्री संथानम* ने प्रातः 05.30 बजे 10 k m की दौड़ के आरंभ होने की घोषणा की।
💦 विशिष्ट अतिथि के रूप में *राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अशोक संचेती* एवं *उपाध्यक्ष श्री कैलाश सिंघी* की गरिमामय उपस्थिति..
💦 लगभग *3000 से अधिक धावकों* ने कार्यक्रम में भाग लिया।
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
Source: © Facebook
News in Hindi
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 43* 📜
*सुखराजजी भंडारी*
*कविता-परिचय*
सुखराजजी के मन में स्वामी भीखणजी के प्रति अगाध श्रद्धा थी। उसी की अभिव्यक्ति उनकी कविता में स्पष्ट दिखाई देती है। वे लिखते हैं—
"लाछ जो न होतो तो, दालिद्र को हटातो कौन?
महीप जो न होतो तो, प्रजा को कौन पारतो?
भानु जो न होतो तो, तिमिस्र को मिटातो कौन?
सुरेश जो न होतो तो, वज्र कौन धारतो?
सूर जो न होतो तो, जगन में जूरत कौन?
जिनेश जो न होतो तो, संसार कौन तारतो?
भने 'सुखराज' देखो, आज के समाज बीच
भिक्षु जो न होतो तो, मिथ्यात कौन गारतो?"
"छंड के पखंड मत, मारतंड वत् करयो।
तेज को प्रचंड, तम-खंडन अज्ञान को।।
भने 'सुखराज' आज, राजेश्वर राज लाज-
रक्षक, जहाज जग भिक्खन तिरान को।।
शासन पा नावा, आह! काह लो सराह करूं।
चाह के भरन, शिव राह के दिखान को।।
देव-द्रुम पान के जु, वृद्ध जन मान को जु।
सुधा दधिवान को जु, मुकुट मुनियान को।।"
भंडारीजी के धर्मगुरु जयाचार्य थे। उन्हीं के मार्गदर्शन में उनकी धर्माराधना क्रमशः विकसित होती रही थी। उनकी स्थावना में उनकी लेखनी मुक्त रूप से चली। अपनी कविताओं में वे उनका उल्लेख जीतगणी या जीत नाम से करते। यहां उदाहरण के रूप में कुछ लोग उद्धृत किए जा रहे हैं—
"श्याम वरन्न शरीर निको जनु नेम जिनेश्वर आप विराजै।
बान पीयूष भरी जिनकी सब जीव अभै करणी छवि छाजै।।
ज्ञान-निधान महान मसीह भये नित जीत गणाधिप गाजै।
मांडल-दूत सबे रहिए, 'सुखराज' फबे सुख संपति काजै।।"
"छत्र पवित्र मुनीजन को, गुन-धाम विचित्र नखत्र सुधारी।
पातक झंड प्रचंड विहंडन, खंडन दंभ पाखंड को भारी।।
क्रीत पुनीत कहा कहिए, शिष्य राय के जीत महा ब्रह्मचारी।
श्वेत छटा शिव देत पटा, वर ज्ञान घटा झर बान तिहारी।।"
"दीपक की माल कहा? ज्योतित मसाल कहा?
रोशनी विशाल कहा? भूपति के ठान की।
हीरे द्युति श्वेत कहा? पन्ने छवि देत कहा?
चिन्तामणी लेत कहा? ओपमा समान की।
नक्षत्रन जोत कहा? चंद्र को उद्योत कहा?
भने 'सुख' होत कहा? प्रभा शुक्र भान की।
मेट के अज्ञान तिमि, ज्ञान को प्रकाश करै,
सबन से अधिक शोभा जीत भगवान की।।"
"अंबन अंगूर कहा? खारक खिजूर कहा?
ईखू-रस पूर कहा? छेद जू अनार की।
मधू वर वृन्द कहा? मिस्त्री फिर कन्द कहा?
रिखीश्वर रंध कहा? प्रपा धन-धार की।।
दाख-पुंज सेव कहा? मिष्ट गंज मेव कहा?
कहां 'सुखराज' मींढ़ अमृत कासार की।
सब से अधिक्क रती जति-पति जीत-वान?
आन मधुराई बसी, विविध प्रकारकी।।"
*जयाचार्य के दिवंगत होने के क्षणों में श्रावक सुखराजजी के भावों का जो उच्छल प्रभाव बहा...* उसके बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 389* 📝
*नित्य नवीन आचार्य नेमिचन्द्र*
*ग्रन्थ-रचना*
नेमिचंद्रसूरि टीकाकार एवं चरित्र ग्रंथों के रचनाकार थे। उनकी सुखबोधा टीका इतनी महत्त्वपूर्ण रचना है जिसके कारण टीकाकार विद्वानों में नेमिचंद्रसूरि की गणना हुई। मुख्य ग्रंथों का परिचय इस प्रकार है—
*आख्यान मणिकोश* नेमिचंद्रसूरि की यह प्रथम रचना है। इसके 41 अधिकार एवं 146 आख्यान हैं। आख्यानों में कहीं-कहीं पुनरावृत्ति है। इस ग्रंथ की रचना वीर निर्वाण 1599 (विक्रम संवत् 1129) में हुई।
*आत्मबोध-कुलक* यह 22 गाथाओं की लघु रचना है। इसमें आत्मा से संबंधित विविध रूपों में धर्मोपदेश दिया गया है। इस कृति का दूसरा नाम धर्मोपदेश-कुलक भी है।
*सुखबोधा वृत्ति* इस ग्रंथ में 125 प्राकृत कथाएं हैं। इस वृत्ति की रचना अणहिल्लपुर पाटण नगर में दोहड़ श्रेष्ठी की बस्ती में हुई। टीका की रचना के प्रेरक गुरु भ्राता मुनि चंद्र थे। टीका रचना का मूल आधार शांतिसूरि की 'शिष्यहिता' टीका है। इस रचना का नाम सुखबोधा वृत्ति है। मंदगति और संक्षेप रुचि पाठकों के लिए अर्थांतरों एवं पाठांतरों उसे मुक्त सरल और सरस शैली में रचा यह ग्रंथ सुखबोधा संज्ञा को सार्थक करता है।
टीका की विशेषताओं से पाश्चात्य विद्वान शारपेन्टियर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने उत्तराध्ययन सूत्र के पाठ निर्धारण में इसी टीका को प्रमुखता दी और टिप्पण भी लिखे।
इस टीका में प्राकृत कथानकों का विस्तार से वर्णन है। शांत्याचार्य ने अपनी शिष्यहिता टीका में जिन कथानकों का एक या दो पंक्ति में संकेत मात्र दिया है, नेमिचंद्रसूरि ने उन कथानकों के साथ अन्य ग्रंथों से प्राप्त सामग्री को जोड़ कर उन्हें रोचक और मंदबुद्धि वालों के लिए सुपाच्य बनाया है। इन कथानकों की सरसता ने पाश्चात्य विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया है।
*नित्य नवीन आचार्य नेमिचन्द्र की रचना सुखबोधा* के बारे में आगे और जानेंगे व प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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❄ *अणुव्रत* ❄
🔮 *संपादक* 🔮
*श्री अशोक संचेती*
🌸 *जुलाई अंक* 🌸
🌴 पढिये 🌴
*अणुव्रत दिग्दर्शन*
स्तम्भ के अंतर्गत
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*अणुव्रत*
का
*अंतरराष्ट्रीय विस्तार*
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❄ प्रेषक ❄
*अणुव्रत सोशल मीडिया*
❄ संप्रसारक ❄
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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