News in Hindi
👉 पेटलावद: मंत्र दीक्षा और तेयुप शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन
👉 विजयनगर, बैंगलुरू - सामुहिक जन्मोत्सव का आयोजन
👉 उधना (सूरत) - कन्या सुरक्षा सर्कल का पांडेसरा में लोकार्पण
👉 उधना, सूरत - गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की पिन अभातेमम अध्यक्ष को सुपुर्द
👉 नोएड़ा, दिल्ली - तेरापंथ स्थापना दिवस व मंत्र दीक्षा का आयोजन
👉 लिम्बायत, सूरत - अभातेमम संगठन यात्रा
👉 वापी - मंत्र दीक्षा एवं जैन संस्कार विधि से सामूहिक जन्मोत्सव
👉 नोहर - मंत्र दीक्षा कार्यक्रम का आयोजन
👉 सोलापुर - मंत्र दीक्षा कार्यक्रम का आयोजन
👉 जींद - मंत्र दीक्षा कार्यक्रम का आयोजन
👉 ईसलामपुर - मंत्र दीक्षा का आयोजन
👉 जयगांव (पश्चिम बंगाल) - मंत्र दीक्षा कार्यक्रम का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 नागपुर - तेयुप शपथ ग्रहण समारोह व चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
प्रस्तुति: 🌻संघ संवाद🌻
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अणुव्रत महासमिति
का
शाखा समितियों
के लिए
*अगस्त माह का प्रकल्प*
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📍 प्रेषक 📍
*अणुव्रत सोशल मीडिया*
📍 संप्रसारक 📍
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 45* 📜
*लिछमणदासजी भंडारी*
लिछमणदासजी भंडारी जोधपुर निवासी थे। वे सुप्रसिद्ध श्रावक बहादुरमलजी के छोटे भाई पंचाणदासजी के पुत्र थे। उनका जीवन काल संवत् 1902 से 1972 वैशाख शुक्ला 14 तक का था। वे बड़े भक्तिमान्, निष्ठाशील और बारह व्रतधारी श्रावक थे। बातचीत करने में जोधपुर निवासियों को परंपरागत ही कोई विशिष्ट पटुता प्राप्त है। शायद जन्म घुट्टी के साथ ही उनको यह कला बीज रुप में मिल जाती है, जो कि अवस्था विकास के साथ ही विकसित होकर उन्हें वाक्पटु बना देती है। लिछमणदासजी में भी कुछ जोधपुर निवासी होने के कारण तो कुछ अपनी वैयक्तिक योग्यता के कारण उक्त कला का परिपूर्ण विकास हुआ था।
वाक्पटु होने के साथ-साथ वे स्वभाव से बड़े दबंग भी थे। मुंह आई बात को रोकना उन्हें पसंद नहीं था। वे कहां करते कि अवसर पर अपनी बात को तत्काल न कहा जाए तो क्या अवसर निकल जाने पर कहा जाए? बात का मूल्य तो अवसर पर ही होता है, बाद में तो केवल 'थूक बिलोई' रह जाती है। वे अवसर पर बात कहने में कभी कोई संकोच नहीं करते थे। हास्य तथा व्यंग करने में भी वे बड़े कुशल थे। कुछ भी कहना होता, कह डालते, परंतु वाणी में परिपूर्ण मधुरता बनाए रखते। वाङ्-माधुर्य से लिप्त उनके व्यंग और हास्य कभी-कभी इतनी तीखे भी हो जाते थे कि दूसरा तड़प कर रह जाए, फिर भी वे स्वयं को ऐसा साधे रहते, मानो कोई विशेष बात नहीं हो। प्रहार करने वाले में प्रहार सह लेने का साहस सबसे पहले होना चाहिए। वह उन में प्रचुर मात्रा में था। दूसरों की बात को वे उसी सहज भाव से सह लेते थे, जिस सहज भाव से दूसरों को कह देते थे।
*सुजानगढ़ और लाडनूं के लगभग मध्य में जसवंतगढ़ की नींव कैसे पड़ी...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 391* 📝
*हृदयहारी आचार्य मलधारी हेमचन्द्र*
प्रस्तुत आचार्य हेमचंद्र 'मलधारी प्रेमचंद्र' के नाम से प्रसिद्ध हैं। वे अपने युग के विशिष्ट व्याख्याता थे। वे आगम पाठी आचार्य थे। उनकी स्वाध्याय, योग और ध्यान में रुचि थी। संस्कृत अधिकृत भाषा थी।
*गुरु-परंपरा*
मलधारी हेमचंद्रसूरि प्रश्नवाहन कुल एवं हर्षपुरी गच्छ के आचार्य थे। वे मलधारी अभयदेवसूरि के शिष्य एवं जयसिंहसूरि के प्रशिष्य थे। बंधशतक वृति की प्रशस्ति में मलधारी हेमचंद्र की गुरु परंपरा का विस्तार से वर्णन है। इस कृति के रचनाकार स्वयं मलधारी हेमचंद्र हैं।
*जन्म और परिवार*
मलधारी हेमचंद्र की गृहस्थ जीवन संबंधी सामग्री अधिक उपलब्ध नहीं है। मलधारी राजशेखर की प्राकृत द्वयाश्रय वृत्ति की प्रशस्ति के अनुसार मलधारी हेमचंद्र राजमंत्री थे। उनका नाम प्रद्युम्न था। चार पत्नियां छोड़कर उन्होंने मुनि दीक्षा ग्रहण की थी। इससे स्पष्ट है उनका परिवार बड़ा था।
*जीवन-वृत्त*
मुनि जीवन में राज्यमंत्री प्रद्युम्न हेमचंद्र के नाम से विख्यात हुए। प्रौढ़ अवस्था में दीक्षित होकर उन्होंने श्रुत धर्म की विशेष आराधना की। व्याकरण, न्याय, प्रमाण आदि विविध विषयों का गहन अध्ययन किया। शताधिक ग्रंथों का स्वाध्याय किया। विशालकाय ग्रंथ भगवती सूत्र उन्हें पूरा कंठस्थ था। उनकी अपनी प्रतिभा शब्दमयी परतों को चीरकर अर्थ की गहराई तक पहुंच जाती थी।
आचार्य हेमचंद्र व्याख्यान लब्धि से संपन्न थे। उनकी ध्वनि मेघ गर्जना की तरह गंभीर थी। आधुनिक युग के ध्वनि वर्धक साधन उस समय नहीं थे। उनकी आवाज दूर तक स्पष्ट सुनाई देती थी। उनकी वाणी में ओज था। स्वर मधुर था। उनके व्याख्यानों में वैराग्य रस का निर्झर बहता था। प्रवचन शैली प्रभावक थी। उन्होंने आचार्य सिद्धर्षि द्वारा रचित अति कठिन 'उपमितिभव-प्रपंच' कथा पर तीन वर्ष तक प्रवचन किया। श्रोता उनको सुनने के लिए लालायित रहते थे। कई बार भीड़ होने के कारण लोग उपाश्रय के बाहर भी उन्हें सुनने का प्रयत्न करते थे।
चौलुक्य चूड़ामणि सिद्धराज जयसिंह मलधारी हेमचंद्र के व्यक्तित्व से प्रभावित थे। मलधारी राजशेखर के कथानुसार मलधारी हेमचंद्र ने एक वर्ष में 80 दिन तक अमारि की घोषणा सिद्धराज जयसिंह से करवाई थी।
*हृदयहारी आचार्य मलधारी हेमचन्द्र द्वारा रचित साहित्य* के बारे में आगे और जानेंगे व प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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