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बदलते हुए जीवन के दुष्परिणाम...परम् पूज्य षष्ठ पट्टाचार्य श्री 108 ज्ञानसागर जी मुनिराज
आज दिनांक 3 अगस्त को हरी पर्वत, आगरा में स्थित श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के श्री शांतिसागर सभागार में धर्म सभा को संबोधित करते हुए पूज्य आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने अपनी पीयूष वाणी द्वारा कहा कि जिनके जीवन में पहले धर्म पुरुषार्थ फिर अर्थ आदि पुरुषार्थ को स्थान मिलता है उनका जीवन सुखद होता है। धर्म की शुरुआत आपके शुद्ध विचारों से होती है। जीवन में विचारों की शुद्धि का बहुत महत्व है। सभी के प्रति अच्छे विचार अपने अंदर जगाइए।
*जीवन में संयम रूपी ब्रेक बहुत जरूरी है छोटे-छोटे नियमों से आप का मनोबल मजबूत होता है* बिना नियमों के जीवन की सुरक्षा संभव नहीं। खानपान की शुद्धि पर ध्यान दीजिए अन्यथा *खानपान बिगड़ा की खानदान बिगड़ा* यह सूक्ति चरितार्थ हो जाती है।
रसोईघरों में पहले आलू प्याज आदि नहीं जाती थी, आज रसोईघरों में क्या-क्या नहीं जा रहा है? कहां गई वह मान मर्यादा? पहले बेटा बेटियों के रिश्तो में मां पिता की स्वीकृति होती थी, वही देखकर रिश्ता तय कर दिया करते थे। पर आज क्या हो रहा है यह आप सब जानते हैं।
आज तो मां पिता को बाद में पता लगता है रिश्ता हो गया है यह आज की शिक्षा का दुरुपयोग है, आज की शिक्षा संस्कार विहीन है। फलस्वरुप आज अनेक विसंगतियां आती जा रही हैं।संस्कारित परिवार आज बहुत कम रह गए हैं जहां माता पिता को सम्मान मिलता हो, मान मर्यादा में रहते हों, परस्पर प्रेम वासल्य रहता हो, कुलाचार का पालन होता हो।
*क्या होता जा रहा है आज आपका बेटा आपकी बेटी आपकी बात नहीं मान रहे हैं जरा सी बात में ही धमकी देना प्रारंभ कर देते हैं आप को अंधेरे में रखकर क्या-क्या नहीं कर रहे हैं।* अपने बच्चों पर बचपन से ही ध्यान दीजिए, अन्यथा जिंदगी जीना भारी हो जाएगा। वृद्ध मां दो रोटी को तरसते रहे और बहु बेटे मौज मस्ती कर रहे, यह सब धर्म प्रसाद के अभाव का फल है। सोचो क्या होगा आगे आपका भविष्य? अभी भी अगर नहीं समझे तो फिर जीवन में तनाव डिप्रेशन के अलावा कुछ नहीं होगा!
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