Update
👉 *अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्वावधान में*
💥 *चेन्नई - त्रिदिवसीय दक्षिणाचल स्तरीय कन्या कार्यशाला पहचान*
💥 *सान्निध्य - आचार्य श्री महाश्रमण*
💥 *प्रेरणा पाथेय - साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभाजी*
💥 *अभातेमम अध्यक्ष कुमुद कच्छारा की गरिमामय उपस्थिति में*
🌀 प्रथम दिवस द्वितीय सत्र ऊर्जा सत्र
विषय - पहचान तेरापंथ की
🌀 द्वितीय दिवस प्रथम सत्र
विषय - पहचान प्रतिभा की सुरक्षा संस्कारो की
🌀 द्वितीय दिवस द्वितीय सत्र
विषय - Treassure Hunt Activity
🌀 द्वितीय दिवस तृतीय सत्र समीक्षा सत्र
विषय - पहचान रिश्तों की
🌀 द्वितीय दिवस चतुर्थ सत्र आस्था सत्र (गुरु इंगित शनिवार सामयिक)
विषय - करे समता रस का पान, श्रावकत्व बने पहचान
🌀 द्वितीय दिवस पंचम सत्र निखार सत्र
विषय Aspiring a new me- एक नई पहचान
🌀 तृतीय दिवस सम्बोधन सत्र (समापन सत्र)
विषय - व्यवहार में झलके जैन संस्कार
दिनांक - 17 से 19-08-2018
प्रस्तुति -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 चेन्नई (माधावरम): "अष्ट दिवसीय प्रेक्षाध्यान शिविर" का शुभारंभ..
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 21 अगस्त 2018
प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻
Update
💢 *निमंत्रण* 💢
*216 वां भिक्षु चरमोत्सव*
💥 *विराट भिक्षु भक्ति संध्या*
*दिनांक 22 सितम्बर 2018, सिरियारी*
*आयोजक-निमंत्रक - आचार्य श्री भिक्षु समाधि स्थल संस्थान, सिरियारी*
प्रसारक -🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙
📝 *श्रंखला -- 406* 📝
*कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र*
*जन्म एवं परिवार*
गतांक से आगे...
प्रबंध चिंतामणि के अनुसार जब बालक चांगदेव आठ वर्ष का था, तब अपने समवयस्क बालकों के साथ क्रीड़ा करता हुआ देव मंदिर में पहुंच गया। संयोग से वहां देवचंद्रसूरि पधारे हुए थे। अपनी मस्ती में क्रीड़ा करता हुआ बालक देवचंद्रसूरि के पट्ट पर बैठ गया। बालक के शरीर पर शुभ लक्षणों को देखकर देवचंद्रसूरि ने सोचा 'अयं यदि क्षत्रियकुले जातस्तदा सार्वभौमचक्रवर्ती, यदि वणिग्-विप्रकुले जातस्तदा महामात्यः चेद्दर्शनं प्रतिपद्यते तदा युगप्रधान इव कलिकालेऽपि कृतयुगावतारमपि।' यह बालक क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुआ है तो अवश्य ही चक्रवर्ती पद ग्रहण करेगा और वणिक् पुत्र अथवा विप्र पुत्र है तो महामात्य पद को सुशोभित करेगा। धर्मसंघ में प्रविष्ट होकर यह बालक युगप्रवर्तक होगा। कलिकाल में यह कृतयुग का अवतार होगा।
बालक को प्राप्त करने के लिए उन्होंने तत्रस्थ नागरिकों एवं व्यापारिक बंधुओं से संपर्क किया। उनको साथ लेकर वे चाचिग के घर गए। चाचिग संयोग से वहां नहीं था। वह दूसरे गांव गया हुआ था। पाहिनी गुणवती एवं व्यवहार कुशल महिला थी। अपने प्रांगण में समागत अभ्यागतों का उसने समुचित स्वागत किया। देवचंद्रसूरि का धार्मिक विधिपूर्वक अभिनंदन किया। समागत बंधुओं ने देवचंद्रसूरि के आगमन का उद्देश्य पाहिनी को बतलाया और धर्म संघ के लिए पुत्र अर्पण करने की बात कही। पुत्र के लिए गुरु का ससंघ पदार्पण आपके घर हुआ है। योग्य पुत्र की वह माता है, उसे इसका हर्ष था, परंतु वह पति के विरोध की आशंका से चिंतित थी। समागत बंधुजनों के सम्मुख हर्ष मिश्रित आंसुओं का विमोचन करती हुई पाहिनी बोली "गुरुवर्य! एतस्य पिता नितान्तमिथ्यादृष्टिः (इस बालक के पिता नितांत मिथ्यादृष्टि हैं।) वे घर पर नहीं है। मैं धर्म संकट में हूं। उनकी सहमति के बिना यह कार्य कैसे संभव हो सकता है?"
पाहिनी को समझाते हुए श्रेष्ठिजन बोले "बहिन! तुम अपनी ओर से इसे गुरु को प्रदान कर दो। माता का संतान पर पूरा अधिकार होता है।"
गणमान्य श्रेष्ठिजनों के कथन पर पाहिनी ने अपना पुत्र देवचंद्रसूरि को अर्पित कर दिया। देवचंद्रसूरि ने बालक की इच्छा जानने चाही और उससे पूछा "वत्स! तू मेरा शिष्य बनेगा?" बालक ने स्वीकृति सूचक सिर हिलाकर 'आम' कहकर अपनी भावना प्रकट की और वह शिष्य बनने के लिए सहर्ष तैयार हो गया।
*चाचिग जब घर लौटा तब पुत्र चांगदेव को वहां न पाकर उसकी क्या प्रतिक्रिया हुई...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡
📜 *श्रंखला -- 60* 📜
*मदनचंदजी राखेचा*
*श्रद्धा ग्रहण*
मदनचंदजी राखेचा बीकानेर के एक प्रभावशाली श्रावक थे। वे और उनके भाई फकीरचंदजी संवत् 1906 में तेरापंथी बने थे। उस वर्ष युवाचार्य जय का वहां चातुर्मास था। उससे पूर्व अपनी अग्रणी अवस्था में भी उन्हें स्थान संबंधी काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। उनके वे दोनों ही चातुर्मास नगर के बाहर बगीची में हुए। आखिर उन कठिनाइयों ने ही उस समस्या को सदा के लिए सुलझा भी दिया। दूसरे चातुर्मास के मध्यकाल में उन्हें नगर में स्थान मिल गया। उस चतुर्मास में नथमलजी बैद आदि अनेक प्रभावशाली व्यक्ति श्रद्धालु बने थे और उक्त तृतीय चातुर्मास में मदनचंदजी राखेचा आदि।
*नरेश के कृपापात्र*
राखेचा परिवार अनेक पीढ़ियों से राज-सेवा करता चला आ रहा था। मदनचंदजी ने भी अपनी पैतृक परंपरा के अनुसार वही कार्य क्षेत्र चुना। वे अपने कार्य में बड़े निपुण व्यक्ति थे। इसीलिए तत्कालीन बीकानेर नरेश की उन पर बड़ी कृपा दृष्टि थी। राज्य के अनेक गोपनीय तथा अंतरंग कार्यों में नरेश उनका विश्वस्त व्यक्ति के रूप में काफी उपयोग किया करते थे।
*धार्मिक वृत्ति*
उनकी धार्मिक वृत्ति प्रारंभ से ही बहुत अच्छी थी। तेरापंथी बनने के पश्चात् वह और अधिक प्रबल हो गई। प्रतिदिन सामायिक करते, अनेक प्रकार के प्रत्याख्यान करते। समय-समय पर तपस्या के विभिन्न थोकड़े करते रहते। प्रतिमाह पौषधयुक्त उपवास नियमित रूप से करते। पर्युषण काल में संवत्सरी पर प्रतिवर्ष तेले की तपस्या और उसमें पूर्ण मौन के साथ पौषध करते। उन तीनों दिनों के लिए वे नरेश के पास से पहले ही छुट्टी ले लिया करते थे।
*पचास का सामना*
स्थानीय ओसवाल समाज में उनकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। वे स्वभाव से दबंग और निर्भय व्यक्ति थे। शरीर बड़ा फुर्तीला और बलिष्ठ था। हाथ में प्रायः एक डंडा रखा करते थे। एक बार किसी बात को लेकर वहां के पुष्करणा ब्राह्मणों के साथ उनका झगड़ा हो गया। बात ही बात में लगभग पचास ब्राह्मण वहां एकत्रित हो गए। अनेकों के हाथ में लाठी भी थी। मदनचंदजी को उनके आक्रामक रुख को समझते देर नहीं लगी। यद्यपि वे अकेले थे। शस्त्र के नाम पर उनके हाथ में मात्र एक डंडा था, फिर भी वे घबराए नहीं, अपितु 'भागो यहां से' कहते हुए वे चीते जैसी फुर्ती से उन पर ऐसे झपटे की सब हक्के-बक्के होकर भाग खड़े हुए। कुछ व्यक्तित्व के प्रभाव ने और कुछ डंडे के घुमाव ने उन सबको मानसिक स्तर पर ऐसा भयग्रस्त बना दिया कि हाथों में लाठियां होने पर भी कोई उनका सामना करने का साहस नहीं कर पाया। उस स्थिति को उसी समय एक सेवग ने अपने पद्य में इस प्रकार अभिव्यक्त किया था—
"पोकरणा की डांग, मद्दू को घेसलो,
पोकरणा पच्चास, मद्दू एकलो"
*श्रावक मदनचंदजी राखेचा के राजभवन में पौषध करने की घटना* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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