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तम गोमटेशम पनणामिर्चम! 😍 wonderful pic
जिनकी देह आकाश के समान निर्मल है, जिनके दोनों कपोल जल के समान स्वच्छ हैं, जिनके कर्ण पल्लवसकन्धों तक दोलायित हैं, जिसकी दोनों भुजाएं गजराज की सूंड के समान लम्बी एवं सुंदर हैं- ऐसे उन गोमटेश स्वामी को मैं प्रतिदिन प्रणाम करता हूं.. ऐसे अजर अमर बाहुबली को मेरा प्रणाम हैं!
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क्या बिना सत्यता जाने कोई खबरे व्हाॅट्सएप्प, फेसबुक पर फाॅर्वर्ड करना चाहिए? इस विषय पर #मुनि_अभयसागर जी मुनिराज (शिष्य- #आचार्यश्री_विद्यासागर जी मुनिराज) के कल विदिशा में प्रवचन हुए
आजतक, नहीं अब तक की जितनी खबरें है उनको बिना सत्यता की जांच किये व्हाॅट्सएप्प एवं फेसबुक पर तुरंत फाॅर्वर्ड करके आप जिनधर्म की प्रभावना नहीं कर रहे, बल्कि उपहास में सहायक बन रहे हैं, उपरोक्त उद्गार मुनि श्री अभयसागर जी महाराज ने प्रातःकालीन प्रवचन सभा में रत्नकरंडक श्रावकाचार की वाचना करते हुये अरिहंतविहार जैन मंदिर,विदिशा में व्यक्त किये! उन्होंने कहा कि "जो अज्ञानी है एवं उस विषय का ज्ञान नहीं है यदि उसके सामने किसी भी प्रकार से कोई धर्म की गलत क्रियारुप समाचार आता है और वह उसकी सत्यता की जांच किये बिना ही तुरंत फाॅर्वर्ड कर देता है तो वह व्यक्ति धर्म की हानि ही करता है। मुनिश्री ने कहा कि शारीरिक रूप से कमजोर, एवं असक्त व मंदबुद्धि के द्वारा उत्पन्न हुई धर्म की गलत क्रिया को छुपाया जाता है न कि उसे उजागर किया जाता है। इसे ही उपगूहन अंग कहते है
उन्होंने कहा कि आजकल तो कोई घटना घटी नहीं कि तुरंत व्हाॅट्सएप्प या फेसबुक पर फाॅर्वर्ड कर देते है जो कि नहीं करना चाहिए! यदि कोई अज्ञानी है, शारीरिक रूप से कमजोर हैं या असक्त एवं बालमुनि के द्वारा की गई धर्म की कोई क्रिया गलत हो भी जाती हैं तो उसको छुपाते है, उसकी निंदा नहीं करते उसे ही उपगूहन अंग कहा जाता हैं।
तीव्र कषाय, कुसंगति,रोग, दरिद्रता,मिथ्योपदेश अथवा मिथ्याद्रष्टियो के चमत्कारिक भुलावों में आकर जो जीव सम्यकदर्शन या सम्यक्चारित्र से विचलित हो जाते हें, अथवा विचलित हो रहे हो तो उन्हे पुनः उसी स्थिति में सुस्थिर एवं सुदृढ करना ही स्थितिकरण अंग कहलाता है। जैसै किसी मरीज की ज्यादा हालत खराब होती है तभी उसे आकस्मिक चिकित्सा हेतु गहन चिकित्सा कक्ष में रखा जाता है,वहाँ पर किसी को आने की इजाजत नहीं होती क्योंकि लोगो की अज्ञानतावस क्रियाओ से उस मरीज का नुकसान हो सकता हैं, उसी प्रकार यदि किसी रत्नत्रयधारी की सल्लेखना चल रही है और कोई जाकर उसके रत्नत्रय की प्रशंसा न कर उसके शारीरिक कमजोरियों को प्रगट करता है तो वह उचित नहीं है इससे वह जीव अपने परिणामों को स्थिर किये था उससे अलग भी हो सकता है उन्होंने कहा कि कभी कभी किसी की यम सल्लेखना चल रही हैं और उसमें यदि आकुलतावस यदि क्षपक रात में जल मांगता है,तो आप क्या करोगे? मुनि श्री ने कहा कि इन विपरीत परिस्थितियों में जल नहीं देना चाहिये।एवं उनके संकल्प को याद दिलाकर उन रत्नत्रयधारी मुनिराज को उनके पद की याद दिलाते हुये संबोधित करना चाहिये संबोधन का अधिकार भी उनके गुरु अथवा किसी रत्नात्रयधारक को ही होता है यह नहीं कि तुरंत ही उसके समाचार को व्हाॅट्सएप्प समूह पर फैला दो आजकल वाटस्एप पर नमक मिर्च लगाकर किसी के बारे में तुरंत जो खबर और प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं वह प्रतिक्रिया को जब तक आपको सही सही जानकारी न हो तब तक व्यक्त न करें। उपरोक्त जानकारी श्री सकल दि. जैन समाज विदिशा के प्रवक्ता अविनाश जैन ने दी।
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हमें बता दो, भारत का नाम 'इण्डिया' किसने रखा? भारत का नाम 'इण्डिया' क्यों रखा गया? भारत 'इण्डिया' क्यों बन गया? क्या भारत का अनुवाद 'इण्डिया' है? इण्डियन का अर्थ क्या है? है कोई व्यक्ति जो इस बारे में बता सके? हम भारतीय है, ऐसा हम स्वाभिमान के साथ कहते नहीं हैं। अपितु गौरव के साथ कहते हैं, 'We are Indian'। कहना चाहिए- 'We are Bhartiye'। भारत का कोई अनुवाद नहीं होता। -आचार्य श्री विद्यासागर जी.. #must_share 🇮🇳
संत विद्यासागर जी ने कहा कि आज जवान पीढ़ी का ख़ून सोया हुआ है। कविता ऐसी लिखो कि रक्त में संचार आ जाय। उसका इरादा 'इण्डिया' नहीं 'भारत' के लिये बदल जाय। वह पहले भारत को याद रखें। भारत याद रहेगा, तो धर्म-परम्परा याद रहेगी। पूर्वजों ने भारत के भविष्य के लिये क्या सोचा होगा? उन्होंने इतिहास के मंन्र को सौंप दिया। उनकी भावना भावी पीढ़ी को लाभान्वित करने की रही थी। वे भारत का गौरव, धरोहर और परम्परा को अक्षुण्ण चाहते थे। धर्म की परम्परा बहुत बड़ी मानी जाती है। इसे बच्चों को को समझाना है। आज ज़िंदगी जा रही है। साधना करो। साधना अभिशाप को भगवान बना देती है। जो हमारी धरोहर है। जिसे हम गिरने नहीं देंगे। महाराणा प्रताप ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया। उनके और उन जैसों के स्वाभिमान बल पर हम आज हैं।
भारत को स्वतन्त्र हुए सत्तर वर्ष हो गए हैं। स्वतन्त्र का अर्थ होता है-'स्व और तन्त्र'। तन्त्र आत्मा का होनाचाहिए। आज हम, हमारा राष्ट्र एक-एक पाई के लिए परतंत्र हो चुका है। हम हाथ किसी के आगे नहीं पसारें। महाराणा प्रताप को देखो, उन जैसा स्वाभिमान चाहिए। उनसे है भारत की गौरवगाथा। आज हमारे भारत की पूछ नहीं हो रही है? मैं अपना ख़ज़ाना आप लोगों के सामने रख रहा हूं। आप लोगों में मुस्कान देख रहा हूँ। मैं भी मुस्करा रहा हूं। हमें बता दो, भारत का नाम 'इण्डिया' किसने रखा? भारत का नाम 'इण्डिया' क्यों रखा गया? भारत 'इण्डिया' क्यों बन गया? क्या भारत का अनुवाद 'इण्डिया' है? इण्डियन का अर्थ क्या है? है कोई व्यक्ति जो इस बारे में बता सके? हम भारतीय है, ऐसा हम स्वाभिमान के साथ कहते नहीं हैं। अपितु गौरव के साथ कहते हैं, 'व्ही आर इण्डियन'। कहना चाहिए- 'व्ही आर भारतीय'। भारत का कोई अनुवाद नहीं होता। प्राचीन समय में 'इण्डिया' नहीं कहा जाता था। भारत को भारत के रूप में ही स्वीकार करना चाहिए। युग के आदि में ऋषभनाथ के ज्येष्ठ पुत्र 'भरत' के नाम पर भारत नाम पड़ा है। उन्होंने भारत की भूमि को संरक्षित किया है। यह ही आर्यावर्त 'भारत' माना नाम गया है। जिसे 'इण्डिया' कहा जा रहा है। आप हैरान हो जावेंगे, पाठ्य-पुस्तकों के कोर्स में 'इण्डियन' का जो अर्थ लिखा गया है, वह क्यों पढ़ाया जा रहा है? इसका किसी के पास क्या कोई जवाब है? केवल इतना लिखा गया है कि अंग्रेज़ों ने ढाई सौ वर्ष तक हम पर अपना राज्य किया, इसलिए हमारे देश 'भारत' के लोगों का नाम 'इण्डियन' का पड़ गया है। इससे भी अधिक विचार यह करना है कि है कि चीन हमसे भी ज़्यादा परतन्त्र रहा है। उसे हमसे दो या तीन साल बाद स्वतन्त्रता मिली है। उससे पहले स्वतन्त्रता हमें मिली है। चीन को जिस दिन स्वतन्त्रता मिली थी, तब के सर्वे सर्वा नेता ने कहा था कि हमें स्वतन्त्रता की प्रतीक्षा थी। अब हम स्वतन्त्र हो गए हैं। अब हमें सर्व प्रथम अपनी भाषा चीनी को सम्हालना है। परतन्त्र अवस्था में हम अपनी भाषा चीनी को क़ायम रख नहीं सके थे। साथियों ने सलाह दी थी कि चार-पाँच साल बाद अपनी भाषा को अपना लेंगे। किन्तु मुखिया ने किसी की सलाह को नहीं मानते हुए चीना भाषा को देश की भाषा घोषित किया। नेता ने कहा चीन स्वतन्त्र हो गया है और अपनी भाषा चीनी को छोड़ नहीं सकते हैं। आज की रात से चीन में की भाषा चीनी प्रारम्भ होगी और उसी रात से वहाँ चीन की भाषा चीनी प्रारंभ हो गयी। भारत में कोई ऐसा व्यक्ति है जो चीन के समान हमारे देश की भाषा तत्काल प्रारम्भ कर दें? कोई भी कठिनाई आ जाय देश के गौरव और स्वाभिमान को छोड़ नहीं सकते हैं। सत्तर वर्ष अपने देश को स्वतन्त्र हुए हो गए हैं। हमारी भाषाऐं बहुत पीछे हो गयी हैं। इंग्लिश भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने की ग़लती हो हैं। मैं भाषा सीखने के लिए इंग्लिश या किसी भी अन्य भाषा को सीखने का विरोध नहीं करता हूँ। किंतु देश की भाषा के ऊपर कोई अन्य भाषा नहीं हो सकती है।इंग्लिश भारत भाषा कभी नहीं थी और न है। वह अन्य विदेशी भाषाओं के समान ज्ञान प्राप्त करने का साधन मात्र है। विदेशी भाषा इंग्लिश में हम अपना सब कुछ काम करने लग जाय, यह ग़लत है। हमें दादी के साथ दादी की भाषा जो यहाँ बुन्देलखण्डी है, उसी में बात करना चाहिए। जो यहाँ सभी को समझ में आ जाती है। मैं कहता हूँ ऐसा ही अनुष्ठान करें।
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News in Hindi
महिमा समाज के साधु श्री वासुदेव बाबा ने सराकोद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी मुनिराज से मिलकर की सार्थक चर्चा
बस्तर और उड़ीसा के दंडकारण्य क्षेत्र के घने वनों में रहने वाले वनवासियों में मांसाहार, शराब, ताड़ी, सल्फी का नशा और हिंसक हमलों, मारकाट से इतर महिमा समाज के साधु श्री वासुदेव बाबा जी ने यहां बदलाव किया। 10 बाय 10 फुट के मिट्टी, लकड़ी के कुटियानुमा कमरा बाबा जी का निवास है। कमरे में बस कुछ किताबें, पूजन सामग्री, जड़ी बूटियां और कुछ पेड़ की छालें जो उनके वस्त्र होते हैं। कुम्भी वृक्ष की छाल की लंगोट और छाल का ही अंग वस्त्र धारण करते हैं। छत्तीसगढ़ के वनांचल बस्तर, दंतेवाड़ा, बीजापुर रीजन के साथ ही उड़ीसा के दंडकारण्य क्षेत्र में विहार करते हुए, घूम-घूमकर धर्म प्रभावना करते हैं।
प्रवचन में सत्य अहिंसा का पालन, नशा मुक्ति, शाकाहार, जीव दया, अपरिग्रह, ईश्वर भक्ति का पालन, माता-पिता गौ माता की सेवा, वृक्षारोपण, जल संरक्षण व पर्यावरण सुधार आदि की बात होती है। ऐसे कठिन हालातों में जबकि बाहरी दुनिया इस क्षेत्र को हिंसा, मांसाहार तथा नशे का गढ़ मानती है संत श्री वासुदेव बाबा जी यहां अहिंसा शाकाहार और नशे से विरत रहने का रास्ता, वनवासियों को दिखा रहे हैं।
संत श्री वासुदेव बाबा सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही भोजन ग्रहण करते हैं। प्रकृति प्रेम के कारण हमेशा पेड़ के तत्वों से बने दोना पत्तल में भोजन लेते हैं। *पत्तल जानवरों के खाने में इस्तेमाल हो जाती है। बर्तन धोने में लगने वाले साबुन से प्रदूषण न हो जल बर्बाद ना हो ऐसी अद्भुत पर्यावरण प्रेम की भावना है। सर्वोदय के उस सिद्धांत को मानते हैं कि प्रकृति से केवल जरुरत भर का लो, अनावश्यक रुप से संग्रहण नहीं करो।
भोजन पूर्णत: शाकाहारी- भोजन में मुख्यता चावल दाल सब्जी होती है। जंगल से आने वाले फल भी ग्रहण करते हैं, लेकिन मांस नशीले पदार्थ पूरी तरह वर्जित है।
*इनका विश्वास है कि छोटे छोटे कीड़े मकोड़े भी प्रकृति का हिस्सा है, यदि इनकी हत्या की जाती है तो पर्यावरण असंतुलन पैदा हो जाएगा और धरती पर जीवन का अस्तित्व संकट में पड़ जाएगा। संत वासुदेव बाबा जी का रात्रि कालीन भोजन ग्रहण का पूर्ण त्याग का कारण बताते हैं रात में जीव सर्वत्र विचरण करने लगते हैं भोजन में आ जाते हैं जिससे भोजन विषाक्त हो जाता है।* इनके अनुष्ठानों में कभी-कभी रात्रिकालीन यज्ञ होता है किंतु उसमें रात्रिकालीन प्रसाद या जल-वितरण नहीं होता।
*इनकी जीवन चर्या अपनी तरह की विशेष है लेकिन भारतीय जैन दर्शन के साधुओं से कुछ-कुछ मिलती-जुलती प्रतीत होती है। उनके साथ मोहम्मद शफीक खान विचार संस्था सागर से जुड़े हुए हैं और शाकाहार अहिंसा के क्षेत्र में समर्पित कार्यकर्ता हैं जो वासुदेव बाबाजी के साथ भी काम करते हैं।
शाकाहार के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रयास के लिए भारत के उपराष्ट्रपति महोदय के कर कमलों से 10 लाख रुपए राशि के महावीर अवार्ड से सम्मानित किया गया है।*
वासुदेव बाबाजी कल परम पूज्य सराकोद्धारक आचार्य श्री ज्ञानसागर जी से मिले और सार्थक चर्चा की। उल्लेखनीय है कि आचार्य श्री ने लंबा समय उड़ीसा, बंगाल, बिहार आदि में सराक जाति के उत्थान के लिए बिताया है व आज भी कईं कार्य चल रहे हैं।
*विगत दिनों वासुदेव बाबाजी आचार्य श्री विद्यासागर जी से भी मिले थे और उनके मंच से प्रवचन भी दिया।*
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