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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 20* 📜
*उद्भवकालीन स्थितियां*
*ग्रह स्थिति*
तेरापंथ के उद्भव में उस समय की विषम धार्मिक स्थितियां जहां प्रत्यक्ष कारण बनी थीं, वहां आकाशीय स्थितियां भी उसमें अदृश्य रूप में सहयोगिनी थीं। यह कोई मनोजन्य कल्पना नहीं, अपितु जैन ग्रंथों के पुष्ट आधार से प्रमाणित एक तथ्य है। तेरापंथ की उत्पत्ति से शताब्दियों पूर्व निर्मित जैन ग्रंथों में की गई भविष्यवाणियां यहां प्रमाणस्वरूप उद्धृत की जा रही हैं।
*कल्पसूत्र* में कहा गया है— 'जिस रात्रि में भगवान् महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया, उसी रात्रि में क्रूर स्वभाव वाला "भस्मराशि" नामक महाग्रह दो सहस्र वर्षों के लिए उनके जन्म-नक्षत्र में संक्रांत हुआ। उसका फल यह होगा कि दो सहस्र वर्ष पर्यंत भगवान् महावीर के शासन की उन्नति में बाधाएं उपस्थित होती रहेंगी। जब वह ग्रह भगवान् के जन्म-नक्षत्र से व्युत्क्रांत हो जाएगा, तब फिर से निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों का उदय और पूजा-सत्कार होगा।'
*वग्गचूलिया* में कहा गया है— 'भगवान् महावीर के निर्वाण के 291 वर्ष पश्चात् संप्रति राजा होगा। उसके पश्चात् 1699 वर्षों तक दुष्ट-जन श्रुत की अवमानना करते रहेंगे। उसके पश्चात् वीर निर्वाण के 1990 वर्ष व्यतीत हो जाने पर संघ तथा श्रुत की जन्मराशि पर "धूमकेतु" नामक ग्रह लगेगा। वह उस राशि पर 333 वर्ष पर्यंत रहेगा। उसके उतर जाने पर संघ और श्रुत का उदय होगा।'
उपर्युक्त उद्धरणों से यह स्पष्ट जाना जा सकता है कि वीर निर्वाण के पश्चात् दो सहस्र वर्ष पर्यंत "भस्मराशि" महाग्रह का दुष्प्रभाव धर्म-शासन को प्रभावित करता रहा और जब उसका समय समाप्त होने को आया तब उसके पर्यवसान से दस वर्ष पूर्व ही "धूमकेतु" नामक ग्रह का दुष्प्रभाव चालू हो गया, जो कि 333 वर्षों तक चलता रहा। दोनों ग्रहों की समन्वित काल गणना करने पर यह निष्कर्ष निकलता है कि वीर निर्वाण के पश्चात् 2323 वर्ष तक उन ग्रहों का दुष्प्रभाव रहा। वीर निर्वाण के 470 वर्ष पश्चात् विक्रम संवत् का प्रवर्तन हुआ, अतः उसके अनुसार यह समय विक्रम संवत् 1853 का होता है।
"भस्मराशि" महाग्रह जब उतरने को हुआ उस समय लोंकाशाह ने धर्म-क्रांति के बीज बोए। उसके उतरते ही वे फलीभूत हुए और विक्रम संवत् 1531 में लोंकाशाह से प्रतिबोधित पैंतालीस व्यक्तियों ने एक साथ दीक्षा ग्रहण की। उन लोंकाशाह के मंतव्य को बड़ी तीव्रता के साथ प्रसारित किया। *लोंकाशाह की हुंडी* में वर्णित श्रद्धा और आचार का मनन करने से प्रतीत होता है कि लोंकाशाह ने शुद्ध परंपरा की स्थापना की थी। यद्यपि "धूमकेतु" ग्रह लग चुका था, परंतु प्रारंभिक काल होने से उसका बल तीव्र नहीं हो पाया। ज्यों ही उसका बल बढ़ा, त्यों ही उस परंपरा में शिथिलता आ गई और लोंकाशाह के अनुयायी अपने क्रांति-मार्ग पर पूर्ववत् सुदृढ़ नहीं रह पाये।
इसी प्रकार "धूमकेतु" उतरने को हुआ, तब विक्रम संवत् 1817 में तेरापंथ का उद्भव हुआ, परंतु जब तक वह पूर्णतः उस राशि से हट नहीं गया तब तक तेरापंथ किसी प्रकार की प्रगति नहीं कर पाया। क्रांति के प्रारंभ में स्वामी भीखणजी आदि तेरह साधु थे, परंतु थोड़े समय पश्चात् ही वे घटकर केवल आठ रह गए। विक्रम संवत् 1853 से पूर्व एक बार के लिए भी तेरह की वह संख्या फिर से सुस्थिर नहीं हो पाई। "धूमकेतु" की अवधि वीर निर्वाण 2323 अर्थात् विक्रम संवत् 1853 में समाप्त हुई। उसी वर्ष मुनि हेमराजजी ने स्वामीजी के पास दीक्षा ग्रहण की और वे तेरहवें साधु हुए। उसके पश्चात् उस संख्या में कभी ह्रास नहीं हुआ। तेरापंथ के लिए क्रमशः चतुर्मुखी प्रगति का समय वस्तुतः वहीं से प्रारंभ हुआ समझना चाहिए। इस आधार पर कहा जा सकता है कि उपर्युक्त ग्रहों की स्थिति के साथ श्रमण-संघ में हानि-विकास की जो भविष्यवाणियां प्राचीन ग्रंथों में की गई थीं, वे यथार्थ प्रमाणित हुईं।
*तेरापंथ के सफल भविष्य के लिए स्वामीजी द्वारा किये गये क्रांतिकारी निर्णयों* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 8* 📖
*अंतर्द्वंद्व का विलय*
आचार्य मानतुंग ने संकल्प किया— मैं भगवान् आदिनाथ की स्तुति करूंगा। संकल्प की क्रियान्विति के क्षण में व्यक्ति सोचता है— मैंने जो संकल्प किया है, उसे कैसे पूरा करूं? इस स्थिति मैं सबसे पहले शक्यता और अशक्यता का विश्लेषण होता है। व्यक्ति यह चिंतन करता है— मैंने जो संकल्प लिया है, वह विचार-पूर्वक लिया है या भावावेश में लिया है? मेरी शक्यता और क्षमता कितनी है? क्या तीर्थंकरों की स्तुति करना मेरे लिए शक्य है? तीर्थंकरों में भी प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ की स्तुति करना संभव है? जब आचार्य मानतुंग ने अपनी क्षमता और शक्ति पर विचार किया तब उनके मन में कुछ विकल्प उठे। आचार्य ने कहा—
*बुद्धया विनापि विबुधार्चितपादपीठ!,*
*स्तोतुं समुद्यतमतिर्विगतत्रपोऽहम्।*
*बालं विहाय जलसंस्थितमिन्दुबिम्ब-*
*मन्यः कः इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम्।।*
आचार्य के मन में पहला विकल्प उठा— क्या भगवान् आदिनाथ की स्तुति करने जितनी बुद्धि मुझ में है? बुद्धि के अभाव में कोई बड़ा काम नहीं हो सकता। *'बुद्धिर्यस्य बलं तस्य'*— जिसके पास बुद्धि है, उसके पास बल है।
बल अनेक प्रकार के होते हैं— धन का बल, सत्ता का बल, नैतिकता का बल आदि। ये सारे बल हैं किंतु बुद्धि का बल नहीं है तो मनुष्य अनेक स्थलों पर मात खा जाता है। हम भारतीय साहित्य को देखें। उसमें अभयकुमार, धन्ना सेठ, रोहक, राजा भोज की सभा के अनेक विद्वान् और संस्कृत कवि, अकबर और बीरबल— बुद्धि संपन्न लोगों की एक श्रृंखला रही है। साहित्य में इन सबके बुद्धि-चातुर्य के अनेक प्रसंग उल्लिखित हैं। बुद्धि एक प्रकार से विजय के लिए कामधेनु है। आचार्य मानतुंग ने सोचा— जिनका पाद-पीठ देवताओं द्वारा पूजित है, उनकी स्तुति का मैंने संकल्प कर लिया है, किंतु मुझ में बुद्धि बल का सर्वथा अभाव है। स्तुति का संकल्प पूरा कैसे होगा? क्या संकल्प का पूरा न हो पाना मेरे लिए लज्जा की बात नहीं होगी?
*आचार्य मानतुंग अपने बुद्धि-बल की अल्पता के विकल्प के संदर्भ में क्या कहते हैं...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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👉 दुबई: U.A.E. -. 'वंदन क्यों' और 'magic of extras' पर कार्यशाला का आयोजन
👉 दिल्ली - अणुव्रत समिति द्वारा चुनाव शुद्धि अभियान
👉 रायपुर - ज्ञानवर्धक GPL प्रीमियर लीग प्रतियोगिता का आयोजन
👉 सूरत - डिजिटल वर्कशॉप का आयोजन
प्रस्तुति: *🌻 संघ संवाद 🌻*
Video
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला १०५* - *अनासक्त चेतना और प्रेक्षाध्यान ८*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
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