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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...
🔰 *सम्बोधि* 🔰
📜 *श्रृंखला -- 11* 📜
*अध्याय~~1*
*॥स्थिरीकरण॥*
*1. ऐं ॐ स्व र्भूर्भुव स्त्रय्या स्त्राता तीर्थंकरो महान्।*
*वर्द्धमानो वर्द्धमानो, ज्ञान-दर्शन-सम्पदा।।*
*2. अहिंसामाचरन धर्मं, सहमानः परीषहान्।*
*वीर इत्याख्यया ख्यातः, परान् सत्त्वानपीडयन्।।*
*3. अहिंसातीर्थमास्थाप्य, तारयन् जनमण्डलम्।*
*चरन् ग्राममनुग्रामं, राजगृहमुपेयिवान्।।*
*(त्रिभिर्विशेषकम्)*
त्रिलोकी के त्राता, महान् तीर्थंकर वर्धमान अहिंसातीर्थ की स्थापना कर जन-जन को तारते हुए एक गांव से दूसरे गांव में विहार करते हुए राजगृह में आए। वे ज्ञान और दर्शन की संपदा से वर्धमान हो रहे थे। उनका आचार था अहिंसा धर्म। वे किसी भी प्राणी को पीड़ित नहीं करते थे और अहिंसा की अनुपालना के लिए परीषहों को सहन करते थे, इसलिए वे 'वीर' नाम से प्रख्यात हुए।
*प्रवचन श्रवण के लिए लोगों का आगमन... मगध के सम्राट श्रेणिक के पुत्र मेघ द्वारा दीक्षा ग्रहण... व रात्रिशयन से उत्पन्न अरति के तीन कारणों से मानसिक विक्षेप... आदि...* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...
प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति
🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏
📖 *श्रृंखला -- 102* 📖
*अभय: प्रकम्पन और परिणमन*
गतांक से आगे...
प्रश्न हुआ— यह उज्जवलता कहां से आई? जो रक्त निकला, वह लाल है। वह उज्जवल कैसे बना? स्तुतिकार ने इस प्रश्न को भी समाहित किया है। हाथी के शरीर से जो खून निकल रहा है, उससे भूमि शोणिताक्त हो गई, रक्त से लाल हो गई। सिंह ने हाथी के कुंभस्थल को विदीर्ण किया। उससे गज-मुक्ताएं टूटकर धरती पर गिरने लगीं। बहुत प्रसिद्ध है गजमुक्ता। एक और शरीर से रक्त बह रहा है, दूसरी ओर कुंभस्थल में जो मोती थे, वे नीचे गिर रहे हैं। मोती हैं श्वेत और रक्त है लाल। दोनों का संयोग उज्जवलता पैदा कर रहा था। वहां लाल रंग की आभा भी आ रही थी और श्वेत रंग की आभा भी आ रही थी। वह भूमिभाग उस उज्जवल आभा से भूषित हो रहा था।
उस सिंह के पंजे रक्त से रंजीत थे। वह भयंकर क्रोधावेश में था। ऐसी स्थिति में मनुष्य क्रमगतः— चरणों के समीप चला गया। सिंह के चरणों के समीप जाने पर भी उसका कुछ अनिष्ट नहीं हुआ। ऐसा लगा, जैसे सिंह ही 'बद्धक्रम' हो गया। उसके पैरों में सांकल आ गई अथवा उसके पैरों को किसी ने कील दिया, बांध दिया। शिकार सामने है पर सिंह के पैर आगे नहीं बढ़ रहे हैं। आदमी के पैर नहीं रुके, किंतु सिंह के पैर रुक गए। इसका कारण प्रस्तुत करते हुए स्तुतिकार कहते हैं— प्रभो! उस आदमी ने आपके क्रमयुग-चरण युगल का सहारा ले रखा था। इसलिए सिंह में वह साहस नहीं जागा कि वह उस आदमी पर आक्रमण करे। मानतुंग ने इस समग्र भावना को समाहित करते हुए प्रस्तुत श्लोक की रचना की—
*भिन्नेभकुंभगलदुज्जवलशोणिताक्त-*
*मुक्ताफलप्रकरभूषितभूमिभागः।*
*बद्धक्रमः क्रमगतं हरिणाधिपोऽपि,*
*नाक्रामति क्रमयुगाचलसंश्रितं ते।।*
कहा जा सकता है— स्तुतिकार ने अतिशयोक्ति की है। यह अर्थवाद है अथवा यथार्थवाद? हम इसकी समीक्षा करें। दो प्रकार की प्रणालियां होती हैं— एक अर्थवाद की और दूसरी यथार्थवाद की। वह अर्थवाद की प्रणाली है, जिसमें बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहा जाता है। वह यथार्थवाद की प्रणाली है, जहां बात को न घटाकर कहा जाता और बढ़ा-चढ़ा कर कहा जाता है। जो जैसा है, उसे वैसा ही कहा जाता है। जो जितना है, उसे उतना ही कहा जाता है। उसमें किसी प्रकार की अतिशयोक्ति नहीं हो सकती। जो स्तुतिकार का स्तवन है, यथार्थवाद है, वह सामान्य पाठ में अर्थवाद जैसा प्रतीत होता है। यह स्वाभाविक चिंतन होता है— आदमी सिंह को कैसे रोक सकता है? सिंह कैसे रुक सकता है? सिंह आदमी से डरेगा अथवा आदमी सिंह से डरेगा? स्थूलदृष्टि से देखें, व्यवहार नय की दृष्टि से देखें तो मानतुंग सूरि की इस स्तुति में अर्थवाद झलकता है। यदि सूक्ष्म जगत् को जानें, सूक्ष्म जगत् में प्रवेश कर सूक्ष्मदृष्टि से विश्लेषण करें तो निष्कर्ष आएगा— यह यथार्थवाद है, ऐसा हो सकता है, ऐसा होता है।
*सूक्ष्म जगत् के सिद्धांत...* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 114* 📜
*आचार्यश्री भीखणजी*
*जीवन के विविध पहलू*
*5. समझाने की उत्तम पद्धति*
*एक टोला शेष रहा*
पादू के उपाश्रय में स्वामीजी ठहरे हुए थे। वे गोचरी जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी अन्य संप्रदाय के दो साधु 'भीखणजी कहां है? भीखणजी कहां है?'— इस प्रकार पूछते हुए आए।
स्वामीजी ने कहा— 'कहिए! क्या काम है? मेरा ही नाम भीखण है।'
आगंतुक साधु बोले— 'आपका बहुत नाम सुना है, अतः बहुत दिनों से देखने की इच्छा थी।'
स्वामीजी— 'आज वह इच्छा तो पूरी हो गई। अब और कुछ कहना हो तो कहिए।'
आगंतुक— 'भीखणजी! आपने अन्य सब कार्य तो अच्छे ही किए, पर एक यह कार्य अच्छा नहीं किया कि हम बाईसटोला के साधुओं को आप असाधु कहते हैं।'
स्वामीजी— 'आप किस टोले के साधु हैं?'
आगंतुक— 'सामीदासजी के।'
स्वामीजी— आपके टोले में एक लिखित मर्यादा है, जिसमें लिखा है कि अन्य इक्कीस टोले का कोई साधु इस टोले में आना चाहे, तो उसे नई दीक्षा देकर ही सम्मिलित किया जाए। क्या आप उक्त मर्यादा को जानते हैं?'
आगंतुक— 'हां, जानते हैं।'
स्वामीजी— 'इस हिसाब से इक्कीस टोले के साधुओं को स्वयं आप लोगों ने ही असाधु ठहरा दिया। अन्यथा नई दीक्षा की आवश्यकता क्यों होती? अब केवल आपके टोले की ही बात रही। उसे इस प्रकार समझिए— भगवान् ने कहा है कि बेले का प्रायश्चित्त आता हो, उसे यदि तेला दिया जाए तो देने वाला उतने ही प्रायश्चित्त का भागी होता है। इस हिसाब से यदि आप अन्य टोले वालों को साधु मानते हैं और अपने में सम्मिलित करते समय नई साधुता देते हैं, तो स्वयं नई साधुता के भागी बनते हैं। अब आप स्वयं ही सोचिए कि क्या स्वयं आपकी मर्यादा से ही आपका टोला असाधु सिद्ध नहीं हो जाता?'
आगंतुक दोनों साधु कहने लगे— 'भीखणजी! आपकी बुद्धि बड़ी तेज है। आपने हमारी मर्यादा से ही हमें असाधु सिद्ध कर दिया।'
*स्वामीजी अपनी बात बहुत ही सहज ढंग से दूसरे के गले उतार देते थे... कुछ घटना प्रसंगों के माध्यम से...* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ
चेतना सेवा केन्द्र,
कुम्बलगुड़ु,
बेंगलुरु,
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परम पूज्य गुरुदेव
अमृत देशना
देते हुए...
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मुख्य प्रवचन के
कार्यक्रम की कुछ
विशेष झलकियां
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दिनांक:
14 अगस्त 2019
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प्रस्तुति:
🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Source: © Facebook
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत मौलिक प्रवचन
👉 *प्रेक्षा वाणी: श्रंखला २२४* - *चित्त शुद्धि और अनुप्रेक्षा ११*
एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*
प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
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🌻 *संघ संवाद* 🌻