28.09.2019 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 28.09.2019
Updated: 28.09.2019
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'सम्बोधि' का संक्षेप रूप है— सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र। यही आत्मा है। जो आत्मा में अवस्थित है, वह इस त्रिवेणी में स्थित है और जो त्रिवेणी की साधना में संलग्न है, वह आत्मा में संलग्न है। हम भी सम्बोधि पाने का मार्ग प्रशस्त करें आचार्यश्री महाप्रज्ञ की आत्मा को अपने स्वरूप में अवस्थित कराने वाली कृति 'सम्बोधि' के माध्यम से...

🔰 *सम्बोधि* 🔰

📜 *श्रृंखला -- 51* 📜

*अध्याय~~4*

*॥सहजानंद-मीमांसा॥*

💠 *भगवान् प्राह*

*18. भावेऽनिर्वचनीयेऽस्मिन, संदेहं वत्स! मा कुरु।*
*बुद्धिवादः ससीमोऽयं, चेतः परं न धावति।।*

वत्स! इस अनिवर्चनीय भाव में संदेह मत कर। इस बुद्धिवाद की अपनी सीमा है, चित्त से आगे इसकी पहुंच नहीं है।

*19. सन्त्यमी द्विविधा भावाः तर्कगम्यास्तथेतरे।*
*अतर्क्ये तर्कमायुञ्जन्, बुद्धिवादी विमुह्यति।।*

भाव— पदार्थ दो प्रकार के होते हैं— तर्कगम्य और अतर्कगम्य। अतर्कगम्य भाव में तर्क का प्रयोग करने वाला बुद्धिवादी उलझ जाता है।

*20. इन्द्रियाणां मनसश्च, भावा ये सन्ति गोचराः।*
*तत्र तर्कः प्रयोक्तव्यः, तर्को नेतः प्रधावति।।*

इंद्रिय और मन के द्वारा जो पदार्थ जाने जाते हैं, उन्हें समझने के लिए तर्क का प्रयोग किया जाता है, उससे आगे तर्क की गति नहीं है।

*21. हेतुगम्येषु भावेषु, युञ्जानस्तर्कपद्धतिम्।*
*अहेतुगम्ये श्रद्धावान्, सम्यग्दृष्टिर्भवेज्जनः।।*

जो हेतुगम्य पदार्थों में हेतु का प्रयोग करता है और अहेतुगम्य पदार्थों में श्रद्धा रखता है, वह सम्यग्दृष्टि है।

*22. आगमश्चोपपत्तिश्च, सम्पूर्णं दृष्टिकारणम्।*
*अतीन्द्रियाणामर्थानां, सद्भावप्रतिपत्तये।।*

अतीन्द्रिय पदार्थों का अस्तित्व जानने के लिए आगम— श्रद्धा और उपपत्ति— तर्क दोनों अपेक्षित हैं। ये मिलकर ही दृष्टि को पूर्ण बनाते हैं।

*23. इन्द्रियाणां मनसश्च, रज्यन्ति विषयेषु ये।*
*तेषां तु सहजानन्द-स्फुरणा नैव जायते।।*

इंद्रियों और मन के विषयों में जिनकी आसक्ति बनी रहती है, उन्हें सहज आनंद का अनुभव नहीं होता।

*आत्मिक आनंद के आवारक तथ्य... महावीर द्वारा साक्षात् अनुभूति का कथन... सहजानंद का उपदेश...* जानेंगे... आगे के श्लोकों में... हमारी अगली श्रृंखला में... क्रमशः...

प्रस्तुति- 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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जैन धर्म के आदि तीर्थंकर *भगवान् ऋषभ की स्तुति* के रूप में श्वेतांबर और दिगंबर दोनों परंपराओं में समान रूप से मान्य *भक्तामर स्तोत्र,* जिसका सैकड़ों-हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन श्रद्धा के साथ पाठ करते हैं और विघ्न बाधाओं का निवारण करते हैं। इस महनीय विषय पर परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी की जैन जगत में सर्वमान्य विशिष्ट कृति

🙏 *भक्तामर ~ अंतस्तल का स्पर्श* 🙏

📖 *श्रृंखला -- 138* 📖

*भक्तामर स्तोत्र व अर्थ*

*29. सिंहासने मणिमयूखशिखाविचित्रे*
*विभ्राजते तव वपुः कनकावदातम्।*
*बिम्बं वियद्विलसदंशुलतावितानम्।*
*तुंगोदयाद्रि-शिरसीव सहस्ररश्मेः।।*

मणियों की किरणों के अग्रभाग से रंग-बिरंगे सिंहासन पर तुम्हारा स्वर्ण के समान उज्जवल शरीर वैसे ही शोभित होता है जैसे उन्नत उदयाचल के शिखर पर आकाश में चमकती हुई किरण लताओं के विस्तार वाला सूर्य का बिंब।

*30. कुन्दावदात-चलचामर-चारुशोभं,*
*विभ्राजते तव वपुः कलधौतकान्तम्।*
*उद्यच्छशांक-शुचिनिर्झर-वारिधार-*
*मुच्चैस्तटं सुरगिरेरिव शातकौम्भम्।।*

कुंद के फूल की तरह उज्जवल चलायमान चंवर से रमणीय शोभा वाला तुम्हारा शरीर श्वेत वर्ण की भांति वैसे ही कमनीय लग रहा है जैसे उदित होते हुए चंद्रमा के समान धवल निर्झर की जलधारा वाला, स्वर्णमय मेरुपर्वत का उन्नत शिखर।

*31. छत्र-त्रयं तव विभाति शशांककान्त,*
*मुच्चैः स्थितं स्थगित भानुकरप्रतापम्।*
*मुक्ताफलप्रकरजालविवृद्धशोभम्,*
*प्रख्यापयत् त्रिजगतः परमेश्वरत्वम्।।*

तुम्हारे मस्तक पर तीन छत्र विभासित हो रहे हैं। वे चंद्रमा तुल्य कांति वाले हैं और सूर्य की रश्मियों के आतप को रोक रहे हैं। मुक्ताफल के समूह से बनी झालर उनकी शोभा बढ़ा रही है। वे छत्र तीन लोक में व्याप्त तुम्हारे परमैश्वर्य का प्रख्यापन कर रहे हैं।

*32. उन्निद्रहेम-नवपंकजपुञ्जकान्ती*
*पर्युल्लसन्-नखमयूखशिखाभिरामौ।।*
*पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र! धत्तः!*
*पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति।।*

हे जिनेन्द्र! विकस्वर अभिनव स्वर्ण-कमल-पुञ्ज की कांति वाले, चमकते हुए नखों की किरणों के अग्रभाग से सुंदर बने हुए तुम्हारे चरण जहां टिकते हैं, वहां देवता कमलों की रचना करते हैं।

*भगवान् ऋषभ का आश्रय लेने से क्या होता है...?* जानेंगे... समझेंगे... प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति -- 🌻 संघ संवाद 🌻

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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।

🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞

📜 *श्रृंखला -- 150* 📜

*आचार्यश्री भीखणजी*

*जीवन के विविध पहलू*

*16. मानव-मन के पारखी*

*तलस्पर्शी ज्ञान*

स्वामीजी मनुष्य के मन में उठने-गिरने वाले भावों को बहुत शीघ्र पकड़ लिया करते थे। आवश्यक होने पर जब कभी वे किसी अन्तश्चिंतित भावना को खोलकर बाहर प्रकट कर देते, तब लोग आश्चर्यचकित होकर सोचा करते कि स्वामीजी ने इस रहस्य को कैसे जाना? वस्तुतः वे मानव-मन के एक अनन्य पारखी थे।

किसी भावना का कोई बिंदु भी यदि उनकी पकड़ में आ जाता तो वे उसी के आधार पर अन्य अनेक बिंदुओं का अनुमान लगाकर पूरी घटना को जान लेते। उनका प्रत्येक अनुमान प्रायः इतना सत्य निकलता की देखने-सुनने वाला यही समझता, मानो स्वामीजी ने किसी विशिष्ट ज्ञान से उसे जाना है। उस युग में दूसरे के मनोभावों को परखने में उन जैसा पटु व्यक्ति शायद ही कोई दूसरा रहा हो। उनका ज्ञान सतही नहीं, तलस्पर्शी होता।

*दीक्षा का भय*

केलवा की एक बहिन अपना बड़प्पन दिखाने के लिए लोगों के सम्मुख बार-बार कहा करती— 'इस बार स्वामीजी यहां पधारेंगे, तब मैं उनके पास दीक्षा ग्रहण कर लूंगी।'

कुछ समय के अनंतर स्वामीजी विहार करते हुए वहां पधार गए। उस बहिन को जब यह पता चला तो ऐसी घबराई कि सहसा ज्वरग्रस्त हो गई। संध्या के समय ज्वर कुछ हल्का पड़ा, तब दर्शन करने आई। थरथराती की आवाज में उसने कहा— 'स्वामीजी! आपका पदार्पण हुआ और मुझे ज्वर चढ़ आया।'

स्वामीजी को उसकी दीक्षा संबंधी घोषणा का पता था, अतः उसके मन को पढ़ते हुए पूछा— 'कहीं दीक्षा के भय से तो तुम्हें ज्वर नहीं हो गया है?'

वह बोली— 'स्वामीजी! मन में थोड़ी घबराहट तो अवश्य हुई थी।'

स्वामीजी— 'तुम्हारा मन इतना निर्बल है, तब दीक्षा लेने की घोषणा क्यों करती रहती हो? दीक्षा कायरों का नहीं, वीरों का मार्ग है।'

*स्वामी भीखणजी किसी के बोलने की ढंग से ही उसके मन के भावों को जान लेते थे...* कुछ प्रसंगों के बारे में जानेंगे... समझेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻

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⏩ *अणुव्रत अनुशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी* द्वारा उद्घोषित *अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह* के अन्तर्गत *अणुव्रत महासमिति* के तत्वावधान में *अणुव्रत समितियों* द्वारा आयोजित कार्यक्रम.....
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🌀 *साम्प्रदायिक सौहार्द दिवस*
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✡ पालघर
☢ हुबली

💦 *जीवन विज्ञान दिवस*
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✡ पीलीबंगा
☢ सादुलपुर
✳ मोमासर
✡ गुवाहाटी
☢ कोटा
✳ गंगाशहर
✡ भीलवाड़ा
☢ राजसंमद
✳ अहमदाबाद

💧 *अणुव्रत प्रेरणा दिवस*
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✡ बल्लारी
☢ दक्षिण मुम्बई
✳ जयपुर

💠 *पर्यावरण शुद्धि दिवस*
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✡ बेंगलुरु
☢ हिसार

⛲ *नशामुक्ति दिवस*
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✡ भीलवाड़ा

❄ *अनुशासन दिवस*
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✡ वाशी (मुम्बई)

👉 हुबली ~ बारह व्रत कार्यशाला का आयोजन
👉 पीलीबंगा ~ भाषण प्रतियोगिता का आयोजन
👉 नागपुर - कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यशाला
👉 हुबली- कनेक्ट टू सक्सेस कार्यशाला का आयोजन
👉 सचिन, सूरत - मुमक्षु अभिनन्दन समारोह
👉 जयपुर शहर ~ स्वागत एवं सम्मान समारोह का आयोजन
👉 काठमांडू (नेपाल) - कनेक्शन विथ सक्सेस कार्यशाला का आयोजन
👉 कृष्णानगर (दिल्ली) ~ तीन दिवसीय प्रेक्षाध्यान कार्यशाला का आयोजन

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

Photos of Sangh Samvads post

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🏭 *_आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना सेवा केन्द्र,_ _कुम्बलगुड़ु, बेंगलुरु, (कर्नाटक)_*

💦 *_परम पूज्य गुरुदेव_* _अमृत देशना देते हुए_

📚 *_मुख्य प्रवचन कार्यक्रम_* _की विशेष_
*_झलकियां_ _________*

🌈🌈 *_गुरुवरो घम्म-देसणं_*

*_अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह:_* अणुव्रत प्रेरणा दिवस

⌚ _दिनांक_: *_28 सितंबर 2019_*

🧶 _प्रस्तुति_: *_संघ संवाद_*

https://www.facebook.com/SanghSamvad/

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*परम पूज्य आचार्य प्रवर*
के प्रातःकालीन *भ्रमण*
के *मनमोहक* दृश्य
*बेंगलुरु____*


*: दिनांक:*
28 सितंबर 2019

💠
*: प्रस्तुति:*
🌻 संघ संवाद 🌻

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Sources

SS
Sangh Samvad
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