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‘विवेक से किए कार्य का परिणाम अच्छा’
अहिंसा यात्रा बनेडिय़ा पहुंची, श्रावकों के साथ सभी ने किया स्वागत
A monk has many ways to do work. 1. Tapasya 2. Swadhayay 3. Seva. He needs to look what is important and should do accordingly. |
रेलमगरा. धर्मसभा में प्रवचन सुनते श्रावक।
रेलमगरा (ग्रामीण) 11 Apr-2011(जैन तेरापंथ ब्योरो मुम्बई)
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि एक साधु के सामने अनेक मार्ग हैं। पहला तपस्या, दूसरा स्वाध्याय, तीसरा सेवा का। साधु को अपने आप कब, कौन सा कार्य करना है, इस बात का विवेक होना चाहिए। विवेक युक्त किए कार्य का परिणाम अच्छा आता है। विवेक शून्य का परिणाम कई बार खराब आ जाता है। इसलिए अकस्मात कोई काम नहीं करना चाहिए। उतावलेपन में किया निर्णय कभी-कभी भारी हानि पहुंचा सकता है।
वे रविवार को बनेडिय़ा में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राव गंगासिंह चौहान व विशिष्ट अतिथि तहसीलदार प्यारेलाल शर्मा, उपखंड अधिकारी राजेंद्रप्रसाद अग्रवाल, थानाधिकारी लीलाधर मालवीय, महेंद्र कर्णावट, गंगापुर नगरपालिका अध्यक्ष पूनम मेहता, उत्तमचंद्र सुखलेचा, मिश्रीलाल बोहरा, शांतिलाल, अध्यक्ष नरेंद्र लोढ़ा, आनंदीलाल आदि थे। बनेडिय़ा से अहिंसा यात्रा सादड़ी गांव पहुंची। यहां आचार्य ने ग्रामीणों की भावना एवं किसानों को देखकर रुकना मुनासिब समझ उन्हें पाथेय प्रदान किया। आचार्य ने कहा कि हम अहिंसा यात्रा इसलिए कर रहे हैं कि इससे व्यक्ति व्यसन मुक्त बने। भ्रूण हत्या जैसे कार्य न हों व लोगों में नैतिकता का विकास हो, आपस में भाईचारा बढ़े।
नाथद्वारा 11 Apr-2011 (जैन तेरापंथ ब्योरो मुम्बई)
प्रवचन करते आचार्य महाश्रमण।
आचार्य महाश्रमण के रविवार शाम पांच बजे ढीली गांव में प्रवेश करने पर अगवानी में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। आचार्य के ढीली गांव में सोनी फार्म पहुंचने पर कांगे्रस के वरिष्ठ नेता देवकीनंदन गुर्जर, मदनलाल सोनी, रमेश सोनी, रेलमगरा प्रधान रेखा अहीर ने स्वागत किया। इस दौरान नगरपालिका अध्यक्ष गीता शर्मा, ओमप्रकाश शर्मा आदि मौजूद थे।
धर्म, अर्थ, काम में संतुलन सुखद गृहस्थी का आधार
रेलमगरा 11 Apr-2011 (जैन तेरापंथ ब्योरो मुम्बई)
सुखद गृहस्थ जीवन जीने के लिए मानव को अर्थ, धर्म व काम में संतुलन बनाकर रखना चाहिए, तभी हम गृहस्थ जीवन का पूरा आनंद ले पाएंगे। यह विचार शनिवार शाम आचार्य महाश्रमण ने चंद्रशांता कॉम्प्लेक्स के बाहर आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि तीनों में किसी भी एक का कम होने से जीवन का संतुलन बिगड़ जाता है। आचार्य ने समझाते हुए कहा कि इनकी अधिकता भी नुकसानदायक है, क्योंकि अर्थ की अधिकता से मानव में छल-कपट और बढ़ जाता हैं। धर्म की अधिकता से परिवार छूट जाता है तथा काम की अधिकता में मानव दानव का रूप ले लेता है।
आचार्य भिक्षु स्वामी के अद्र्ध चातुर्मास की पावनधरा कोठारिया में महाश्रमणी साध्वी प्रमुखा श्री कनकप्रभा जी आचार्य श्री महाश्रमण जी