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Jasol: 12.07.2012
Acharya Mahashraman said that purity of soul should be aim of life.
News in Hindi
नश्वर शरीर का आध्यात्मिक लाभ
बालोतरा जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
अध्यात्म के आचार्यों ने जीवन का एक लक्ष्य निर्दिष्ट किया- आत्मा शोधन। आत्मा की शुद्धि के लिए अध्यात्म व धर्म की आराधना की जाती है। धर्म की साधना करने के लिए महत्वपूर्ण साधन बनता है शरीर। जब तक शरीर स्वस्थ है यानी जब तक बुढ़ापा नहीं आता, व्याधियां नहीं बढ़ती और इंद्रियों की शक्ति क्षीण नहीं होती, तब तक धर्म की आचरण किया जा सकता है। शरीर को धारण करने का और उसको उचित आहार से पुष्ट रखने का एकमात्र उद्देश्य है कि पूर्व संचित कर्मों का क्षय किया जा सके और संयम की साधना से नए कर्मों को रोका जा सके। शरीर-धारण का यह एक आध्यात्मिक लक्ष्य है। यदि लक्ष्य सामने है तो शरीर को टिकाने की भी सार्थकता है। कोई लक्ष्य न हो तो फिर शरीर को टिकाने का अधिक प्रयास क्यों किया जाए? शरीर को बनाए रखने के लिए अनेक पदार्थों की आवश्यकता होती हैं। उनमें एक है-भोजन। भोजन शरीर को पुष्ट रखने और टिकाने के लिए अति आवश्यक है। भोजन के बिना कुछ समय तक जीवन जीया जा सकता है पर लंबे समय तक नहीं जीया जा सकता। जीवन चलाने के लिए भोजन करना आवश्यक है किंतु भोजन के साथ विवेक भी आवश्यक होता है। कब, किस समय, क्या, कितना और कौनसा भोजन करना चाहिए? यह व्यक्ति पर निर्भर करता है। उपवास यदि निर्जरा का साधन बनता है तो भोजन भी निर्जरा का साधन बन सकता है। बशर्ते भोजन का उद्देश्य स्पष्ट हो। जीने के लिए भोजन किया जाए। भोजन के लिए न जीया जाए। निर्जरा के बारह प्रकार बताए गए हैं। उनमें पहला भेद
है- अनशन। अनशन के दो प्रकार प्रज्ञप्त हैं- इत्वरिक और यावत्कथिक। वर्तमान काल में परिप्रेक्ष्य में उपवास से लेकर छह महीने तक की जो तपस्या की जाती है, वह इत्वरिक अनशन कहलाता है। जीवन पर्यन्त के लिए जो अनाहार की साधना स्वीकार की जाती है, वह यावत्कथिक कहलाता है। अनशन की साधना सबके लिए स्वीकार्य नहीं हो सकती। हालांकि मेरा तो यह मंतव्य है कि उपवास जिस व्यक्ति के लिए अनुकूल रहे, उसे उपवास या कुछ दिनों के लिए एकांतर अवश्य करना चाहिए। किंतु जिन व्यक्तियों के लिए उपवास अनुकूल नहीं रहता। उनके लिए ऊनोदरी तप बड़ा लाभदायी होता है। किसी ने पूछा कि पाचक दवा कौनसी होती है? उत्तर दिया गया कि सबसे अच्छी पाचक दवा ऊनोदरी तप होती है। खाने से संयम रहेगा तो पाचन अपने आप ठीक होगा। यह ऊनोदरी का तप और भी अनेक दृष्टियों से लाभदायी होता है। स्वाध्याय, इंद्रिय-संयम, कषाय-शमन आदि की साधना में ऊनोदरी योगभूत बनती है। इस प्रकार आयुर्वेद और धर्मशास्त्र में भोजन के विषय में अनेक नियम उन नियम व्याख्यात है।
आचार्य महाश्रमण