Chobisi is a set of 24 devotional songs dedicated to the 24 Jain Tirthankaras.
Composed by: | Dedicated to: | ||
Language: Rajasthani:
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21 | Stavan for Bhagwan Naminatha | ||
Acharya Tulsi | 5:32 | ||
Babita Gunecha | 3:42 |
Language: Hindi
Author: Acharya Tulsi
अर्थ~~21~~तीर्थंकर नमि प्रभु
नमिनाथ प्रभो! तुम अनाथों के नाथ हो ।मैं बद्धांजलि हो तुम्हे नित्य प्रणाम करता हूँ। तुम कर्म- बंधन को छिन्न करने के लिए सुप्रसिद्ध वीर हो।
तुमने अमृतरसमय ध्यान किया और केवल-युगल (केवलज्ञान और केवलदर्शन) प्राप्त कर लिया ।तुम्हारे जीवन में उत्तम -उत्तम गुण प्रकट हुए।
जगतारक दीनदयाल!तुमने विशाल वाणी में देशना दी।वह तुम्हारी वाणी क्षीर-समुन्द्र से भी अधक रसमय थी।
तुमने मिथ्यात्व रूपी अंधकार को दूर करने के लिए चार तीर्थ(साधू,साध्वी,श्रावक,श्राविका) स्थापित किये।देव और मनुष्य -समूह तुम्हारी उपासना करते है।
अनुत्तर विमान के अहमिन्द्र देव तुम्हारी उपासना करते है वे वहाँ बैठे-बैठे प्रश्न करते है, तुम उन्हें उत्तर देते हो।वे अवधिज्ञान द्वारा उसे जान लेते है।
वे वहां बैठे-बैठे तुम्हारा ध्यान करते है।तुम्हारी योगमुद्रा को अन्तः करण से चाहते है।वे तुम्हारी भावना से भावित हो जाते है।
मैंने प्रभु के गुण गाये, इससे मुझे अपार आनन्द और हर्ष हुआ।
रचनाकाल-वि. सं.१९००, आश्विन कृष्णा चतुर्थी।
English Translation:
21st Tirthankara Naminatha
Lord Naminatha! You are the protector of orphans. I beseechingly bow before you everyday. You are the eminent mighty, who diminishes the snare of Karma.
You did the meditation of delightful ambrosia and attained the pair of Keval - Keval Gyan and Keval Darshan. Transcendental merits appeared in your life.
Mighty saviour of universe! Merciful! You gave sermons in a magnificent voice, which was more delightful than the Ksheer Samudra (the ocean which has very delicious and sweet water or milk).
You founded four Tirtha (Sadhu, Sadhvi, Shravak and Shravika) to dispel the obscurity of Mithtatva. Manushya and Deva groups worship you.
Deities of Anuttar Vimana (The top heaven), Ahmindra also worship you. They interrogate from there, being seated only, you respond to them which they understand by Avadhi Gyan.
They cherish you being seated there only. They like your Yoga posture by conscience. They become fanciful in your idolum.
I have glorified the God, I got a shoreless rejoice by this.
Time of Composing: V.S 1900, 4th day of Krishna Ashwin.