Update
Source: © Facebook
कुण्डलपुर क्षेत्र के मुख्य कार्यालय में यह अद्भुत कलाकृति है जिसमे चावल के दानों पर पूरा भक्तामर स्तोत्र लिखा हुआ है। आप क्षेत्र पर जाए तो इसे अवश्य देखें.. Pic by brajesh jain -bug thnks him:))
Source: © Facebook
Maitree Samooh is proud to announce the YJA 2016. Carrying the legacy forward of Young Jaina Award functions, we are pleased to launch YJA 2016.
Please apply here: http://goo.gl/166O27
#Maitreesamooh
#YoungJainaAwards
#YJA
#MuniKshamaSagar
Source: © Facebook
हम भूल गए हर द्वार, मगर तेरा द्वार नहीं भूले..
Source: © Facebook
शंका समाधान
==========
१. अपनी किसी भी बुराई को ठीक करने के लिए सबसे पहले बुराई स्वीकार करना सीखिए!
२. एक नियम सभी लोग आज ही ले लीजिए की किसी भी शोक सभा में जाए तो उस घर में पानी के अलावा कुछ और ना लें! उसके घर पर भोजन करना अमानवीय कृत्य है! ये उस व्यक्ति की चिता पर रोटी सेकने जैसा है! अगर कही दूसरे शहर गए हो शोक सभा के लिए, तो भी नियम ले लीजिए की कड़ाई का चढ़ा कुछ भी नहीं लूँगा और केवल खिचड़ी ही खाऊंगा वो भी अगर कही और भोजन की व्यवस्था ना बन सके तब!
३. शास्त्रों में संतान को ४ तरह का बताया है:
१. अतिजात - जो कुल के यश में ४ चाँद लगा दे! २. अनुजात - जो अगर कुल का नाम रोशन ना कर पाये तो कम से कम बदनाम ना करे! ३. अवजात - जो कुल के नाम में दाग लगा दे! ४. कुलांगजात - जो संतान रावण की तरह हो!
४. शास्त्रों के अनुसार देव, गुरु के साथ माँ-बाप का आशीष भी फलता है!
५. शंका समाधान में भक्तों को प्रश्न ऐसे करने चाहिए की जो सभी के लिए उपयोगी हो! ध्यान रखे की आपने अगर १ सेकंड भी बर्बाद कर दिया तो करोणों सेकंड्स बर्बाद हो गए क्योंकि करोणों लोग TV के माध्यम से देख रहे हैं और सभी का १ सेकंड्स बर्बाद हो गया!
६. जब तक मनुष्य द्रण संकल्पित नहीं होता तब तक वो अपने जीवन में कोई परिवर्तन नहीं ला सकता! जब भी मन में दृणता आये, तभी संकल्प ले लेना चाहिए और फिर जीवन भर उसका दृणता पूर्वक पालन करना चाहिए!
- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज
Update
Source: © Facebook
Menaka Gandhi.. acharya shri ke darshan karte hue.. www.jinvaani.org
Source: © Facebook
Waoo
Source: © Facebook
***संतोष भाव***
पूज्य आचार्य श्री विराग सागरजी महाराज की जय जय जय..
--- ♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---
News in Hindi
Source: © Facebook
***गर्भ कल्याणक पर्व आज 22 जून 2016***
आदिप्रभु आदिनाथ भगवान्, हम सबके बड़े बाबा का आज गर्भ कल्याणक।।।
धन्य थी माता उनके गर्भ में प्रभु ने अवतरण लिया।।।
जय हो,जय हो, जय हो।।।।।
Source: © Facebook
कचनेर वाले श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ भगवान की जय जय जय...
"जय जिनेन्द्र"
"जय जय गुरुदेव"
--- ♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---
Source: © Facebook
entire sangh.. @kundalpur and acharya shri aahar mudra me bhojna ke liye nikalte hue:) 1 hour pahle click ki hui picha:) pic by shobhit jain, indore -big thanks him!!
Source: © Facebook
Acharya shri LIVE aahar ko jaate:)) आओ आओ जी आओ महाराज पधारो म्हारे आँगनिया
Source: © Facebook
अधिक प्राचीन है जैन yog परम्परा -डॉ अनेकांत कुमार जैन
योग भारत की विश्व को प्रमुख देन है | यूनेस्को ने २ ओक्टुबर को अहिंसा दिवस घोषित करने के बाद २१ जून को विश्व योग दिवस की घोषणा करके भारत के शाश्वत जीवन मूल्यों को अंतराष्ट्रिय रूप से स्वीकार किया है |इन दोनों ही दिवसों का भारत की प्राचीनतम जैन संस्कृति और दर्शन से बहुत गहरा सम्बन्ध है |जैन श्रमण संस्कृति का मूल आधार ही अहिंसा और योग ध्यान साधना है |इस अवसर पर यह जानना अत्यंत आवश्यक है कि जैन परंपरा में योग ध्यान की क्या परंपरा,मान्यता और दर्शन है? और वह कितना प्राचीन है?
जैन योग की प्राचीनता और आदि योगी
जैन योग का इतिहास बहुत प्राचीन है |प्राग ऐतिहासिक काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने जनता को सुखी होने के लिए योग करना सिखाया |मोहन जोदड़ो और हड़प्पा में जिन योगी जिन की प्रतिमा प्राप्त हुई है उनकी पहचान ऋषभदेव के रूप में की गयी है | मुहरों पर कायोत्सर्ग मुद्रा में योगी का चित्र प्राप्त हुआ है,यह कायोत्सर्ग की मुद्रा जैन योग की प्रमुख विशेषता है |इतिहास गवाह है कि आज तक प्राचीन से प्राचीन और नयी से नयी जितनी भी जैन प्रतिमाएं मिलती हैं वे योगी मुद्रा में ही मिलती हैं | या तो वे खडगासन मुद्रा की हैं या फिर वे पद्मासन मुद्रा की हैं|खडगासन में ही कायोत्सर्ग मुद्रा उसका एक विशिष्ट रूप है | नासाग्र दृष्टि और शुक्ल ध्यान की अंतिम अवस्था का साक्षात् रूप इन प्रतिमाओं में देखने हो सहज ही मिलती है | इन परम योगी वीतरागी सौम्य मुद्रा के दर्शन कर प्रत्येक जीव परम शांति का अनुभव करता है और इसी प्रकार योगी बन कर आत्मानुभूति को प्राप्त करना चाहता है |
जैन योग की अवधारणा
अंतिम तीर्थंकर महावीर ने भी ऋषभ देव की योग साधना पद्धति को आगे बढ़ाते हुए सघन साधना की | उनका अनुकरण करते हुए उन्हीं के समान आज तक नग्न दिगंबर साधना करके लाखों योगी आचार्य और साधू हो गए जिन्होंने जैन योग साधना के द्वारा आत्मानुभूति को प्राप्त किया |जैन साधना पद्धति में योग और संवर एक ही अर्थ में प्रयुक्त हैं |प्रथम शताब्दी के आचार्य अध्यात्म योग विद्या के प्रतिष्ठापक आचार्य कुन्दकुन्द दक्षिण भारत के एक महान योगी थे उन्होंने प्राकृत भाषा में एक सूत्र दिया "आदा मे संवरो जोगो "अर्थात यह आत्मा ही संवर है और योग है |जैन तत्त्व विद्या में जो संवर तत्त्व है वह ही आज की योग शब्दावली का द्योतक है|
ध्यान की विशेषता
भगवान् महावीर ने ध्यान के बारे में एक नयी बात कही कि ध्यान सिर्फ सकारात्मक ही नहीं होता वह नकारात्मक भी होता है |दरअसल आत्मा को जैन परंपरा ज्ञान दर्शन स्वभावी मानती है |ज्ञान आत्मा का आत्मभूत लक्षण है,किसी भी स्थिति में आत्मा और ज्ञान अलग नहीं होते और वह ज्ञान ही ध्यान है,चूँकि आत्मा ज्ञान के बिना नहीं अतः वह ध्यान के बिना भी नहीं |पढ़कर आश्चर्य लगेगा कि कोई ध्यान मुद्रा में न बैठा हो तब भी ध्यान में रहता है |महावीर कहते हैं मनुष्य हर पल ध्यान में ही रहता है,ध्यान के बिना वह रह नहीं सकता | ध्यान दो प्रकार के हैं नकारात्मक और सकारात्मक | आर्तध्यान और रौद्रध्यान नकारात्मक ध्यान हैं तथा धर्म ध्यान और शुक्लध्यान सकारात्मक ध्यान हैं |मनुष्य प्रायः नकारात्मक ध्यान में रहता है इसलिए दुखी है,उसे यदि सच्चा सुख चाहिए तो उसे सकारात्मक ध्यान का अभ्यास करना चाहिए |वह चाहे तो धर्म ध्यान से शुभ की तरफ आगे बढ़ सकता है और शुक्ल ध्यान को प्राप्त कर निर्विकल्प दशा को प्राप्त कर सकता है | इस विषय की गहरी चर्चा जैन शास्त्रों में मिलती है |वर्तमान में आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा प्रवर्तित प्रेक्षाध्यान एवं जैन योग देश में तथा विदेशों में काफी लोकप्रिय हो रहा है |
जैनयोग के विविध आयाम –
भगवान् महावीर ने योग विद्या के माध्यम से कई साधना के कई नए आयाम निर्मित किये |जैसे भावना योग,अनुप्रेक्षा,अध्यात्म योग,आहार योग,प्रतिमा योग, त्रिगुप्ति योग,पञ्चसमिति योग,षडआवश्यक योग, परिषह योग,तपोयोग, सामायिक योग,मंत्र योग,लेश्या ध्यान,शुभोपयोग, शुद्धोपयोग, सल्लेखना और समाधि योग आदि | एक साधारण गृहस्थ और मुनि की साधना पद्धति में भी भगवान् ने भेद किये हैं |साधक जब घर में रहता है तो उसकी साधना अलग प्रकार की है और जब वह गृह त्याग कर संन्यास ले लेता है तब उसकी साधना अधिक कठोर हो जाती है |आज भी जैन मुनियों की साधना और उनकी दिनचर्या उल्लेखनीय है |
जैन योग साहित्य -
जैन आचार्यों ने योग एवं ध्यान विषयक हजारों ग्रंथों का प्रणयन प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में किया है |उनमें आचार्य कुन्दकुन्द के अध्यात्म योग विषयक पञ्च परमागम,अष्टपाहुड, पूज्यपाद स्वामी का इष्टोपदेश,सर्वार्थसिद्धि,आचार्य गुणभद्र का आत्मानुशासन,आचार्य शुभचन्द्र का ज्ञानार्नव,आचार्य हरिभद्र का योग बिंदु,योगदृष्टि समुच्चय आदि दर्जनों ग्रन्थ आचार्य योगेंदु देव की अमृताशीति,जोगसारु आदि,आचार्य हेमचन्द्र का योगदर्शन आदि प्रमुख हैं |आधुनिकयुग में भी आचार्य विद्यानंद जी,आचार्य विद्यासागर जी,आचार्य तुलसी,आचार्य महाप्रज्ञ,आचार्य शिवमुनि,आचार्य हीरा,आचार्य देवेन्द्र मुनि,आचार्य आत्माराम आदि अनेकों संतों द्वारा तथा अनेक जैन अध्येताओं द्वारा जैन ध्यान योग पर काफी मात्र में शोध पूर्ण साहित्य का प्रकाशन हुआ है तथा निरंतर हो रहा है |
भारतीय योग विद्या को श्रमण संस्कृति का योगदान इतना अधिक है कि उसकी उपेक्षा करके भारतीय योग विद्या के प्राण को नहीं समझा जा सकता |वर्तमान में प्रसन्नता का विषय है कि योग को सरकारी स्तर पर पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया जा रहा है,मेरा निवेदन है कि पाठ्यक्रमों में योग को पढ़ाते समय श्रमण संस्कृति की योग विद्या से भी अवश्य अवगत करवाना चाहिए |. FWD it everywhere
Dr Anekant kumar jain
[email protected]
Source: © Facebook
शंका समाधान
==========
१. आज सब लोग दुर्योधन के समान हैं, धर्म जानते सब हैं लेकिन करता कोई नहीं हैं!
२. लोग भगवान की बात करते जरूर हैं लेकिन उनको ह्रदय में नहीं रखते!
३. प्रतिकूल परिस्तिथियों में दृणता बनाए रखे!
*******************************************
४. प्रतिभा स्थली, लड़कियों के लिए स्वर्ग है! उच्च स्तरीय सुविधाओं के साथ उच्च स्तरीय पाठ्यक्रम है! वहां के संस्कार अद्भुत हैं! प्रतिभा स्थली में पड़े हुए बच्चों की English, अंग्रेजी माध्यम के बच्चों से अच्छी होती है! कोई भी चाहे तो test करके देख ले!
********************************************
५. प्रतिभा का सच्चा विकास व्यक्ति का मातृभाषा में ही हो सकता है!
६. आज पारस चैनल को ६ साल पूरे हो रहे हैं! ये एक बहुत अच्छा उदाहरण हैं की सुविधाओं का सदुपयोग कैसे किया जा सकता है!
७. तत्वोपदेश में तो बहुत कम लोगो को रूचि होती है, उनकी भव्यता तो पुष्ट ही होती है, लेकिन बाकि के लोगो को क्या? उनको जितना बचा लो उतना अच्छा!!
इसीलिए बड़े बड़े आचार्यों ने अपने शुद्दोपयोग से निकलकर श्रावकाचार लिखे और उपदेश दिए क्योंकि श्रावक को उनके अनुरूप धर्मोपदेश नहीं दिया तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी!
- संकलन प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज शंकासमाधान
Source: © Facebook
आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री क्षमासागरजी महाराज द्वारा रचित हृदयस्पर्शी कविताओं को आप हमारी वेबसाइट - www.maitreesamooh.com से पढ़ सकते है, कविताओं के संग्रह को प्राप्त करने के लिए आप [email protected] अथवा 94254-24984, 98274-40301 पर संपर्क कर सकते हैं।
मैत्री समूह
--- ♫ www.jinvaani.org @ Jainism' e-Storehouse ---