Update
today picture and update:) मुनि सुधासागर जी के निर्देशन में बन रहे गुणोदय तीर्थ गुलगांव के निर्माण के बारे में गुरुदेव श्री आचार्य श्री को बताते हुये!!! #Vidyasagar #Digambara #Sudhasagar #Nirgranth #Jainism #Tirthankara #Arihant
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काश की कल होने से पहले, धरती पर कोई वीर आ जाये!
कोई ईश्वर, God, फकीर या पीर आ जाये, बहे खून निर्दोष मूक पशुओं का उससे पहले!
इस वसुंधरा पे फ़िर कोई महावीर आ जाये!
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हे वीतराग प्रभु! मुझे तपशक्ति दीजिए|
जब तक तपस्या कर न सकूँ भक्ति दीजिए।
उत्तम तपो धरम से मुनी मोक्ष जाते हैं।
श्रावक भी करें तप यदी तो स्वर्ग पाते हैं।
हे वीतराग प्रभु! मुझे तपशक्ति दीजिए|
जब तक तपस्या कर न सकूँ भक्ति दीजिए।
-आर्यिका चन्दनामती माताजी द्वारा रचित #Chandana #Gyanmati #Jambudveep #mangitungi #Jainism #Tirthankara
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*वित्तमंत्री मलैया ने कराई आचार्यश्री को आहार* आचार्यश्री ने समझाया, आत्महत्या में क्या बुराई*
राजधानी भोपाल में चार्तुमास कर रहे जैन संत आचार्य विद्यासागर महाराज का पडग़ाहन शनिवार को मध्यप्रदेश के वित्त मंत्री जयंत मलैया के चौके में हुआ। मलैया और उनकी पत्नी सुधा मलैया ने नवधा भक्ति पूर्वक आचार्यश्री को निरंतराय आहार कराए। आहार से पूर्व आचार्यश्री ने हबीबगंज जैन मंदिर में प्रवचन देते हुए आत्महत्या की बुराई और संलेखना पूर्वक मरण का महत्व समझाया। आहार से पूर्व आचार्य विद्यासागर महाराज ने तत्वार्थ सूत्र पर प्रवचन देते हुए कहा कि मनुष्य इस जनम की परेशानियों से मुक्ति के लिए आत्महत्या जैसा कदम उठाता है लेकिन वे नहीं जानता ये परेशानियां पूर्व जन्म के कर्मों के कारण है और उसे कर्मों का फल सभी जन्मों में भुगतना ही पड़ेगा। उन्होंने कहा कि आत्महत्या करने वाले कभी दुख से मुक्ति नहीं पा सकते। अगला जनम किस रूप में होगा नहीं पता और उसमें कितना कष्ट होगा ये भी नहीं पता। उन्होंने कहा कि मनुष्य के लिए सबसे अच्छा मरण, समाधि मरण है। इस मरण में सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है। होश पूर्वक मरण होता है और ये मोक्ष का द्वार खोलता है।
#Vidyasagar #Jayantmalayya #Jainism #Samadhi #Sanlekhna #Suicide
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कोटा निवासी ओमजी जैन के घर की खुदाई से 30" की नीलम पत्थर से निर्मित भगवान महावीर की 800 वर्ष प्राचीन प्रतिमा प्राप्त हुई है। #MahavirBhagwan #Jainism #Unearth #Tirthankara
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News in Hindi
Video
https://youtu.be/VW5QhHNmFpA
#respect
नेकी की दीवार
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#Introspection @ ❖ उत्तम तप - In fact Tapasya makes life simple. तप शब्द सुनने से हमारे मन में एक भ्रम पैदा होता है क्योंकि एक परंपरागत भ्रम हमारे मन में बैठा हुआ है की तप के मायने हैं बहुत कठिनाई का जीवन जीना. परन्तु तप या तपस्या के असली मायेने हैं ज़िन्दगी को बहुत आसानी से जीना.. pls share it.
हमारा जीवन इच्छाओं का "अक्षय पात्र" है और उनको पूरा करने के लिए हम अपने जीवन में कितनी मुश्किलें खड़ी कर लेते हैं. यदि इच्छाएँ कम हों तो मुश्किलें आसान हो जाएँगी. इच्छाओं को जीत लेने का नाम ही तो तप है. कुछ ऐसी इच्छाएँ हैं जिनसे सिर्फ इन्द्रिय और मन का पोषण होता है. मन भरने की इच्छा हमको मुश्किल में डाल देती है क्यंकि कभी किसी का मन नहीं भरता. फिर क्यों न हम अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति से हटकर अपने और दुसरे के जीवन को ऊँचा उठानेवाली परोपकार की भावनाएं अपने भीतर विकसित करें. ये भी तपस्या है. तपस्या को यदि इस तरह हम जीवन में लावें तो कोई बहुत मुश्किल चीज़ नहीं हैं.
तपस्या करने का सही उद्देश्य हमें पता होना चाहिए. कर्मों के छय के लिए, कर्मो की निर्जरा के लिए, अपने जीवन में अज्ञानतावश जो विकृतियाँ हो गई हैं, उन विकृतियों एवं विकारों को हटाने के लिए, कषायों को मंद करने के लिए, अपनी द्रष्टि को निर्मल करने के लिए तपस्या की जाती है. अगर तपस्या का ऐसा उद्देश्य है तब तो तपस्या सार्थक है वर्ना वह तपस्या न हमारे को ऊँचा उठा पाती है न उससे कोई सन्देश मिलता है.
तपस्या यदि गुरु की आज्ञा से, उनके बताये तरीके से की गई हो तब ही वह जीवन को ऊपर उठती है. गुरु ही जानते हैं कि हमारी शक्ति क्या है, हमारा सामर्थ्य क्या है, हमारे लिए क्या उचित है. हमारा जीवन विषय भोग में पड़ा हुआ है और जीवन को विषय भोग जितनी मुश्किल में डालते हैं तपस्या उतनी मुश्किल में नहीं डालती. तपस्या का अभ्यास न होने की वजह से वह शुरू में थोड़ी सी मुश्किल लगती है लेकिन जैसे ही हम उसको अपने जीवन में किसी गुरु के सहारे, अर्थात विधि के अनुसार शुरू कर देते हैं फिर वह तपस्या बहुत आसान हो जाती है.
हमें तपस्या को ठीक ठीक समझकर उससे अपने जीवन में लाभ लेना चाहिए और वाणी का तप, मन का तप, शरीर का तप करते रहना चाहिए. शरीर से झुकना, भगवान् की पूजा करना, गुरुजनों का सम्मान करना - ये शरीर के तप हैं. वाणी का तप है - हमेशा मधुर वचन बोलना, प्रेम से भरकर बोलना, सत्य वचन बोलना, हमेशा जिनेन्द्र भगवान् के कहे वचनों को दोहराते रहना. मन का तप है - हमेशा मन में अच्छे विचार करना/ रखना, मन की प्रसन्नता बनी रहे इस बात का ध्यान रखना. जो व्यक्ति सुख और दुःख में अपने मन की प्रसन्नता को नहीं खोता है वह अपने मन का तप कर रहा है.
हमें आज से ही ऐसी तपस्या शुरू कर देनी चाहिए. हम अपने मन को बाहर की विपरीतताओं में भी प्रसन्न रखेंगे. हम अपने शरीर से हमेशा विनयवान रहेंगे. हमेशा वाणी में मधुरता बनाये रखेंगे, जब भी बोलेंगे आगम की वाणी बोलेंगे. अगर एक एक क्षण रोज़ इस तरह का प्रयास करें तो ये तप हमारे जीवन को अच्छा बना देगा
SOURCE - पर्युषण पर्व के पावन अवसर पर हम 108 मुनिवर क्षमासागरजी महाराज के दश धर्म पर दिए गए प्रवचनों का सारांश रूप प्रस्तुत कर रहे है. पूर्ण प्रवचन "गुरुवाणी" शीर्षक से प्रेषित पुस्तक में उपलब्ध हैं. हमें आशा है की इस छोटे से प्रयास से आप लाभ उठाएंगे और इसे पसंद भी करेंगे. इसी शृंखला में आज "उत्तम क्षमा" धर्म पर यह झलकी प्रस्तुत कर रहे हैं. --- मैत्री समूह निकुंज जैन को यह सारांश बनाने के लिए धन्यवाद प्रेषित करता है!
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