15.09.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 15.09.2016
Updated: 05.01.2017

Update

Amazing news भोपाल के हबीबगंज मंदिर में फन फैलाये नाग देवता सुन रहे थे आचार्य श्री के प्रवचन!!

*भोपाल हबीबगंज जैन मंदिर में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का इन दिनों चातुर्मास चल रहा है दस लक्षण पर्व के दौरान आचार्य श्री के मंगल प्रवचन सुबह 8 बजे से शुरू होते हैं लगभग 9:20 बजे तक आचार्य पूजन होने के बाद आचार्य श्री शुद्धि लेने मंच के पीछे जाते हैं प्रशासन ने कई अधिकारी और पुलिसकर्मी इस परिसर की सुरक्षा के लिए नियुक्त किए हुए हैं *मध्य प्रदेश पुलिस मुख्यालय में पदस्थ एआईजी सागर निवासी महेंद्र कुमार जैन की भी ड्यूटी यहां पर लगी हुई है श्री जैन आचार्य भगवन जहां जहां जाते हैं उसके कुछ मिनिट पूर्व वे उस स्थान का निरीक्षण करते हैं आज 12 सितंबर सोमवार को ठीक सुबह 9:04 बजे पर वह शुद्धि वाले स्थान पर देखने गए । तो वो अबाक रह गए,वहां पर एक साढे पांच फुट लंबा काला नाग फन फैलाए शांति के साथ प्रवचन सुन रहा था कुछ देर तक तो वो देखते रहे फिर उन्होंने जैसे कुछ आवाज की नाग ने फन बंद किया और धीरे धीरे सरक कर नाले की ओर निकल गया कुछ पुलिसकर्मी भी उनके साथ थे यह घटना उन्होंने देखी और इसे बाद में आचार्य भगवंत और मुनि संघ को सुनाई । बताया जाता है श्रद्धालु इसे अतिशय मान रहे हैं*

उलेखनीय है। *बुंदेलखंड के नैनागिर तीर्थ क्षेत्र में एक सर्प वर्ष 1980 के दौरान आचार्य श्री के प्रवचन सुनने आता था और प्रवचन समाप्त होते ही वह वापस चला जाता था भोपाल में आज फिर यह वाक्या देखने को मिला है।*

*मुकेश जैन ढाना सागर* #vidyasagar #Jainism #shantisagar #nirgrantha #Digambara

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-Shri DhyanSagar Ji Maharaj

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exclusive today picture from Champapur/Mandargiri Lord Vasupujya Ji charan:) ❖ आज दस लक्षण का अंतिम दिन उत्तम ब्रम्हचर्य और प्रथम बाल-ब्रम्हचारी तीर्थंकर वासुपूज्य भगवान् का मोक्ष कल्याणक है वे एक मात्र तीर्थंकर है जिनके पांचो कल्याणक [गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष] सब चम्पापुर में ही हुए!

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News in Hindi

#Introspection @ ❖ आज दस लक्षण का अंतिम दिन उत्तम ब्रम्हचर्य और प्रथम बाल-ब्रम्हचारी तीर्थंकर वासुपूज्य भगवान् का मोक्ष कल्याणक है वे एक मात्र तीर्थंकर है जिनके पांचो कल्याणक [गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान और मोक्ष] सब चम्पापुर में ही हुए! -संसार में विषबेल नारी, तज गये जोगिश्वारा Brahmcharya is nothing but the purity of relations and of our thoughts. PLS SHARE IT!

हमारा एक बहुत प्यारा मित्र था. वह भोपाल में इंजीनियरिंग कॉलेज में पड़ता था और हर शनिवार को शाम को घर आता था. हम लोग रविवार एकसाथ बिताता थे. एक दिन दोपहर 12 बजे से बैठें हम लोग बातें करते- करते शाम 5 बज गए. माँ ने आवाज दी - ‘क्यूँ? खाना -वाना नहीं खाना क्या?’ तब ध्यान आया की हम लोग कितने घण्टों से बातें कर रहें थे | उसके जाने के बाद घर के लोग कहने लगे - ‘तुम्हारा मित्र अब बड़ी जगह पहुँच गया है तो उसने बढ़िया- अच्छे कपडे बनवायें है, आज तो बड़ी अच्छी शर्ट पहना था वह |

मुझे बहुत आश्चर्य हुआ, मेरा तो ध्यान ही नहीं गया, हम लोग 5 घण्टें तक बातें करते रहे, लेकिन वह कौनसा -कैसे कपडे पहने हुआ है इसकी तरफ मेरा ध्यान ही नहीं गया | यह आत्मनुराग था, देहासक्ति नहीं थी. हम जब आत्मनुराग से भर गये हो, देहाशक्ति से ऊपर उठ गये हो, वह ब्रह्मचर्ये है.

साहित्यकार जैनेन्द्रकुमार ने लिखा है - 'हम अपने पिता की जीवनसाथी को माँ मानते है और अब तो बच्चो की माँ भी ‘माँ’ मालूम पड़ने लगी है’ यह हमारा ब्रह्मचर्य है |बा और बापू दोनों एक सभा में बैठे थे | किसी ने बापू से बा के बारे में पूंछा की - ‘ लगता है ये आपकी माँ है ’ बापू क्षणभर तो चुप रहे फिर कहा -‘हाँ ये मेरी माँ है ‘. वहां जो कार्य-कर्ता बैठे थे उनको जोर की हँसी आ गयी, वे कहने लगे - ‘बापू, ऐसा क्यूँ कह रहे है? बा तो आपकी जीवनसाथी है.’ बापू बोले - ‘जीवनसाथी तो है ये हमारी लेकिन अब ये हमारी माँ ज्यादा हो गयी है. सवेरे हमें जगाती है, हमारे कपड़ो की व्यवस्था करती है, भोजन कराती है और फिर रात में सुलाती है, तो हमारी यह माँ हुईं की नही?’

'संसार में विषबेल नारी, तज गये जोगिश्वारा.' - इस पंक्ति को लोगो ने पीडादायक बताया जबकि लिखनेवाले ने ठीक ही तो लिखा है - 'संसार में विषबेल नारी', उसने 'संसार में विषबेल माँ', ' संसार में विषबेल बेटी' तो नहीं लिखा. 'नारी' मेरी अपनी वासना है वर्ना तो वह किसी की माँ है, किसी की बेटी है, किसी की बहिन है, सिर्फ मैंने अपनी वासना से जो रूप उसे दे दिया है उसके इलावा और कोई रूप नहीं है उसे तजने का कितना स्पस्ट सा अर्थ है लेकिन लोग बहुत स्थूल अर्थ लेते है इस चीजो का और निषेद करने में अपने को बड़ा मानते है

ब्रह्मचर्य अन्तरंग परिणामो की बात है.

बुद्ध के संघ का एक उदाहरण है- एक वृद्ध भिक्षु और एक युवा भिक्षु दोनों नदी किनारे से चले जा रहे थे. तभी उन्होंने देखा की एक बहन नदी में डूब रही है और बचाओ-बचाओ के लिए आवाज दे रही है. वह युवा भिक्षु तुंरत नदी में खुदा और बहन को नदी से बहार निकल लाया. उसने बचा लिया उस बहन को. इतने में वृद्ध भिक्षु गरम हो गये - 'अरे, तुमने उस महिला को छु लिया! अब मै तुम्हे बुद्ध से कहूँगा और तुम्हे दंड/ प्रायश्चित दिलवाऊंगा ' दोनों बुद्ध के सामने पहुंचे. वृद्ध भिक्षु ने कहा - 'भंते! इसको दंड मिलना चाहिए'. बुद्द ने पूंछा -'क्यूँ?' वृद्ध भिक्षु ने कहा- 'इस बात का की इसने युवती को उठाकर नदी से बहार रखा, इसने उसे छु लिया, इसका ब्रह्मचर्य नहीं रहा. इसलिए इसे प्रायश्चित मिलना चाहिये.' बुद्ध ने कहा - 'प्रायश्चित पहले तुम ले लो'. 'मैं, मैं किस बात का प्रायश्चित लूँ? विस्मय से पूंछा उन्होंने. बुद्ध ने कहा - 'इसने तो उस महिला को उठाकर वहा ही रख दिया पर तुम तो उसे अपने मानस में उठाकर यहाँ तक ले आये. तुम्हारे मन में अभी भी है वह,

तुम इतनी देर से उसे ढो रहे हो. इसने तो वहां रखा और भूल भी गया.'

परिणामों की निर्मलता के लिए यह चार उपाय बतायें है -

१. हमेशा मन को स्वस्थ रखना, दूसरों के बारे मैं विकृत नहीं करना,
२. इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना,
३. अच्छी संगती में रहना,
४. भगवन की भक्ति प्रार्थना करना

SOURCE - पर्युषण पर्व के पावन अवसर पर हम 108 मुनिवर क्षमासागरजी महाराज के दश धर्म पर दिए गए प्रवचनों का सारांश रूप प्रस्तुत कर रहे है. पूर्ण प्रवचन "गुरुवाणी" शीर्षक से प्रेषित पुस्तक में उपलब्ध हैं. हमें आशा है की इस छोटे से प्रयास से आप लाभ उठाएंगे और इसे पसंद भी करेंगे. इसी शृंखला में आज "उत्तम क्षमा" धर्म पर यह झलकी प्रस्तुत कर रहे हैं. --- मैत्री समूह निकुंज जैन को यह सारांश बनाने के लिए धन्यवाद प्रेषित करता है!

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