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महातपस्वी आचार्य ने श्रद्धालुओं को बताया तपस्या का महत्त्व
-स्वाध्याय, प्रवचन, अनाहार व उनोदरी के माध्यम से आदमी कर सकता है पाप कर्मों का निर्जरा
-तपस्या के माध्यम से आत्मा का हो सकता है कल्याण
19.09.2016 गड़ल (असम)ः सोमवार को चतुर्मास प्रवास स्थल परिसर में बने प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री ने महाश्रमणजी ने तपस्या का महत्त्व बताया और उन्हें तपस्या द्वारा अपने कर्मों का निर्जरा कर आत्मा को मोक्ष के मार्ग पर ले जाने की प्रेरणा प्रदान की।
भारत के पूर्वोत्तर भाग में पहली बार चतुर्मास काल व्यतीत कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ के महातपस्वी आचार्यश्री अपने निरन्तर मंगलवाणी से जन-जन का कल्याण कर रहे हैं। उनकी अमृतवाणी को सुनने के लिए देश के कोने-कोने से लोग पहुंचते हैं। उनकी वाणी निकलने वाली ज्ञानगंगा लोगों के जीवन का मार्ग तो प्रशस्त करती ही है, साथ ही आत्मा को भी मोक्ष के मार्ग पर ले जाने का पथ आलोकित कर देती है। ऐसे महातपस्वी आचार्यश्री ने सोमवार को श्रद्धालुओं को तपस्या का महत्त्व बताते हुए कहा कि तपस्या के माध्यम से आदमी अपना परिशोधन कर सकता है। तपस्या के माध्यम से पाप कर्मों का निर्जरा कर आदमी अपनी आत्मा को मोक्ष के मार्ग पर ले जा सकता है। आचार्यश्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि जिस प्रकार तेज हवा के चलने से बादलों का सघन समूह तितर-बितर हो जाता है, उसी प्रकार तपस्या के पाप कर्मों का सघन बंधन भी विनाश को प्राप्त हो जाते हैं। जैन धर्म में अनाहार की तपस्या का महत्त्व है। कितने-कितने लोग चतुर्मास काल के दौरान तपस्या के माध्यम से अपने कर्मों का निर्जरा करते हैं। पूर्वाचार्यों की पुण्यतिथि भी तपस्या के माध्यम से मनाई जाती है। तपस्या ही एक ऐसा माध्यम से है जो आने वाले पाप कर्मों से भी बचाता है और पूर्व के कर्मों के बंधन का भी निर्जरा कर आत्मा को निर्मल बना सकता है। आचार्यश्री ने लोगों को उत्प्रेरित करते हुए कहा कि अनाहार की तपस्या कठिन लगे तो लोगों को उनोदरी (भूख से कम खाना, खाना खाने में कमी कर देना) की तपस्या कर अपने कर्मों का निर्जरा करने का प्रयास करना चाहिए। नवकारसी, पोरसी, एकासन, बेला, तेला आदि भी तपस्या के अच्छे क्रम हैं। पूज्यप्रवर ने स्वाध्याय को तपस्या बताते हुए कहा कि यदि आदमी प्रतिदिन आधे घंटे स्वाध्याय कर ले तो आत्मा, दिमाग और विचारों को अच्छी खुराक मिल जाती है और आदमी की तपस्या भी हो जाती है। जिस प्रकार शरीर के लिए भोजन आवश्यक है उसकी प्रकार आत्मा, दिमाग और विचारों के लिए स्वाध्याय भोजन है। आचार्यश्री ने प्रवचन को भी तपस्या बताया। आचार्यश्री ने महिलाओं को उत्प्रेरित करते हुए कहा कि तेरापंथ महिला मंडल की सदस्याएं तत्त्वज्ञान को जानने का प्रयास करना चाहिए। कितनी महिलाएं तत्त्वज्ञान जानती भी होंगी। आचार्य श्रीमज्जयाचार्य, आचार्यश्री तुलसी और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी द्वारा लिखित ग्रंथों का अध्ययन कर भी तत्त्वज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। अंत में मुख्यमुनिश्री ने ‘हमारे भाग्य बड़े बलवान’ गीत का सुमधुर संगान किया।
तेरापंथ महिला मंडल की सदस्य श्रीमती पुष्पा बैंगानी ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दीं और तत्त्वज्ञान के कोर्स और परीक्षाओं से जुड़ कर तत्त्वज्ञान में महारत हासिल करने वाली महिलाओं के बारे में बताया और उनके विकास के लिए आचार्यश्री से आशीर्वाद भी मांगा।
चन्दन पाण्डेय
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