19.10.2017 ►Muni Jayant Kumar ►Dipawali

Published: 18.10.2017
Updated: 19.10.2017

दीपावली का वास्तविक अर्थ समझे

-ः मुनि जयंत कुमार:-


भारतवर्ष में जितने भी पर्व हंै, उनमें दीपावली सर्वाधिक लोकप्रिय और जन-जन के मन में हर्ष-उल्लास पैदा करने वाला पर्व है। वैदिक प्रार्थना है- ‘तमसो मा ज्योतिर्गमयः।’ अर्थात् अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाला पर्व है- ’दीपावली’। दीपावली के पूर्व लोग दुकानों व घरों की सफाई करते हैं, रगं-रोगन करते हैं। लोगों में यह भावना रहती हैं कि इस दिन श्री लक्ष्मीजी दुकान व घर में प्रवेश करती है। जीवन में धन का महत्व है, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता। धन से मानव अपना रोज का जीवन व्यवहार चलाता है। अपनी आशा-आकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश में लगा रहता हैं। मनुष्य चाहता है- उसे अच्छा भोजन मिले, रहने को सुन्दर-सा घर हो और कभी वह बीमार पड़़ जाए, तो उसे अच्छी-से-अच्छी चिकित्सा मिले। इन सबकी पूर्ति के लिए ही वह श्री लक्ष्मी देवी की पूजा-अर्चना करता है। कामना करता है कि श्री लक्ष्मी देवी उसके भण्डार को धन-धान्य से परिपूर्ण कर दंे। लेकिन धन में बड़ा प्रमाद होता है, मद होता है, विकार होता है।

प्रायः लोग दीपावली के मात्र बाह्य प्रसंगांे का स्मरण कर पर्व मनाने की सफलता समझ लेते हैं। श्रीराम के अयोध्या प्रवेश को याद करते हैं, महर्षि दयानन्द सरस्वती के स्वर्गवास की स्मृति कर लेते हैं, राष्ट्र संत विनोबाजी के देहत्याग की गरिमा का गुणगान कर लेते हैं, किन्तु प्रकाश पर्व के उन आन्तरिक संदेशों को अनदेखा कर देते हैं, जो हमें अपनी आत्मा में निहित प्रकाश को उत्पन्न करने की प्रेरणा देते हैं।

जैन दृष्टि से दीपावली त्याग तथा संयम का पर्व है। सांसारिक पर्व के साथ-साथ यह अध्यात्मिक पर्व भी है। इस दिन कार्तिक कृष्ण अमावस्या को चैबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने निर्वाण पद (मोक्ष, सिद्धावस्था) को प्राप्त किया था। जैन समाज भगवान की निर्वाण पद प्राप्ति की खुशी में बहुत प्राचीन काल से ही दीपावली पर्व मनाता आ रहा है। निर्वाण पद की प्राप्ति आसक्ति से नही, विरक्ति से, भोग से नही, त्याग से, वासना से नही, साधना से, बाहरी लिप्तता से नही, अहिंसा सयंम तप से होती है। समाज इस पर्व के आध्यात्मिक सन्देश को भूलकर सांसारिक, शारीरिक वासनाओं की तृप्ति में लिप्त हो रहा है। यही तो विडम्बना है।

अच्छा खाना, अच्छा पहनना, आमोद-प्रमोद करना आदि तो दीपावली का बाहरी पक्ष है, जो सांसारिक दृष्टि से आकर्षक जरूर लगता है, किन्तु आत्मिक दृष्टि से कतई उचित नही हैं अनेक धर्म वाले जीवन का अन्तिम लक्ष्य-निर्माण (मोक्ष) प्राप्ति को ही मानते हैं।


आज हमारी नई पीढ़ी निर्माण पक्ष को प्रायः भूलती जा रही हैं तथा इस दिन होटलों में, पार्टियों में- अभक्ष्य भक्षण करना, जुआ खेलना, घोर हिंसा करने वाला पटाखों को छोड़ना तथा अन्य अनेक दुष्प्रवृत्तियों में लिप्त होकर मानव जीवन को खाई में ढकेल रहे हैं। दीपावली के दिन जुआ खेलना की परम्परा बहुत पहले से चली आ रही हैं। अज्ञानी लोग मानते हैं कि इस दिन जुआ खेलने से लक्ष्मी आती है- यह उनका भ्रम है। आतिशबाजी के कारण कितने ही छोटे-छोटे जीव मौत के मंुह में चले जाते हैं। यदि हम किसी को जीवन दे नहीं सकते तो, दूसरों के प्राण लेने का हमें क्या अधिकार? दूसरों के प्राणों की घात सबसे बड़ी हिंसा है। सबसे बड़ा पाप है।

आतिशबाजी से कई जीवों की घात तो होती ही है, किन्तु कई लोग अपने प्राणों से भी हाथ धो बैठते हैं। प्रायः सुनते हैं कि आतिशबाजी के कारण अमुक जगह आग लग गई, लाखों-करोडों का नुकसान हो गया तथा अनेक लोगों के नेत्र की ज्योति चली जाती हैं, कइयों के हाथ-पांव जल जाते हैं, महिलाओं व पुरुषों के कीमती वस्त्र जल जाते हैं, कई अधजले होकर रह जाते हैं। यह कैसी बर्बादी हैं? तन की भी और धन की भी।

आजकल दीपावली के दिन उद्योगपति, व्यापारी तथा अन्य लोग अपनी अनेक विवशताओं के कारण तत्सम्बन्धी अधिकारियों के पास बडे-बडे कीमती उपहार भेजते हैं, ये उपहार आन्तरिक खुशी से नही, बल्कि विभिन्न संकटों से अपनी सुरक्षा करने के लिए रिश्वत के रूप में भेजे जाते हैं, यह वास्तव में भ्रष्टाचार का ही एक रूप हैं।

दीपावली के समस्त सांसारिक आयोजन हमारी अनीकिनी के अज्ञानरूपी अधंकार के ही शोधक एवं सूचक हैं। दीपकों का प्रकाश, मिष्ठान सेवन एवं वितरण, मकान-दुकान की स्वच्छता, लक्ष्मी उपासना, परिग्रह का असीमित प्रदर्शन, पाँचों इन्द्रियों के भोगों का खुलकर सेवन करने के प्रवृत्ति, दुव्र्यसनों के प्रति आसक्ति अनादि जो भी आयोजन हम दीपावली के दिन करने के अभ्यस्त हो चुके हैं, वे सभी हमारे अज्ञानरूपी अधंकार के पोषक एंव सूचक ही हैं, उनसे कभी भी आत्मा का कल्याण सम्भव नहीं हैं। ये सभी दीपावली आयोजन ‘तमसो मा ज्योतिर्गमयः’ की भावना के पूर्णतया विपरीत हैं।

आज समाज आत्म साधना और त्याग वृत्ति के पथ पर चलने के बजाय भोग और परिग्रह वृत्ति के प्रति झुक गया हैं। निर्वाण मार्ग के अनुसरण के बजाए संसार यानी भव भ्रमण के मार्ग को अपनाने लगा है और वैराग्य के स्थान पर राग को अपनाने लगा हैं। त्याग के पर्व को हमने भोग का पर्व बना दिया हैं। लोगों की देखा-देखी करते हुए दीपावली का पर्व विकृत हो गया हैं। जिस त्याग एवं साधना के बल पर महापुरूषों ने निर्वाण पद प्राप्त किया था, उस त्याग और साधना को भूलकर हम केवल बाहरी क्रिया कलापों पर अटक कर रह गए हैं। इसे अपनी बुद्धि का दीवाला ही तो कहेंगे। सारे विश्व को प्रकाश प्रदान करने वाला भारत आज कितने अंधकार में जी रहा हैं? क्या कभी हम एक ही क्षण के लिए भी इसका चिन्तन करते हैं? कौन पाल रहा हैं, भारत के अधिकार को? भारत पर अभी कोई विदेशी शासन नहीं हैं। भारतीय ही भारत पर शासन कर रहे हैं। हम ही देश के नैतिक पतन के जिम्मेदार हैं। हम ही भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन देते हैं, उसे पालते हैं। ईमानदारी और नैतिकता को हमने ही ध्वस्त कर दिया हैं। अपने स्वार्थ के पीछे हम अपनी अस्मिता तक से खिलवाड़ करने को तत्पर रहते हैं। राष्ट्रीयता का नारा हमारा वाणी विलास मात्र ही रह गया हैं। हम राष्ट्र के स्तर पर स्वतन्त्र होकर अंधकार के घने घेरे में कैसे चले गए हैं?

क्या यह अंधकार किसी दीपक से मिटाया जा सकता हैं? क्या सांसारिक रूप से दीपावली को धूमधाम से मनाकर अपने राष्ट्र की अन्तर आत्मा को प्रसन्न कर सकते हैं? तुच्छ स्वार्थो के पीछे अपनी चेतना (आत्मा) के समस्त प्रकाश को भुला कर के घने अंधकार में भटकने वाले हम क्या कभी दीपावली का सच्चा अर्थ समझ सकेंगे? क्या हम कभी स्वयं से पूछते हैं कि हम कहाँ? प्रकाश में या अधंकार में? यदि अधंकार में हैं, तो क्यों? हमारी तमसो मा ज्योतिर्गमयः की प्रार्थना असफल क्यों हो रही हैं?

सबसे बड़ा कारण हैं- हम अपनी आत्म ज्योति को बुझा करके जीते हैं। हम उसे प्रज्ज्वलित करना ही भूल गए। दीपावली हमें प्रेरणा दे रही हैं कि हम अपनी आत्म ज्योति को प्रज्ज्वलित करें। अपना दीपक स्वयं जलाएँ। अपनी आत्मा को ही दीपक बनाकर उसे जगमगाएँ। उसके लिए चाहिए- सिर्फ आत्मविश्वास।

इस विश्व गुरू भारत के नागरिक हैं, किन्तु संकीर्णता के गुलाम बनकर रह गए। हम अच्छे वक्ता अवश्य हैं, किन्तु आचरण में बहुत पिछड़ गए हैं। दुव्र्यसनों के जंगल में भटक गए है। हम पश्चिम के लज्जाविहीन संस्कारों के अनुकरण में लग गए हैं। आज भारतीय जन जीवन की अधिकांश ऊर्जा विकृतियों की गटर में बही जा रही हैं।  लोक जीवन के इस पतन के हम ही उत्तरदायी हैं। हम कभी अपना दोष स्वीकार नही करते। हम कभी समाज को, कभी सरकार को उत्तरदायी बताने लगते है, किन्तु समाज और राष्ट्र का निर्माण तो स्वयं से है। हम कर्तव्य परायण और नैतिक बनें, तभी तो स्वस्थ समाज या स्वच्छ सरकार का निर्माण होगा। सुधार तो स्वयं में लाना हैं।

दीपावली से प्रेरणा ग्रहण करने की अवश्यकता है। ’परम्परागत भोग की दीपावली मानने के प्रति घृणा उत्पन्न करें और सावधान होकर आध्यात्मिक दीपावली मनाने के प्रति तैयार होवें।’ हम भोगों की आसक्ति को त्यागने तथा त्याग की ओर झुकने का प्रयास करें तथा राम, कृष्ण, बुद्ध, गांधी एवं महावीर द्वारा बताए गए अंहिसा, सत्य, अचैर्य, ब्रहाचर्य और अपरिग्रह के सिद्धांतों का परिपालन करने में अपने को तैयार रखें- यही अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का उपाय है। यह कार्य कठिन तो अवश्य है, किन्तु असम्भव नही हैं। पुरूषार्थ करें, सफलता अवश्य मिलेगी।


प्रेषकः


(बरुण कुमार सिंह)
-ए-56/ए, प्रथम तल, लाजपत नगर-2
नई दिल्ली-110024
मो. 9968126797

English: [Google]

Understand the meaning of Deepawali

-Munee Jayant Kumar: -


Deepawali is one of the most popular festivals and celebration of happiness in the minds of the people of India, as per the celebrations in India. The Vedic prayer is- 'Tamos Ma Jyotirgamayam'. That is, the festival to take light from darkness - 'Deepawali'. The people of Deepawali clean the shops and houses, do rag-jalan. People have this feeling that on this day Shri Laxmiji enters the shop and house. Money is important in life, it can not be denied. With money, man runs his daily life behavior. Keep trying to fulfill your aspirations. Man wants- he should get good food, stay home and if he gets ill then he can get good treatment. He worshiped Shri Lakshmi Devi only for fulfilling all this. Wishes that Shri Lakshmi Devi made her store full of food grains. But there is a great disadvantage in wealth, there is an item, the disorder occurs.

Often people remember the adventures of Deepawali and understand the success of celebrating the festival. Remembering the Ayodhya entry of Shriram, Maharshi Dayanand recollects the life of Saraswati, the nation praises the dignity of the martyrdom of the humor, but ignoring the internal messages of the light festival, Inspire to generate light inherent.

Diwali is a festival of renunciation and restraint with the Jain vision. Along with the worldly festival, this spiritual festival is also there. On this day Kartik Krishna Amavasya received the twenty-first tirthankar by Lord Mahavir, the post of Nirvana (salvation, Siddhavastha). Jain Samaj is celebrating Diwali festival since the very ancient times in the joy of attaining God's Nirvana post. Nirvana is not attained by attachment, not by indulgence, but by enjoyment, by renunciation, by lust, not by sadhana, by external duality, non-violence is practiced by austerity. Society forgets the spiritual message of this festival and is engaged in the fulfillment of worldly, physical desires. That's ironic.

Good food, good wearing, amusement, etc. is the outer side of Deepawali, which seems to be worldly attractive, but it is not proper to attain spiritualism, the goal of achieving the goal of many religions (salvation) Believe it.

Today our new generation is constantly forgetting the construction side and on this day, in the parties, in the eating of food, playing gambling, leaving the firecrackers who have committed gross violence and are involved in many other pandemics, they are pushing the human life into a gap.. The tradition of playing gambling on Deepawali has long been running. The ignorant people believe that gomes on this day bring Lakshmi - it is their illusion. Due to fireworks, many small organisms go into death. If we can not give life to anyone, then what authority do we have to take the life of others? The power of the lives of others is the biggest violence. The biggest sin is.

Fireworks also have the power of many creatures, but many people also lose their lives. Often hear that due to fireworks, fire broke out in such a place, loss of millions of crores and many people's eyes flare up, many of them are burnt, precious clothes of women and men are burnt, Many are left overstretched. What is this waste? Tan ki ke saath jaum ke liye

Nowadays on Diwali, industrialists, businessmen and others send huge gifts to their respective officials due to their many compulsions, these gifts are sent not as internal pleasure but as bribe to protect themselves from various crises., This is actually a form of corruption.

All worldly events in Deepawali are the only researches and symbols of our Anikini's ignorance. Light of lamps, dessert consumption and distribution, cleanliness of the house-shop, Lakshmi worship, unlimited performance of the grave, the tendency of openly consuming the pleasures of the five senses, and indulgence towards the miseries, whatever event we are accustomed to do on Diwali day They are all, they are all the nutritional and indications of our ignorant people, they are never able to do the welfare of the soul. All this is completely opposite of the spirit of Deepawala Jyotigmayam.

nstead of walking on the path of self-meditation and renunciation, society has been bowed down to enjoyment and affinity instinct. Instead of pursuing the Nirvana path, the world has started adopting the path of Bharva Bhava and has started adopting the raga in place of quietness. We have made a festival of sacrifice for the festival of sacrifice. Viewing people, the festival of Deepawali has become distorted. By forgetting that sacrifice and sadhana, we have only been stuck on external activities, by which the great men had attained the Nirvana post on the basis of sacrifice and meditation. It will only say the wisdom of your intellect. How much India is giving light to the whole world is living in darkness? Do we ever contemplate it for the same moment? Who is raising the rights of India? India has no foreign rule right now. Indians are ruling India itself. We are responsible for the moral decline of the country itself. We encourage corruption and encourage it. We have demolished honesty and ethics only. Behind our selfishness, we look forward to messing with our Asmita. The slogan of nationalism Our voice has remained only Vilas. How have we gone to the thick of the darkness by being independent at the national level?

Can this darkness be erased with a lamp? Can the world spiritually delight Deepawali and delight the inner soul of its nation? Will we ever understand the true meaning of Deepawali, after forgetting all the light of our consciousness (soul) after the trivial interests and wandering in the dark darkness? Do we ever ask ourselves where we are? In light or in the dark? If you are in power, then why? Why are our prayers failing?

The biggest reasons are - we live by extinguishing our own light. We forgot to ignite him. Deepawali inspires us to ignite our own flame. Burn your lamp yourself Make your soul illuminate it by making a lamp. For him - just self confidence.

This world guru is a citizen of India, but remains a slave of narcissism. We are a good speaker, but have gone far behind in conduct. The miscreants have gone astray in the jungle. We have started to follow the shameful rituals of the West. Today most of the people of Indian life are being deposed in the gutter of deformities. We are only responsible for this fall of public life. We never accept our blame. We are always telling the society to be responsible to the society, but the society and the nation are created by itself. If we become duty-free and ethical, then only a healthy society or clean government will be built. The improvement is in itself.

Deepawali needs inspiration. 'Despolate the idea of ​​traditional diwali of Diwali and be prepared to be attentive to celebrating Deepawali.' We try to abandon the attachment of the people and bow down to sacrifice and told by Ram, Krishna, Buddha, Gandhi and Mahavira Keep yourself ready to follow the principles of trance, truth, acharya, brahmacharya and non-control - that is the only way to go from darkness to light.. This task is difficult, but it is not impossible. Fulfill you, success will definitely be achieved.

(Barun Kumar Singh)
-A-56 / A, First Floor, Lajpat Nagar-2
New Delhi-110024
Mo. 9968126797

Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Shvetambar
      • Terapanth
        • Share this page on:
          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. Acharya
          2. Ayodhya
          3. Bhava
          4. Brahmacharya
          5. Buddha
          6. Consciousness
          7. Deepawali
          8. Diwali
          9. Gandhi
          10. Guru
          11. Krishna
          12. Lakshmi
          13. Mahavir
          14. Mahavira
          15. Meditation
          16. Nirvana
          17. Non-violence
          18. Raga
          19. Ram
          20. Sadhana
          21. Saraswati
          22. Soul
          23. Tirthankar
          24. Vedic
          25. Violence
          26. कृष्ण
          27. तीर्थंकर
          28. महावीर
          29. राम
          30. लक्ष्मी
          31. स्मृति
          Page statistics
          This page has been viewed 1368 times.
          © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
          Home
          About
          Contact us
          Disclaimer
          Social Networking

          HN4U Deutsche Version
          Today's Counter: