Jhini Charcha Dhal 1 Part 4 by Jayacharya

Published: 21.02.2024
Jhini Charcha was  written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics.  Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language. 
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice. 
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal 1 Stanza 16 to 20

ढाल.. 1 पद्य 16 से 20
१६. भाव-लेस्या कृष्णादिक तीनू, उदे परिणामिक भाव।

किसा कर्म रो उदे-निपन छे? आगल सुणिये न्याव।।

प्रथम तीन भाव लेश्याएं ओदयिक आर पारिणामिक -इन दो भावों में समाविष्ट होती हैं। यदि वे औदयिक भाव में समाविष्ट होती हैं तो किस कर्म के उदय-निष्पन्न भाव में समाविष्ट होती हैं? अब इनका न्याय सुनो।

१७. मोहकर्म रो उदे-निपन छे, असुभ-लेस्या त्रिहुं व्याप।

पाप कर्म बंधे एह थी, सात कर्म सूं नहि बंधे पाप।।

तीनों अशुभ भाव लेश्याएं मोहकर्म के उदय से निष्पन्न होती हैं। मोहकर्म के उदय-निष्पन्न भाव से पाप कर्म का बन्ध होता है। शेष सात कर्मो के उदय -निष्पन्न भाव से पाप कर्म का बन्ध नहीं होता।

१८. तेजु पदम भाव-लेस्या ए, तीन भाव सुविहाण।

उदै खयोपसम परिणामिक ए, सातमां तांइ पिछाण।।

तैजस और पद्म-ये दो भाव लेश्याएं ओदयिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक-इन तीन भावों में समाविष्ट होती हैं। इनका अस्तित्व सातवें गुणस्थान तक है।

१९. भावे सुकल लेस्या इम कहिये, च्यार भाव चित छाण।

उदै खायक खयोपसम जाणो, बलि परिणामिक जाण।।

भाव शुक्ल लेश्या औदयिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक - इन चार भावों में समाविष्ट होती हैं।

२०. दादशमां गुणठाणा ताई, सुकल-लेस्या जे पाय।

उदै खयोपशम परिणामिक छै, खायक भाव न थाय।।

बारहवें गुणस्थान तक प्राप्त भाव-शुक्ल-लेश्या का समावेश औदयिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक -इन तीन भावों में होता हे, क्षायिक भाव में नहीं होता।
Sources
From: Sushil Bafana
Provided by: Sushil Bafana
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