08.08.2011 ►L.D. Institute Of Indology ►4 Books Released ● Lecture On Machu Pichhu

Published: 12.08.2011
Updated: 21.07.2015



Lalbhai Dalbatbhai Institute Of Indology



Four Valuable Books Released + A Lecture On Machu Pichhu was Organized in L.D. Institute Of Indology

Book Release Function and a Lecture on Machu Picchu: A Mysterious City by Dr. J.B. Shah was organized in Sangosthi Series of Lectures in L.D. Institute of Indology, Ahmedabad on 8th August 2011. Dr. Yaduvir Singh Rawat, Director, Department of Archaeology, Gujarat State chaired the event.

On this occasion first of all three books viz.

  1. Dravya Guna Paryay ki Avadharana by Prof. Sagarmal Jain,
  2. Jayantvijay Mahakavyam edited by Sadhvi Chandanbalashriji Maharaj,
  3. Hemachandracharya (Translation from German-English to Gujarati by Motichand Giradharlal Kapadia (1929) and
  4. 34th Volume of Sambodhi (annual journal of LDII) edited by Dr. Jitendra B. Shah were released.

The program started with the Jain Hymns recited by Hon. Sadhvi Shri Chandanbalashriji. Director of the Institute, Dr. J.B. Shah introduced the Guests of Honour and welcomed all. On this occasion Dr. Yaduvir Singh Raut appreciated the efforts of L.D. Institute & Shrut Ratnakar for printing such valuable publications and organizing Sangosthi Series of Research oriented lectures. He has also appreciated and congratulated to Sadhviji for her dedication for studying the original texts in Sanskrit and Prakrit Language.

Mr. Babubhai Sanghavi, a leading Jain Philanthropist, was also present on this occasion and appreciated the institute for publishing these books and also desired to see more books on this line. He also congratulated to the speaker of the day Dr. J. B. Shah. Prof. M.A. Dhaki also commended the lecture on Machu-Pichhu.

Prof. Prashant Dave conducted the programme and Prof. Kanubhai Shah accorded the vote of thanks.

ग्रंथ समीक्षा

जैन दर्शन में द्रव्य गुण पर्याय की अवधारणा

प्रो. सागरमलजी जैन ने लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर में वर्ष 2009 में आगमप्रभाकर मुनि पुण्यविजयजी स्मृति व्याख्यानमाला में तीन दिन जैन दर्शन में द्रव्य गुण पर्याय की अवधारणा पर गवेषणात्मक व्याख्यान दिया था. जैनदर्शन का यह आगमिक काल से ही बहुचर्चित विषय है. भारतीय दर्शनों में भी द्रव्य एवं गुण शब्द प्रचलित हैं तथापि प्रत्येक दर्शन में द्रव्य के स्वरूप के विषय में मतान्तर है. द्रव्य की नित्यता एवं अनित्यता, द्रव्य एवं गुण का परस्पर संबन्ध आदि विषयों पर जैन दार्शनिकों ने पर्याप्त चिन्तन किया है. प्रो. सागरमलजी जैन ने प्रस्तुत व्याख्यान में सभी दर्शनों की जैन दर्शन के साथ समालोचना करते हुए द्रव्य गुण एवं पर्याय की विचारणा प्रस्तुत की थी. इन्हीं व्याख्यानों को पुस्तकाकार में संग्रहित कर हिन्दी भाषा में लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति ग्रंथमाला के 151वें पुष्प के रूप में प्रकाशित किया गया है.

लेखक: प्रो. सागरमल जैन
प्रधान संपादक: डॉ. जितेन्द्र बी. शाह
भाषा: हिन्दी, पृष्ठ: 8+76, मूल्य: 150/- प्रकाशन वर्ष: 2011
प्रकाशक: लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर
ISBN 81-85857-33-4

हेमचंद्राचार्य

डॉ. ब्यूलर ने वर्ष 1889 में जर्मन भाषा में हेमचंद्राचार्य का जीवन वृत्त बहुत ही उत्कृष्ट रूप में प्रकाशित किया था. जिसका अंग्रेजी अनुवाद एक जर्मन महिला द्वारा किया गया जिसके आधार पर मोतीचंद गिरधरलाल काप़डीया ने अपने कारावास के दौरान गुजराती भाषांतर किया था. जिसे वर्ष 1934 में मुंबई से प्रकाशित किया गया था. इस मूल कृति के संदर्भ में गुजराती अनुवादक ने यथायोग्य भूरि-भूरि प्रशंसा तो की है साथ ही यह भी कहा है कि महापुरुषों के जीवन चरित्र में कई बिन्दु हो सकते हैं एवं संशय के स्थान पर कोई निर्णय न देकर किस प्रकार तटस्थ रहना है यह पद्धति इस कृति में द्रष्टव्य एवं अनुकरणीय है. हांलाकि यह रचना अंतिम नहीं कही जा सकती क्यों कि इसमें तत्कालीन आर्यरीति-नीति का ध्यान न होने के कारण मूल कर्ता ने कई जगहों पर विसंगति भी कर दी है. जर्मन से अंग्रेजी एवं अंग्रेजी से गुजराती भाषा में अनुवादित प्रस्तुत कृति कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र के समग्रजीवन को समझने के लिए एक विश्वसनीय स्रोत कहा जा सकता है. लगभग 75-76 वर्षों बाद इक्कीसवीं सदी में प्रचलित भाषा तथा आवश्यकतानुसार इस रचना को संशोधित कर प्रस्तुत करने में डॉ. जितेन्द्र बी. शाह का प्रयास सराहनीय है तथा यह संस्करण जिज्ञासुओं के साथ ही संशोधकों हेतु भी उपयोगी बनेगा ऐसा हमारा विश्वास है. इस रचना का हिन्दी अनुवाद भी सुधी पाठकों को अपेक्षित है.
गुजराती अनुवाद: मोतीचंद गिरधरलाल कापडीया (1934)
संपादक: जितेन्द्र बी. शाह
भाषा: गुजराती, पृष्ठ: 223, मूल्य: 150/=, प्रकाशन वर्ष: 2011
प्रकाशक: श्रुत रत्नाकर, अहमदाबाद

Shrenik Lalbhai
Chairman

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