ShortNews in English
Pachpadra: 19.06.2012
Acharya Mahashraman said that good fortune is connected with peaceful life.
News in Hindi
भावात्मक भाग्य
बालोतरा १९ जून २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
एक व्यक्ति प्राय: शांत रहता है, ज्यादा गुस्सा नहीं करता, निरहंकारी और विनम्र होता है, काम-वासना पर भी अंकुश रखता है, माया नहीं करता, सरलता और सहजता का जीवन जीता है, संतोष का जीवन जीता है। जबकि दूसरा व्यक्ति बहुत क्रोधी होता है, छोटी-सी बात पर भी आवेश में आ जाता है, अपशब्द बोलना शुरू कर देता है। वह स्वयं भी अशांत रहता और उसके निमित्त से दूसरे लोग भी अशांत हो जाते हैं, वासन-ग्रस्त हो जाता है, विशेष शक्तिमता नहीं होने पर भी अहंकार करता है। यह है भावना संबंधी भाग्य।
जो व्यक्ति क्रोध-विजय, अहंकार-विजय, माया-विजय, लोभ-विजय और काम-विजय की साधना करता है अथवा इनको कम करने का प्रयास करता है, शांत स्वभाव वाला होता है, उसके भावात्मक सौभाग्य का निर्माण हो सकता है। जो व्यक्ति बार-बार क्रोध करता है, साधना रहित जीवन जीता है, भावशुद्धि का ध्यान नहीं रखता, अपवित्र विचारों वाला होता है, कषाय बहुत जीवन जीता है, वह भावात्मक दुर्भाग्य का निर्माण कर लेता है।
दो भाई थे। दोनों में परस्पर प्रेम था। एक दिन दोनों ने एक ज्योतिषी को बुलाया और अपने भविष्य के बारे में जानना चाहा। ज्योतिषी ने अपने ज्ञान के आधार पर दोनों के बारे में बताया कि बड़े भाई का भाग्य तेज है, भविष्य उज्ज्वल है। छोटे भाई का भाग्य कमजोर है, मंद है, कोई विशेष सफलता हासिल नहीं कर पाएगा।
बड़े भाई ने सोचा कि मेरा भाग्य तो तेज है। मुझे तो सफलता अपने आप मिल जाएगी, यह सोचकर आचरण को खराब कर लिया। शराब पीना, धूम्रपान करना, वेश्या गमन करना, गुस्सा करना आदि अनेक अवगुण उसके जीवन में आ गए। ये अवगुण आदमी के भाग्य को खत्म कर देते हैं। छोटे भाई ने सोचा कि मेरा भाग्य कमजोर है इसलिए मुझे संयम रखना चाहिए। वह नशा-मुक्त, गुस्सा-मुक्त और उपशांत कषाय का जीवन जीने लगा। जितना संभव होता, दूसरों का कल्याण करता। किसी का बुरा नहीं करता।
कुछ वर्षों बाद अकस्मात वहां के राजा का स्वर्गवास हो गया। राजा के कोई संतान नहीं थी। इसलिए राज्य के प्रमुख व्यक्तियों ने यह निर्णय किया कि हथिनी जिसके गले में माला पहना देगी, उसी को राजा घोषित कर दिया जाएगा। निश्चित समय पर एक बड़े मैदान में लोग पंक्तिबद्ध खड़े हो गये। दोनों भाई भी उस पंक्ति में खड़े थे। हथिनी अपनी गति से चल रही थी। ज्यों ही बड़े भाई के पास पहुंची, गला आगे किया किंतु माला नहीं मिली। थोड़ी दूर पर छोटा भाई सहज मुद्रा में खड़ा था। हथिनी आगे बढ़ी और छोटे भाई के गले में माला डाल दी। लोगों ने उसे राजा के रूप में स्वीकार कर लिया। कुछ दिनों बाद उस ज्योतिषी को बुलाया गया। ज्योतिषी हाजिर हुआ। दोनों भाइयों ने कहा-आपने गलत बात क्यों बताई? आपकी बात में इतना अंतर कैसे आ गया? ज्योतिषी ने कहा- मैंने कोई गलत बात नहीं बताई। यह अंतर तो आपके कर्मों से, आचरणों से आया है। बड़े भाई के जीवन में पुण्य का योग था, सौभाग्य का योग था किंतु स्वयं के दुराचार ने ही पुण्य को, सौभाग्य को खत्म कर दिया। छोटे भाई का भाग्य कमजोर था किंतु अच्छे पुरुषार्थ ने, शुद्ध आचरण ने दुर्भाग्य को खत्म कर दिया। इसलिए परिणाम में परिवर्तन आ गया।
आदमी सत्पुरुषार्थ करे। गलत आचरणों से बचे। अच्छे पुरुषार्थ से भाग्य अच्छा बन सकता है। कोई व्यक्ति केवल भाग्य को माने और पुरुषार्थ को कुछ भी न माने तो मेरी दृष्टि में कुछ कमी है। यदि कोई व्यक्ति केवल पुरुषार्थ को ही सब कुछ माने और भाग्य/नियति को कुछ भी न माने तो भी ऐकांतिक चिंतन हो जाता है।
आचार्य महाश्रमण