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Bhakrod: 07.07.2013
Devotees are Hearing Pravachan of Acharya Mahashraman.
News in Hindi
'मन के शुद्ध भावों और विचारों का महत्व वाणी से अधिक' - आचार्य श्री
भाकरोद जुलाई लाडनू से जै त स प्रतिनिधि समृद्ध नाहर की रिपोर्ट
तेरापंथ धर्म संघ की अहिंसा यात्रा शनिवार को भाकरोद पहुंची। आचार्य श्री महाश्रमणजी अंहिसा यात्रा में साथ चल रहे 100 साधु साध्वियों ने भाकरोद के एक स्कूल में प्रवास किया। गुरुदेव ने आस पास के गांवों और कस्बों से आए श्रावक श्राविकाओं को मन की शुद्धि का संदेश दिया।
आचार्यश्री ने कहा कि व्यक्ति की वाणी से भी ज्यादा उसके मन और भावों का महत्व है। मन में पवित्रता है तो उसे किसी से डगमगाने की जरूरत नहीं है। बुद्धि से ज्यादा मन की शुद्धि का महत्व है। जैन धर्म में गुप्ती की साधना करने से मनुष्य शुद्धि की ओर अग्रसर होता है।
इसलिए मनुष्य को गृहस्थ जीवन में बुरे विचार को स्थान नहीं देना चाहिए। मन निर्मल है तो वह पापों से बच जाएगा। इन्हीं विचारों से उसकी धार्मिक बनने की शुरुआत हो जा जाती है जो मनुष्य को स्वर्ग के द्वार पर ले जाती है। जीवन बंधन और मोक्ष में भावों की प्रधानता है। भावों की दिशा बदलते ही दशा बदल जाती है।
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि मन पर लगाम हो। इंद्रियों को संयमित रखो। साधना का सूत्र है भाव शुद्धि से मन शुद्धि। इससे बौद्धिक क्षमता का विकास हमेशा अच्छे कार्यों में होगा। अणुव्रत भाव शुद्धि में सहायक तत्व है। आचार्य श्री महाप्रज्ञजी प्रेक्षा ध्यान करवाते थे। प्रेक्षा ध्यान से मन में समता भाव उत्पन्न होता है। जीवन विज्ञान की बात भी भाव शुद्धि पर निर्भर करती है। दिमाग से समस्या पैदा हो सकती है लेकिन शुद्ध भावों वाले दिमाग से उसका समाहित भी किया जा सकता है। जैन दर्शन के अनुसार विद्यार्थी जीवन में विद्या के बल पर ही अन्य महत्व को जान पाता है। इनका ज्ञान हर मनुष्य के लिए आवश्यक है। विद्या से व्यक्ति मूर्खता को अपने से दूर कर सकता है। अध्यात्म की साधना से मूढ़ता दूर होती है। इसके बाद जीवन में संयम जगह लेता है। हमें अपने मन पर नियंत्रण रखना है शरीर और अन्य सांसारिक इच्छाओं पर अपने आप नियंत्रण होता है। इससे पहले मंत्री मुनि सुमेरमलजी स्वामी ने भी इंद्रियों पर संयम की बात कही। उन्होंने कहा कि आगमों में कहा गया है कि इंद्रियों को काबू में रखने वाला मनुष्य ही आगे बढ़ता है। इंद्रियों में कई विषय होते हैं। व्यक्ति उनका उपयोग करता है। इससे व्यक्ति संसार में सुख प्राप्त कर लेता है। इंद्रियों का दुरुपयोग करने वाला मनुष्य दुखी होगा ही क्योंकि वह कई बंधनों में बंध कर अपने मूल स्वरूप को भूल जाता है। इंद्रियों को वश में रखने से व्यक्ति धर्म के करीब होता है।
आज चिमराणी में अहिंसा यात्रा
मुनिश्री विजय कुमार ने भगवान महावीर की वाणी को गीत के माध्यम से सुनाया। जीवन साकार करने वाली बातें बताई। इस मौके पर संपत लूणिया ने 'वीर महावीर धरा पर आए' गीत से भगवान महावीर की स्तुति की। मुनि मनन कुमार ने बताया कि रविवार को अहिंसा यात्रा चिमराणी पहुंचेगी। प्रवचन कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार ने किया।