18.05.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 19.05.2016
Updated: 05.01.2017

Update

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हंगरी दूतावास में लगी है भगवान महावीर की मूर्ति

आज हंगरी के नई दिल्ली स्थित दूतावास में हंगरी के सूचना एवं संस्कृति केन्द्र के निदेशक डॉ0 जोल्टन से मुलाकात एवं उनके परिवार के साथ शुद्ध सात्विक शाकाहारी भोजन करके अति प्रसन्नता हुई। डॉ0 जोल्टन की पत्नी मृदुभाषी एवं विद्वान महिला हैं। इस मुलाकात के दौरान मुझे जब आश्चर्य हुआ, जब मैंने दूतावास में भगवान महावीर की मूर्ति देखी। भगवान महावीर की मूर्ति के साथ डॉ0 जोल्टन, उनकी पत्नी, पद्मश्री डॉ0 श्याम सिंह ‘शशि’, रिसर्च फाउण्डेशन की सचिव डॉ0 ऋचा सिंह एवं हंगरी दूतावास के अधिकारीगण चित्र खिचवाते हुए।

Dr. Amit Jain, New Delhi [ from left IInd ]

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राजस्थान का फलौदी क्षेत्र जहां आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज का विहार चल रहा है, आज का तापमान 50 डिग्री को पार कर गया। जहां हम घर में ऐसी में बैठकर भी हाय हाय करते है वही समता धारी गुरुवर आग उगलते आसमान के बावजूद भी बिना पंखे के भी शान्ति का अनुभव करते है।
धन्य है ऐसी तपस्या
धन्य है साधना ऐसी
50 डिग्री में भी जो
मन में शान्ति धारी जैसी

आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज की जय।

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❖ Union with Self Not Possible through Honours And Worship -Acarya VishudhaSagar G ❖

O, pure soul. You are availing/enjoying many respects and honors; but be mindful that it is not to last long? You are to get these honors and worshiping so long as you are unmindful of them. Whosoever has absorbed him in honorees and worshipping, has become devoid of honor and worshipping. O, wise and prudent soul, remembers that these honors and worshipping are not yours. The gems-trio is worshipped. Worshipping is not done that of bricks and mortar (with which temples are built), it is that of deity installed within it. A temple/Chaityalaya is like a body within which soul (Chaitya) studded with gems-trio is placed. It is so because the soul is adjoined with gems-trio is seated within the body. The temple/chaityalaya/house of lord becomes worship-able, the moment the lord-deity is installed there. The deity consists of gem-trio and the temple is its body. Wherever Gem-trio is worshipped, its body automatically gets worship-able.

O my consciousness, do not attempt to procure honors and worshipping. In that case, your would neither be worship-able, nor a worshipper. The worship-able, does not aspire for being worshipped. He, who worships, become worship-able,. Be noted that he who aspires for being worshipped, never become worship-able. Give up your ego, you will be worship-able.

O wise and prudent one! The union with self is not possible through physical honours and worshipping. They can be possible through meditation or union with self, but one can never attain union with self by being honoured or worshipped. Take note; in case you really aspire for worships and honors, you give your ego vanity; you shall thereby make yourself worship-able /object of worship.

|| I bow disembodied pure souls (Siddhas) and all the five supreme beings ||

From: 'Shuddhatma Tarnggini'
Author: Aacharya Vishudha Sagarji Maharaj
English Translator: Darshan Jain, Prof. P. C. Jain

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❖ राम कोन थे - जिन्होंने बरसो तपस्या करने के फल स्वरुप ये राम का पद पाया था...और अंत समय में दिगंबर दीक्षा लेकर मोक्ष चले गए....लेकिन देखने वाली बात ये है की हिन्दू धर्मं में आपको राजा राम का रूप मिलेगा और जिनेन्द्र प्रणित धर्म में आपको दिगम्बर तीर्थंकर मुद्राधारी वीतरागी राम का रूप मिलेगा... उनके जीवन में हर जगह मर्यादा से काम किया इसलिए उन्हें "मर्यादा पुरुषोतम श्री राम" [जो मर्यादा में रहे अपने को संयम में रखे, जो पुरुषो में उत्तम अर्थात महान जीवन है जिनका और जो राम अर्थात भगवान आत्मा है...] "हे राम बसों घट माहि!!" राजा दशरथ, श्री राम, लक्ष्मण ये सब रघुवंश के थे इनके वंश में बड़े बड़े राजा हुए और सब मर्यादा के धारक थे कहा भी गया है "रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाये पर वचन न जाये"

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❖ Love of Supreme Soul is True Policy -Acarya VishudhaSagar G ❖

O, pure soul; If you unite with invisible, unparalleled and incessant flame of pure and perfect soul, you shall stop liking others. You shall get rid of the troubles of meeting worldly persons. The interesting thing is; one can seek the path of salvation in his mundane existence. Go and seek the refuge in the lord of eternal truth; he is the father, friend, companion and brother. O soul, extend love and affection to your pure and perfect soul; who is eternal, flawless, stainless and salvated natural self. The mundane soul is subjected to transmigration in various grades of life when one becomes unchaste by forgetting his real beloved. Be careful even now. Stop transmigration and be absorbed in your self.

|| I bow disembodied pure souls (Siddhas) and all the five supreme beings ||

From: 'Shuddhatma Tarnggini'
Author: Aacharya Vishudha Sagarji Maharaj
English Translator: Darshan Jain, Prof. P. C. Jain

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❖ जब लक्ष्मण का ' आकस्मिक ' निधन हो गया तो राम छोटे भाई के विछोह में 6 महीने तक दुःख करते रहे | उनके मोह में अपना भान भूल बैठे | फिर सेनापति देव के द्वारा समझाए जाने पर संयम स्वीकार किया | श्री राम जब दिगंबर दीक्षा लेकर तप करने लगे क्षपक-श्रेणी चढ़ने लगे तब सीतेंद्र (महासती ' सीता ' का जीव जो संयम लेकर 16वें देवलोक का स्वामी हुआ था) ने वहाँ आकर मोहक, कामुक और आकर्षक दृश्यों की विकूवर्ना की | सीतेंद्र चाहता था कि राम मोक्ष न जाकर स्वर्ग आ जाएँ तो हम मित्र बन जाएँ | पर ' श्री राम ' अविचल रहे | केवल ज्ञान प्राप्त किया | 17,000 वर्ष की आयु में ' श्री राम' ने निर्वाण प्राप्त किया |

हम लोग रामायण की बात करते है लेकिन बात रावणायण की होनी चाहिए! रावण तो राम से भी दस कदम आगे का काम करने वाले है! राम हलधर थे, वो रावण का जीव तीर्थंकर होगा, और सीता का जीव गणधर होगा! जितना महा-संग्राम दोनों ने मिलकर किया था, उससे कही अधिक शांति धरती पर करके मोक्ष चले जायेंगे, लक्षमण का जीव भी तीर्थंकर बनेगा, रावण की broadcasting करने सीता का जीव गणधर बनकर बैठेगा, अब सोचिये! भव भव का बैर कहा चला गया, व्यक्ति अतीत की और तथा आने वाले कल की और नहीं देखता..बस उसके मन में वर्तमान की प्रयाए रह जाती है, कितना सुन्दर सीन होना जब रावण तीर्थंकर होना, सीता गणधर और रामायण का द्रश्य अतीत हो जायेगा...इस प्रकार की घटनाएं भुतकाल में अनंत हो गयी है और भविष्य काल में भी होगी!

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