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❖ Sainthood Means Victory Over Desires -Acarya VishudhaSagar G ❖
O pure soul. What do you desire? O brother the conquer or of desire alone becomes the world conqueror. The mundane souls, who is immersed in desires lives in lust. He who conquers desires does really conquer lust. Hence O, consciousness! You crush your desire ness. The pit of desires is so large and deep that the entire universe looks like an atom therein. Under such circumstances, what can be give to mundane souls is the question asked by Acharya Shri Gun Bhadra Swami. Hence, sainthood is that in which the desires are subjected.
|| I bow disembodied pure souls (Siddhas) and all the five supreme beings ||
From: 'Shuddhatma Tarnggini'
Author: Aacharya Vishudha Sagarji Maharaj
English Translator: Darshan Jain, Prof. P. C. Jain
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❖ हनुमान, सुघ्रीव, नल, नील, महानील, गवा, गवाख्य ये कौन थे? - ये विद्याधर और बड़े बलशाली थे, सही में ये बन्दर [वानर] नहीं बल्कि विद्याधर थे जिसका अर्थ है की इनमे कोई भी रूप बनाने की शक्ति थी और इनके वंश का नाम वानरवंश था और इनके ध्वज का चिन्ह भी बन्दर थे, लेकिन समय के साथ लोग इनके सही रूप को न समझने के कारन इनको बन्दर मानने लगे, जीवन के अंत में इन्होने दिगंबर दीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त किया!
रावण, मेघनाथ, कुम्भकर्ण - ये कौन थे? - इनके वंश का नाम राक्षशवंश था वास्तव में ये राक्षश नहीं थे और राक्षश द्वीप पर रहते थे, जैन धर्मं को मानने वाले तीर्थंकर के भक्त थे, क्या रावण के दस मुख थे! नहीं! बचपन में जब रावण खेल रहा था तो इनके गले में पड़ी हुई नो रत्नों की माला में इनके नो मुख दिखाई दिए और इनका नाम दशनन होगया... रावण ने बहुत तपस्या की थी और और पूर्व कर्म का ऐसा उदय आया की उन्हें ऐसे युद्ध हुआ और उन्हें नरक जाना पड़ा और ये सब शाकाहारी थे, मांसाहार का तो सेवन सोच भी नहीं सकते थे, रावण शांतिनाथ भगवन के बहुत बड़े भक्त थे, एक बार भक्ति करते हुए वीणा [एक बैंड] बजाते हुए वीणा के तार टूट गए तो इन्होने अपने हाथ की नाडी निकाल ली और भक्ति करने लगे, अभी तो नरक में है रावण भविष्य में तीर्थंकर बनेंगे!! पर रावण का चरित्र अपने आप में एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व है. रावण सब कलाओं में पारंगत और ज्ञानी था. अंततः लक्ष्मण रावण को मारता है. अंत में, राम, जो एक ईमानदार जीवन जीते हैं, राज्य त्याग के बाद, एक जैन साधु बन जाते हैं और मोक्ष पा लेते है.. दूसरी ओर, लक्ष्मण और रावण नरक में जाते हैं. हालांकि यह भविष्यवाणी भी है कि अंततः वे दोनों ईमानदार व्यक्ति के रूप में पुनर्जन्म लेंगे और उनके भविष्य के जन्म में मुक्ति प्राप्त हो जाएंगी रामायण में भी भगवान राम किसी न किसी रूप में रावण की विद्वता के कायल हैं. राम ने ही लक्षमण को रावण से नीति की शिक्षा लेने की लिए भेजा. तो फिर किस कारण रावण राक्षसत्व ढो रहा है? क्यूँ हमारे इतिहासकारों ने रावण के गुणों को आम आदमी पर ज़ाहिर नहीं होने दिया? सामान्यतः कहा जाता है की पौराणिक राजा लेखकों से अपनी इच्छानुसार इतिहास लिखवाते थे. अगर यह सच है तो हों सकता है शायद इसी कारण सुग्रीव, अंगद और हनुमान जी भी आज तक वानरत्व ढो रहे हों. वाल्मीकि रामायण अनुसार रावण एक वीर, धर्मात्मा, ज्ञानी, नीति तथा राजनीति शास्त्र का ज्ञाता, वैज्ञानिक, ज्योतिषाचार्य, रणनीति में निपुण एक कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति और वास्तुकला का मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ब्रह्म ज्ञानी तथा बहु-विद्याओं का जानकार था। एक पंचेन्द्रिय जीव के पुतले को जलता हुआ देख अनुमोदना करना, खुश होना ये पाप बांध का कारण है, वैसे रावण नरक गया, फिर रावण के जीवन में जो बुराई थी उससे बचो जिससे हमें नरक न जाना पड़े, फिर रावण ने बुरे कर्म किये और नरक जाना पड़ा, मेघनाथ, कुम्भकर्ण ये दोनों तो मोक्ष गए है!! ओह...मोक्ष और सिद्ध शिला पर विराजमान जीव के पुतले जलते हुए खुश होना!! ओह..क्या गति बंध होंगा, क्या पाप बंध होगा, जैसे पत्थर पर लकीर को मिटाया नहीं जा सकता ऐसे कर्मो का बंध होगा जिसको भोगना ही पड़ेगा.
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