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तपस्या से होती है चेतना पावन: मुनि किषनलाल
हांसी, 5 अक्टूबर २०१७
‘‘तपस्या चित्त को निर्मल बनाने की प्रक्रिया है। तपसया शरीर की, मन की भावना की शुद्धि करती है। भारतीय संतों ने तपस्या के अनेक प्रकार बताये हैं, अन्न का परिहार करना उपवास कहलाता है।’’ उक्त विचार प्रेक्षाप्राध्यापक ‘षासनश्री’ मुनिश्री किषनलाल ने अपने प्रवचन में कहे।
मुनिश्री ने आगे कहा कि श्री मोहित जैन के 8 दिन का उपवास किया है इसे अठाई तप कहते हैं। जैन परम्परा में अठाई का बड़ा महत्त्व दिया है। हमारी चेतना पर आठ प्रकार के कर्म का आवरण है। अठाई तपस्या से आठों कर्म में सात कर्म षिथिल होते हैं। तपस्या से पूरे परिवार में उत्साह को वातावरण निर्मित होता है। हांसी शहर के अनेक युवकों ने तपस्या का अभ्यास किया। प्रतिदिन तीन उपवास का क्रम नियमित चला। तपस्या के साथ स्वाध्याय का अभ्यास करने, प्रवचन सुनने से और अधिक निर्जरा होती है। तेरापंथ भवन में तपस्या का क्रम बराबर चलता रहता है, मुनि निकुंजकुमार भी बराबर उपवास आदि करते रहते हैं।
इस दौरान तेरापंथ सभा हांसी के अध्यक्ष दर्षन कुमार जैन, तेरापंथ महिला मण्डल व मोहित जैन के पारिवारिकजनों ने तप अभिनन्दन के क्रम में तप अनुमोदन गीत व अपनी भावना व्यक्त करते हुए की।
- अषोक सियोल
English by Google Translate:
The penance is caused by consciousness: Muni Kishan Lal
5 October 2017
"Austerity is the process of cleansing the mind. The ascetic purifies the body, the feeling of the mind. Indian saints have told many types of austerity, it is called fasting. "The above thoughts are said in the discourse by the observer, 'Shanshan Shree' Munishri Kishan Lal.
Munishri further said that Shri Mohit Jain has fasted 8 days, it is called Atti Tapan. In the Jain tradition, eighti has given great importance. There is a cover of eight kinds of karma on our consciousness. Seven karma is made up of eight karma by eighty austerities. Austerity creates atmosphere for enthusiasm in the whole family. Many youths of Hansi city practiced austerity. The daily routine of fasting is regular. Practicing self-study with austerity, listening to discourses is more idle. In the Tharapanth Bhawan, the order of penance continues, and Muni Nikunjkumar continues to do the same fast.
During this time, the family members of Teerpanth Sangh Hansi, Darshan Kumar Jain, Tarapanth Mahila Mandal and the family members of Mohit Jain expressed their sense of gratitude and their sense of gratitude in the order of asceticism.
- Ashok Sion