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मन को स्थिर कैसे करें: मुनि किषनलाल
हांसी, 10 अक्टूबर 2017।
मुनि किषनलालजी ने तेरापंथ सभा भवन में उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुए अपने प्रवचन में कहा कि शास्त्रों में मन को घोड़े की संज्ञा दी गई है। घोड़े को चंचल माना गया हैं पान्तु प्राणी का मन घोड़े से भी अधिक चंचल हैं चंचलता जागरूकता व एकाग्रता में बाधक तत्व है और मन की चंचलता तनाव, विकार अषान्ति व अस्थिरता उत्पन्न करती है।
अनेक प्रेरणास्पद घटनाओं, संस्मरणों व धर्मसंघ के उदाहरणों से चंचलता को रोकने के उपाय स्पष्ट करते हुए आचार्यश्री महाश्रमण के आज्ञानुव्रती प्रेक्षाप्राध्यापक ‘षासनश्री’ मुनि किषनलाल ने आगे कहा कि संयम का रास्ता अपनाने से चंचलता को कम किया जा सकता है ध्यान योग की सतत साधना द्वारा मन में उठने वाले संकल्प, विकल्प को रोका जा सकता है। शरीर की चंचलता, मन की चंचलता व विचारों की चंचलता रोकने का उत्तम उपाय है - प्रेक्षाध्यान। प्रेक्षाध्यान, योग की साधना द्वारा विचारों की संख्या को म करें मन को स्थिर करें व शरीर को कायगुप्ति के अभ्यास से शरीर की चंचलता को रोकने का प्रयास करें। तेरापंथ धर्मसंघ में वैराग्य के बहुत ही अनोखे व दुर्लभ उदाहरण है। जिन्होंने मानसिक शांति व स्थिरता के लिए संयम का रास्ता अपनाया। इसका अभ्यास अपेक्षित है।
इस अवसर पर सभा अध्यक्ष श्री दर्षन जैन, महिला मण्डल अध्यक्षा श्रीमती सरोज जैन, अणुव्रत समिति अध्यक्ष श्री अषोक जैन, प्रेक्षा प्रषिक्षक श्री लाजपतराय जैन, पूर्वअध्यक्ष श्री डालमचन्द जैन, हरियाणा सभा कोषाध्यक्ष श्री अशोक जैन विषेष रूप से उपस्थित थे।
- अषोक सियोल
English by Google Translate:
How to stabilize the mind: Muni Kishan Lal
October 10, 2017
Muni Kishanlalji, in his discourse while addressing the holy assemblies in the Thirampanth Sabha building, said that in the scriptures the mind has been called a horse. The horse is considered playful. The Pantu creature's mind is more agile than the horse; Spontaneous awareness and concentration are the disruptive elements and the transience of the mind creates stress, disorder, unrest and instability.
Explaining the ways of preventing instability from the examples of many inspirational events, memoirs and congregation, 'Jansan Shree' Muni Kishan Lal, the intuitive viewer of Acharyashree Mahishram, further said that by adopting the path of restraint, the transience can be reduced by continuous meditation of yoga Resolutions that arise in the mind, the option can be stopped. The best way to stop the restlessness of the body, the restlessness of the mind and the restlessness of thoughts - observation. Observe the number of thoughts by observing the study of yoga, stabilize the mind and try to stop the transience from the body through the practice of Kagguti. Terapanth is a very rare and rare example of monogamy in the congregation. Who adopted the path of restraint for mental peace and stability Its practice is expected.
Speaking on the occasion, Speaker Mr. Darshan Jain, Women's Chairperson Mrs. Saroj Jain, President of Anuvrat Samiti, Shri Ashok Jain, Exhibition Teacher Mr. Lajpat Rai Jain, Former President Mr. Dalamchand Jain, Haryana Ashok Jain, treasurer of Haryana Sabha were present in the field.
- Ashok Sion