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जितनी खुशी से धर्म-ध्यान करेंगे, उतने अच्छे फल मिलेंगे। ध्यान से सुख भी, दुख भी और परम सुख भी प्राप्त होता है, तो विवेकी जन किसका ध्यान करें?" -क्षुल्लक ध्यानसागर जी / आचार्य विद्यासागर शिष्य..
♦"ध्यान से शक्ति केंद्रित हो जाती है और केंद्रित हुई शक्ति से कार्य हो जाते हैं।"
♦"जहाँ पर अपनी बुद्धि लगती है वहाँ पर ध्यान लगता है।"
♦"जिसने जैसा ध्यान किया, उसने वैसा प्राप्त किया।"
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बिम्ब और प्रतिबिम्ब में अंतर होता है -आचार्य श्री विद्यासागर जी #AcharyaVidyasagar golden thumb rule to control your mind! If You wan #Peace 🙂🙂
चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने कहा की बिम्ब और प्रतिबिम्ब में अंतर होता है | बिम्ब किसी वस्तु का स्वाभाव व उसके गुण आदि होते हैं परन्तु उसका प्रतिबिम्ब अलग - अलग हो सकता है यह देखने वाले की दृष्टि पर निर्भर करता है की वह उस बिम्ब में क्या देखना चाह रहा है | यदि सामने कोई बिम्ब है और उसे दस लोग देख रहे होंगे तो सबके विचार उस प्रतिबिम्ब के प्रति अलग - अलग हो सकते हैं | किसी को कोई चीज अच्छी लगती है तो वही चीज किसी और को बुरी लग सकती है परन्तु इससे उस बिम्ब के स्वाभाव में कोई फर्क नहीं पड़ता है | जैसी आपकी मानसिकता और विचार उस बिम्ब के प्रति होंगे वैसा ही प्रतिबिम्ब आपको परिलक्षित होगा |
यदि आप शान्ति चाहते हो तो दिमाग को कुछ समय के लिए खाली छोड़ दो उसका बिलकुल भी उपयोग मत करो कुछ भी मत सोचो आपको कुछ ही समय में शान्ति की अनुभूति होने लगेगी परन्तु शान्ति को कोई बाज़ार से नहीं खरीद सकता और न ही उसे कोई छू सकता है उसे केवल महसुस किया जा सकता है |
मन + चला = मनचला अर्थात मन चलायमान होता है उसे वश में करना, एकाग्र करना बहुत कठिन काम है | इसके लिये काफी प्रयास की आवश्यकता होती है | यदि आपने अपनी इन्द्रियों को वश में कर लिया तो आप अपने मन को भी अपने वश में (Control में) कर सकते हो जिससे आपको कभी लोभ नहीं होगा और आप हमेशा संतुष्ट और प्रसन्न रह सकते हैं और अपनी मंजिल और लक्ष्य को आसानी से प्राप्त कर सकते हैं | । यह जानकारी चंद्रगिरि डोंगरगढ़ से निशांत जैन (निशु) ने दी है।
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News in Hindi
आचार्य श्री विद्यासागर जी के संघ से सबसे Senior मुनिराज मुनि समयसागर जी की टिकमगढ़ में हुई भव्य आगवानी #MuniSamaysagar
मुनि श्री ने कहा कि स्वभाव सागर जी महाराज को आचार्य श्री के कर कमलों से सन तेरासी में मुनि श्री साधु सागर जी महाराज, समता सागरजी, समाधि सागर, सरलसागरजी के साथ मुनि श्री स्वभाव सागरजी ने दीक्षा ग्रहण की थी लगभग पैतीस वर्ष के साधना काल में उन्होंने वीतराग के पथ पर चलकर साधना की और आप सभी को ज्ञात है कि उनकी समाधि हो गई।श्रमण के मन में भी विकल्प तो आते है साधर्मी वियोग परिणामों को प्रभावित किये विना रह नहीं सकता साधना की पुणयता समाधि जिसे उन्होंने प्राप्त किया।
मृत्यु अनिवार्य तत्व है जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु होना निश्चित है मरने से डरो नहीं डरने से मृत्यु छूटेगी नहीं सूर्य निकलता है ढलने के लिए वह शनै शनै चढता जाता है और फिर ढलने की ओर वङते हुये अस्ताचल मैं समा जाता है इस जीव की भी यही स्थिति है आचार्य गुरु देव के चरणों में बैठकर जिनने सन तेरासी मे ईशरी मे दीक्षा ली ऐसे हमारे संघ के साधु मुनि श्री स्वभाव सागर जी की समाधि हो गई साथ के साधु के जाने पर विकल्प तो आता ही है उक्त आशय के उदगार मुनि श्री स्वभाव सागर जी महाराज को श्रद्धांजलि देते हुए परम पूज्य मुनि श्री समयसागर जी महाराज ने व्यक्त किए।
मुनि श्री ने कहा कि प्रातः कल की वेला में भी लाली हैं संध्या में भी लाली हैं एक सुलाती एक जगती कितनी अन्तर वाली है प्रातः कल की लाली हमें जगती हैं वहीं संध्या में भी लाली हैं जो हमें सुलाती है इसलिए जब तक जीवन चल रहा है कतवतकभी अस्थ हो सकता है अस्थ होने से पहले हमें अपना कल्याण कर लेना चाहिए निश्चित रूप से हम आचार्यश्री हम सब को चला रहे हैं निरन्तर प्रेरणा दे रहे हैं आप सब का भविष्य उज्ज्वल हो स्वभाव सागर जी भी आगे चलकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करें ।
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