Guru Pushkar Jayanti Celebrated At Gurgaon

Published: 01.11.2012
Updated: 21.07.2015

Large number of dedicated members of Sthanakwasi Jain Community attended 103rd Guru Pushkar Muni Jayanti celebrations at Gurgaon on 14th October, 2012. The programme was organised at New Jain Sthanak at Gurgaon in the auspicious presence of Upadhay Ramesh Muni and Dr. Rajendra Muni group of Saints. Pushkar Muni is highly regarded & revered saint of Sthanakwasi sect with very high number of committed followers. He was one of the first saint to take the Jaina philosophy outside Jain Diaspora. He authored more then three hundred books & travelled barefooted around the country.

Recognising his approach towards humanity, peace and coexistence, then President of India Giani Zail Singh decorated him with the title of "World Saint". Celebrations started with religious prayers and followed by discourse from Dr. Rajendra Muni and Upadhay Shri Ramesh Muni and Shri Surendra Muni. The meet was also addressed by Avinash Chordia, Anand Prakash Jain, Sher Singh, Prashant Jain etc. (executive body members of Stanthnakwasi Jain Conference), Anil Jain (Ahimsa Foundation). Many other devotees also shared their memories about Guru Pushkar Muni.

It was also the day of celebration as Shri Surendra Muni had completed 25 years of his Diksha period. On this occasion, he also released a grand compilation of 3,100 Jain Bhajans. Shri Surendra Muni is a very popular saint due to his personal connectivity with his followers. He has authored several books of social relevance. Recognizing his literary contributions the community titled him "Sahitya Diwakar". Surendra Muni conducted Antakshri programme in the second half of the day. The day long programme was very well organised and conducted under the strict guidance of Shri Surendra Muni.

उपाध्याय पुष्कर मुनिजी म.सा. का 103वां जन्म जयंती समारोह संपन्न, उदयपुर

उदयपुर, 21 अक्टूबर। उपाध्याय पुष्कर मुनि ने समाज को नई दिशा प्रदान करने के लिए काफी संघर्ष किया। वे ऐसे महान वक्तित्व के धनी थे जिन्होंने पूरे विश्व में प्रेम, शांति और भाईचारे का संदेश प्रसारित किया। आज हम सभी उनके द्वारा प्रदत्त प्रेरणाओं के ऋणी हैं। ये विचार राष्ट्रसंत प्रवर्तक गणेशमुनि शाश्त्री ने वक्तित्व किए। वे रविवार 21 अक्टूबर को देवेन्द्र धाम में श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालया तथा जैनाचार्य श्री देवेन्द्र मुनि शिक्षण एवं चिकित्सा शोध संस्थान के सयुक्त संक्युत तत्वावधान में साधना के शिखर पुरूष विश्वसंत उपाध्याय प्रवर गुरुदेव पुष्कर मुनि म.सा. की 103वीं जन्म जयंती समारोह को संबांधित कर रहे थे।

प्रवर्तक गणेश मुनि ने कहा कि उपाध्याय पुष्करमुनि ने जैनधर्म, दर्शन एवं चारित्र के प्रभाव की पताका पूरे विश्व में फैलाने का कार्य किया। आज उन्हीं के प्रयासों और दूरदृष्टि का परिणाम है कि जैनधर्म अनवरत रूप से प्रगति के सोपान की ओर अग्रसर है। वे नवकार मंत्र के महान आराधक थे। उन्होंने जैनधर्म के प्रत्येक पहलुओं को बारीकी से लोगों तक पहुंचाने का काम किया। उन्हें वर्तमान के साथ भविष्य की स्थितिययों का ज्ञान था। इसी वजह से उन्होंने युग की स्थिति का भांपते हुए जैनधर्म को नई दिशा देने का प्रयास किया। इसी वजह से वे युगदृष्टा कहलाए। इस अवसर पर सलाहकार दिनेश मुनि ने पुष्कर मुनि द्वारा दिए गए उपदेशों का स्मरण करते हुए श्रावक समाज से आह्नान किया कि वे उनके बताए सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें। उन्होंने समाज को विकास के पथ पर ले जाने का प्रयास किय। उन्होंने कहा कि उपाध्याय पुष्कर मुनि वैदिक एवं श्रमण संस्कृति के अनूठे सेतु थे। वे दीक्षा ग्रहण करने के बाद जैन साधना पद्धति पर बढते चले गए। आगम की गाथाओं एवं नवकार महामंत्रा का निनाद उनके वक्तित्व का एक आवश्यक सोपान बन गया था। वे संस्कृत के साथ-साथ वैदिक, बौद्ध न्या आदि दर्शनों तथा गीता, उपनिषद् एवं आगम ग्रन्थों के प्रकाण्ड विद्वान और हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत, पाली, राजस्थानी, गुजराती, मराठी, उर्दू आदि 9 भाषाओं के ज्ञाता होने के साथ-साथ साहित्य लेखन के धनी थे। उन्होंने आध्यामिक आध्य्क और नैतिक वीषयों पर सवा सौ से अधिक पुस्तकों के साथ जैन कथा के 111 भागों, 300 वीषय, 1000 से अधिक कहानियों का लेखन कर अपना नाम अमर कर दिया। प्रवर्तिनी महासती डॉ. चंदना ने अपने संबोधन में कहा कि पुष्कर मुनि सहृदय की प्रतिमूर्ति थे। उनके उपदेश प्रेम, अहिंसा, सहिष्णुता पर आधारित होते थे। अपने प्रवचनों और व्यहार द्वारा जीवन के उच्चतम नैतिक, मानवीय और आध्यामिक मूल्यों को समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया। समारोह में उदयपुर शहर सहित मेवाड व राजस्थान के अलावा मध्या प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों से आए श्रावकः श्राविकाएं भी उपस्थित थे। समारोह का संचालन डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि एवं श्री तारक गुरु जैन ग्रंथालय्ा के मंत्री वीरेंद्र डांगी ने किया।

जीवन में संस्कारों का सर्वाधिक महत्व: मुनि रमेश

03 Oct 2012,  जासं, लुधियाना, इकबाल गंज चौक स्थित तेरापंथ भवन में जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा के तत्वावधान में बाल संस्कार निर्माण शिविर का आयोजन किया गया।

इसमें मुनि श्री रमेश कुमार ने कहा कि जीवन में संस्कारों का सर्वाधिक महत्व है। बचपन में प्राप्त संस्कारों के आधार पर ही भविष्य का निर्माण होता है। आज के युग में अभिभावक अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति जागरूक अवश्य हैं, किंतु संस्कारों की दृष्टि से बहुत ही उदासीनता नजर आ रही है। इन संस्कार निर्माण के शिविरों के माध्यम से इन छोटे-छोटे बच्चों में यदि आंशिक रूप में संस्कारों का बीजारोपण होता है, तो वह शिविर की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हो सकेगी। मुनि चैतन्य कुमार अमन ने कहा कि जीवन में सर्वाधिक उपकार माता-पिता व धर्म गुरु का होता है। वे अपने बच्चों को शिक्षा के साथ संस्कार देने का कार्य करते हैं। बच्चों में विनम्रता, अनुशासन व प्रणाम की संस्कृति का विकास होता है। इस अवसर पर अनुशासित विद्यार्थियों के रूप में धीरज बरड़िया का चयन किया गया। अनुशासित कन्या के रूप में तृषा आहूजा का नाम सर्वाधिक सामायिक का अनेक बालकों व 7 घंटे तक सर्वाधिक मौन पर उन्हें पुरस्कार दिया गया। सभी बच्चों को पुरस्कार देकर उनका उत्साह बढ़ाया गया। इस अवसर पर विनोद सुराना, सरोज कोचर, प्रेम सेठिया, ममता सेठिया, रेखा दुग्गड़, ममता सुराना, राय चंद चोराड़िया व मनोज धारीवाल आदि उपस्थित हुए।

Sources

Ahimsa Times,

2012-11
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