Chobisi ►08 ►Stavan for Bhagwan Chandra Prabhu

Published: 26.03.2016
Updated: 26.03.2016

Chobisi is a set of 24 devotional songs dedicated to the 24 Jain Tirthankaras.


Composed by:

Dedicated to:

Acharya Jeetmal

Language: Rajasthani:

8~~तीर्थंकर चन्द्र प्रभु

प्रभु! चन्द जिनेश्वर! चन्द जिसा ।

हो प्रभु! चन्द जिनेश्वर चंद जिसा,वाणी शीतल चंद सी न्हाल हो।
प्रभु! उपशम रस जन सांभल्यां,मिटै करम भरम मोह जाल हो।।१।।

हो प्रभू! सूरत मुद्रा सोहनी,वारू रूप अनूप विशाल हो।
प्रभु! इंद्र शची जिन निरखता,ते तो तृप्त ने होवे निहाल हो।।२।

अहो! वीतराग प्रभु तूं सही, तुम ध्यान ध्यावै चित रोक हो।
प्रभू! तुम तुल्य ते हुवै ध्यान सूं,मन पायां परम संतोष हो।।३।।

हो प्रभु! लीनपणै तुम ध्यावियां,पामै इंद्रादिक नीं ऋद्धि हो।
बलि विविध भोग सुख संपदा, लहै आमोसही आदि लब्धि हो।।४।।

हो प्रभु! नरेंद्र पद पामै सही, चरण सहित ध्यान तन मन्न हो।
प्रभु! अहमिंद्र पद पामै बलि, कियां निश्चल थारो भजन्न हो।।५।।

हो प्रभु! शरण आयो तुझ साहिबा, तुम ध्यान धरूं दिन-रैन हो।
तुझ मिलवा मुझ उमह्यो,तुम समरण स्यूं सुख चैन हो।।६।।

हो प्रभु! संवत उगणीसै नैं भाद्रवै,सुदि तेरस ने बुधवार हो।
प्रभु! चँद जिनेश्वर समरिया,हुओ आनंद हरष अपार हो।।७।।


Bhagwan Chandra Prabhu


Symbol - Moon

       

08

Stavan for Bhagwan Bhagwan Chandra Prabhu

 

Acharya Tulsi

4:42
Babita Gunecha 3:43

Language: Hindi
Author: Acharya Tulsi

अर्थ ~~8 तीर्थंकर चन्द्र प्रभु

चन्द्र प्रभु! तुम चन्द्रमा के समान निर्मल हो ।

प्रभो! तुम्हारी वाणी  चन्द्रमा की भांति शीतल और उपशम रस से भरी हुई है।जो व्यक्ति उसे सुनते है, उनके कर्म,भृम और मोहजाल दुर हो जाते है।

प्रभो! तुम्हारी सूरत -मुद्रा सुहावनी है, तुम्हारा रूप उदार,अनुपम और श्रेष्ट है। इन्द्र तथा इन्द्राणी तुम्हे देखकर तृप्त ही नहीं हो पाते है।

प्रभो! तुम सही अर्थ में वीतराग हो ।जो अपने चित्त को एकाग्र बना तुम्हारा ध्यान करते है।वे परम् मानसिक तोष की प्राप्ति होने पर ध्यान- चेतना के द्वारा तुम्हारे समान बन जाते है।

प्रभो! तल्लीनता पूर्वक तुम्हारा ध्यान करने से इन्द्र आदि की ऋद्धि प्राप्त होती है, विविध भोग -सामग्री,सुख-सम्पदा तथा आमरशोषधि आदि लब्धियां प्राप्त होती है।

प्रभो! निश्चल मन से तुम्हारा भजन करने वाला नरेन्द्र पद को प्राप्त होता है।चारित्र युक्त तन-मन से ध्यान करने वाला अहमिन्द्र पद को प्राप्त होता है।

प्रभो! में तुम्हारा शरणागत हूँ और दिन-रात तुम्हारा ध्यान करता हूँ।मेरा मन तुमसे मिलने के लिए उतावला हो रहा है।तुम्हारे सुमिरन से मुझेसुख-चैन का अनुभव होता है।

प्रभो! तुम्हारा सुमिरन करने से मुझे अपार आनन्द और प्रसन्नता हुई।

रचनाकाल- वि.सं.१९००,भाद्रव शुक्ला त्रयोदशी, बुधवार।

English Translation:

8th Tirthankara Chandra Prabhu

Chandra Prabhu! You are serene like the Moon.

Lord! Your heavenly voice is soft and filled with the delight of solace. People who are fortunate to hear this, get rid of Karma, aberration and illusion.

Lord! Your facial expression is adorable. Your appearance is unique and noble. Even Indra and Indrani never appease seeing you.

Lord! You are truly an ascetic. People who contemplate you with concentrated psyche, avail a paramount complacency and can be your identical by meditating consciousness.

Lord! By cherishing you with preoccupancy, enrichment comes along like an Indra, Various kinds of Labdhis (attainments) of utility stuffs, prosperity and immortal remedies can be achieved.

Lord! The person who chants you with an unaffected soul can avail dignity of Indra and whose body and mind possessed with Charitra, cherish you, acquires the designation of Ahmindra.

Lord! I am in your protection and cherish you all day and night. I am eager to meet you and feel pleasure and calm by reciting you.

Lord! I am shorelessly cheerful by glorifying you.

Time of Composing - V.S 1900, 13th day of Shukla Bhadrava.
Sources
Project: Sushil Bafana
Text contributions:
Rajasthani & Hindi: Neeti Golchha
English: Kavita Bhansali
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