Jhini Charcha was written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics. Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language.
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice.
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal.. 3 Stanza 11 to 20
११. मोहकर्म खायक-निपन ते, छमें जीव सुजोय।
नव में जीव संवर निर्जरा, दर्शण चारित्र दोय।।
मोहनीय कर्म के क्षय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यो में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव, संवर और निर्जरा -इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। मोहकर्म के क्षय से दर्शन और चारित्र-ये दो गुण उपलब्ध होते हैं।
१२. दर्शण-मोह खायक-निपन ते, छमें जीव ताम।
नव में जीव संवर निर्जरा, खायक सम्यत पाम।।
दर्शन मोह के क्षय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव, संवर और निर्जरा -इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। दर्शन मोह का क्षय होने से क्षायिक -सम्यक्त्व उपलब्ध होता है।
१३. खायक-सम्यक्त चौथा गुणठाणां तणी, छमें जीव विख्यात।
नव में दोय जीव निर्जरा, संवर नहिं तिलमात।।
चोथे गुणस्थान में क्षायिक-सम्यक्त्व का छह द्रव्यो में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वां मं जीव और निर्जरा -इन दो तत्त्वों में समावेश होता है, किन्तु वह संवर१ नहीं है।
१४. खायक-सम्यक्त्व विरतवंत री, छमें जीव सुजाण।
नव में जीव संवर कह्यो, पांचमां सूं पिछाण।।
देशव्रती और सर्व॑व्रती के क्षायिक-सम्यक्त्व का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और संवर -इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। इसका प्रारंभ पांचवें गुणस्थान से होता है।
१५. चारित्र-मोह खायक-निपन ते, छमें जीव सुजाण।
नव में जीव संवर विरत ते, खायक-चारित्र पिछाण।।
चारित्र-मोह के क्षय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यो में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और संवर - इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। चारित्र मोह का क्षय होने से सर्वव्रत -क्षायिक-चारित्र उपलब्ध होता है।
१६. आउखो कर्म खायक-निपन ते, छमें जीव सुजोय।
नव में दोय जीव मोक्ष छै, संसारी में न होय।।
आयुष्य कर्म के क्षय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और मोक्ष - इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। आयुष्य कर्म का क्षायिक भाव संसारी जीवों में नहीं होता।
१७.नाम कर्म खायक-निपन ते, छमें जीव पिछाण।
नव में दोय जीव मोक्ष छे, ते पिण सिद्धां में जाण।।
नामकर्म के क्षय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और मोक्ष -इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। यह क्षायिक भाव सिद्धों में होता है।
१८. गोत कर्म खायक-निपन ते, छमें जीव हे सोय।
नव में दोय जीव मोक्ष छे, अगुरुलघु अवलोय।।
गोत्रकर्म के क्षय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और मोक्ष -इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। गोत्रकर्म का क्षय होने से जीव अगुरुलघु हो जाता है।
१९. अन्तराय खायक-निपन ते, छमें जीव पिछाण।
नव में दोय जीव निर्जरा, पांच खायक-लढ्ध जाण।।
अन्तराय कर्म के क्षय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और निर्जरा -इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। अन्तराय कर्म का क्षय होने से पांच क्षायिक लब्धियां१ प्रकट होती हैं।
२०. अघाति चिहं खायक-निपन ते, इक इक आश्री पूछिंद।
छमें जीव नव में जीव छे, केइ गणि एम कथिंद।।
अघात्य कमों के क्षय-निष्पन्न भाव का समावेश किस द्रव्य और किस तत्त्व मे होता है? यह पूछे जाने पर इसका उत्तर यह है -छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में भी केवल जीव तत्त्व में उसका समावेश होता है। यह कुछ आचायोँ का अभिमत है।