Jhini Charcha was written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics. Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language.
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice.
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal.3 Stanza 21 to 28
२१. अघाति चिहं खायक-निपन ते, केइ कहे इक जीव ताय।
केइ जीव नै मोक्ष कहे, बेहुं नयवचन जणाय।।
अघात्य कमों के क्षय-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यं में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और मोक्ष-इन दो तत्त्वों में समावेश होता है, यह दूसरा मत है। ये दोनों मत नय-सापेक्ष हैं।
सोरठा
२२. खायक-निपन गुणखाण, आख्यो अधिक उमंग सूं!
खयोपशम-निपन जाण, अभिलाषा कहिवा तणी।।
कमों के क्षय-निष्पन्न भाव का मेने उत्साह के साथ वर्णन किया। अब क्षयोपशम-निष्पन्न भाव का निरूपण करना चाहता हं।
क्षयोपशम-निष्पन्न भाव
२३. ✽ज्ञानावरणी खयोपशम-निपन ते, छमें जीव नव में दोय।
चउ नाण अनाण भणवो कह्यो, जीव निर्जरा जोय।।
ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम -निष्पन्न भाव का छह द्रव्यो में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और निर्जरा -इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। उसके क्षयोपशम-निष्पन्न भाव से चार-ज्ञान१, तीन-अज्ञान२ और स्वाध्याय उपलब्ध होते हैं।
२४. दर्शणावरणी क्षयोपशम-निपन ते, छमें जीव सुचीन।
नव में दोय जीव निर्जरा, इन्द्रिय दर्शण तीन।।
दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यो में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और निर्जरा -इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। उसके क्षयोपशम से पांच-इन्द्रियां३ और तीन-दर्शन४ उपलब्ध होते हैं।
२५. मोहणी क्षयोपशम-निपन ते, छमें जीव सुइष्ट।
नव में जीव संवर निर्जरा, चिहं चरण देशव्रत दृष्ट।
मोहनीय कर्म के क्षयोपशम-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यों में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव, संवर और निर्जरा -इन तीन तत्त्वों में समावेश होता है। उसके क्षयोपशम से चार चारित्र, देश व्रत और तीन दृष्टियां उपलब्ध होती हैं।
२६. अन्तराय क्षयोपशम-निपन ते, छमें जीव सुचीन।
नव में दोय जीव निर्जरा, पांच-लढ्ध बीरज-तीन।।
अन्तराय कर्म के क्षयोपशम-निष्पन्न भाव का छह द्रव्यं में जीव द्रव्य में तथा नव तत्त्वों में जीव और निर्जरा -इन दो तत्त्वों में समावेश होता है। उसके क्षयोपशम से पांच लब्धियां७ और तीन वीर्य८ उपलब्ध होते हैं।
२७. वेदनी आउ नाम गोत नो, क्षयोपशम नहिं होय।
तिण कारण ए च्यारू नां कह्या, जाणे विरला कोय।।
वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र कर्म का क्षयोपशम नहीं होता, इसलिए इन चार कमों के क्षयोपशम का निरूपण नहीं किया गया। इस रहस्य को विरल व्यक्ति ही जानते हैं।
२८.ढाल भली ए तीसरी, कह्या निपन तज धद।
भिक्खू भारीमाल ऋषराय थी, 'जय-जश'अधिक आनंद।।
तीसरी गीतिका सम्पन्न। इसमें टरन्द्र मुक्त होकर कमोँ के निष्पन्न भाव का निरूपण किया गया है। भिक्षु, भारीमाल और ऋषिराय के प्रसाद से 'जय-जश गणपति' को अधिक आनन्द का अनुभव हो रहा है।