Jhini Charcha by Jayacharya Dhal 9 Part 2

Published: 15.05.2024
Jhini Charcha was  written by Acharya Jeetmal. It contains macro things of metaphysics.  Jain Terms like Leshya, Bhav, Gunsthan, Yog, Upyog have been discussed on basis of different Agam. He composed it in the form of poetry in an easy Rajasthani language. 
Noted Singer Babita Gunecha has presented it in a melodious voice. 
Jhini Charcha book contains 22 Dhal (Collection of 22 Poems) .
Dhal 9 Stanza 19 to 33

ढाल पद्य 19 से 33

१९. उज्जल लेखै निरबद कुण छै? द्रव्य कषाय म जाणो जी।

बाकी षट्‌ आत्मा छे निरवद, पूछा रो उत्तर जाणो जी।।

विशुद्धि की अपेक्षा कौन-सी आत्मा निरवद्य है? द्रव्य और कषाय ये दो आत्माएं निरवद्य नहीं हैं। शेष छह आत्माएं. निरवद्य हैं। यह प्रश्‍न का संक्षिप्त उत्तर है।

२०. करणी लेखै निरबद कुण छे? चारित्र एकंत जोयो जी।

जोग दर्शण सावद-निरवद, अवर न कहिये कोयो जी।।

करणी की अपेक्षा कौन-सी आत्मा निरवद्य है? चारित्र आत्मा एकान्ततः निरवद्य है। योग ओर दर्शन आत्मा सावद्य तथा निरवद्य दोनों हैं। शेष पांच आत्माएं सावद्य और निरवद्य दोनों नहीं हैं।

२१. सर्वमूलगुण किसी आतमा? चारित्र आत्मा जाणो जी।

सर्वउत्तरगुण जोग आतमा, मुनि करे दस पचखाणो जी।।

कौन-सी आत्मा सम्पूर्ण मूल-गुण है? चारित्र आत्मा सम्पूर्ण मूल-गुण है। कौन-सी आत्मा सम्पूर्ण उत्तर-गुण है? योग-आत्मा सम्पूर्ण उत्तर-गुण है। मुनि दस प्रत्याख्यान१ की आराधना करता है, यह सर्व-उत्तर-गुण योग-आत्मा है।

२२. देसमूलगुण किसी आतमा? चारित्र आत्मा देखो जी।

देसउत्तरगुण जोग आतमा, श्रावक नीं सुविसेखो जी।।

कौन-सी आत्मा अंशतः मूल-गुण है? देश-चारित्र आत्मा अंशतः मूल-गुण है। कौन-सी आत्मा अंशत: उत्तर-गुण है? श्रावक की शुभयोग आत्मा अंशत: उत्तर-गुण है।

२३. सर्वउत्तरगुण देसउत्तरगुण, जोग आत्मा किण न्यायो जी?

सुभ जागां स्यूं कर्म कटे छे, तिण ने निर्जरा कही जिनरायो जी।।

योग आत्मा को सर्व-उत्तर-गुण और देश-उत्तर-गुण कहा गया है, इसका हेतु क्या है? शुभ योगों से कर्म का निर्जरण होता है, उसे भगवान्‌ ने निर्जरा कहा है।

२४. तिण निर्जरा रा बारा भेद कह्या छे, सूत्र उवाई वायो जी।

प्रथम भेट अणसण जिन भाख्यो, चौथ-भक्त तिण मांह्यो जी।।

औपपातिक सूत्र (३०-३२) में उस निर्जरा के बारह भेद बताए गए हैं। उनमें पहला भेद अनशन है। चतुर्थ भक्त (उपवास) अनशन के अन्तर्गत है।

२५. काल-उणोद्री उत्तराध्ययने, अध्येन तीसमां मांह्यो जी।

पुरिमढह पोरसियादिक त्यामें, निपुण विचारे न्यायो जी।।

उत्तराध्ययन के तीसवें अध्ययन (३०/२०) में काल ऊनोदरी बतलाई गई है। पूवारद्ध (दिन का पहला आधा भाग), पौरुषी आदि काल ऊनोदरी के अन्तर्गत हैं। निपुण बुद्धि वाले इस युक्ति पर विचार करें।

२६. रस-परित्याग निर्जरा मांहि, आंबिल नीवी आयो जी।

ए सहु कर्म काटण री करणी, जोग आतम सुखदायो जी।।

आयंबिल१ और नीवी२—ये रस-परित्याग निर्जरा के अन्तर्गत हैं। ये सब कर्म- निर्जरा की करणी है, इसलिए ये योग आत्मा हैं।

२७. कर्मा री कर्त्ता छे केती? दर्शण जोग कषायो जी।

यां तीनां सूं कर्म बंधे छे, अवरां सूं नहि बंधायो जी।।

कितनी आत्मा कर्म की कर्त्ता है? दर्शन, योग और कषाय -ये तीन आत्मा कर्म की कर्त्ता हैं। इन तीन आत्माओं से कर्म का बन्ध होता है, अन्य आत्मा से कर्म का बन्ध नहीं होता।

२८. पुन्य री कर्ता कवण आतमा? जोग आतम शुभ ताह्यो जी।

पाप तणी कर्त्ता कुण आत्मा? दर्शण जोग कषायो जी।।

कौन-सी आत्मा पुण्य की कर्त्ता है? शुभ-योग आत्मा पुण्य की कर्त्ता है। पाप की कर्तां कौन-सी आत्मा है? दर्शन, योग और कषाय -ये तीन आत्मा पाप की कर्ता हैं।

आत्मा : शाशवत-अशाशवत

२९. असासती कुण, कवण सासती? द्रव्य सासती देखो जी।

असासती छे सात आतमा, निपुण न्याय सूं पेखो जी।।

कौन-सी आत्मा अशाश्‍वत है और कोन-सी शाश्‍वत? द्रव्य आत्मा शाश्‍वत है। शेष सात आत्मा अशाश्‍वत हैं। निपुण मति वाले लोग हेतुपूर्वक इसकी प्रेक्षा करें।

३०. कवण आतमा कीधी होवे? सात आतमा होवे जी।

द्रव्य आतमा कीधी न होवे, बुद्धिवंत न्याय सूं जोवे जी।।

कौन-सी आत्मा उत्पन्न की जा सकती है। सात आत्मा उत्पन्न की जा सकती हैं। एक द्रव्य आत्मा उत्पन्न नहीं की जा सकती है। बुद्धिमान्‌ मनुष्य हेतुपूर्वक इसे जानें।

३१. मारी मरे छे किती आतमा? फिरे जीव-परिणामो जी।

द्रव्य आतमा मारी न मरे, सात मरे छे तामो जी।।

जीव का परिणाम बदलता रहता है, इसलिए प्रश्‍न होता है कि कितनी आत्मा परिवर्तित की जा सकती हैं? द्रव्य आत्मा परिवर्तित नहीं होती। सात आत्माएं परिवर्तित होती हैं।

३२. कवण मरे पोता नी मारी, द्रव्य मरे नहिं कोयो जी।

सात आतमा ते पोता नी मारी मरे सुजोयो जी।।

कौन-सी आत्मा अपनी मृत्यु से मरती है-अपने आप बदलती है? द्रव्य आत्मा कभी नहीं मरती। सात आत्माएं अपने आप मरती हैं-बदलती हैं।

३३. पर नी मारी कवण मरे छे? उत्तर तास विचारो जी।

आठूं न मरे पर नीं मारी, अदल न्याव अवधारो जी।।

दूसरे के द्वारा मारने पर कौन-सी आत्मा मरती है? इसके उत्तर पर विचार करो। आठों आत्माएं दूसरे के द्वारा मारने पर नहीं मरतीं। इस अटल न्याय का अवधारण करो।
Sources
Provided by: Sushil Bafana
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