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उपासना व आचरण धर्म के दो रूप: महाश्रमण
साकरड़ा में रविवार को धर्मसभा में बोले आचार्य
लावासरदारगढ़ ९ जनवरी २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने कहा कि धर्म के दो रूप हैं। एक उपासना और दूसरा आचरण। उपासना के साथ आचरण को भी अच्छा रखें। ऐसा प्रयास करना है। परोपकार पुण्य को पैदा करता है। आदमी को हमेशा परोपकार की नीति अपनाते हुए कार्य करना चाहिए। जीवन में कभी भी मनोबल कम नहीं होना चाहिए। जीवन में धर्म का विकास होता रहे, ताकि आत्मबल का विकास हो सके।
आचार्य महाश्रमण रविवार को साकरडा कस्बे में प्रवचन के दौरान बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जब-जब धर्म की उपेक्षा होती है, तब-तब दुनिया में धर्म घटता है। मनुष्य का आत्मबल कम हो जाता हैं। ऐसे में भगवान का जन्म होता है।धर्म के साथ आत्मबल का संबंध है। जो आदमी धर्म की आराधना नहीं करता, उसका भीतरी चरित्र भी समाप्त हो जाता है। इस अवसर पर आचार्य महाश्रमण ने स्कूली छात्र- छात्राओं को व्यसन व नशामुक्त रहने की प्रतिज्ञा दिलाई।
आज आचार्य मोखुंदा में: आचार्य महाश्रमण सोमवार को सुबह साकरडा से विहार कर मोखुंदा पधारेंगे।
कन्या भ्रूण हत्या नहीं करने की शपथ ली
स्वागत समारोह में तेरापंथ महिला मंडल ने आचार्य महाश्रमण के समक्ष खड़े होकर कन्या भ्रूण हत्या नहीं करने की सामूहिक शपथ ली। समारोह में तेरापंथी महासभा कोलकाता के अध्यक्ष चैनरूप चंडालिया, कन्हैयालाल चीपड़ ने भी विचार रखे। इससे पूर्व आचार्य महाश्रमण अपनी धवल सेना के साथ वागड़ गांव से विहार कर सुबह 9 बजे साकरड़ा पहुंचे। जहां तेरापंथी सभा, महिला मंडल एवं ग्रामीणों द्वारा भावभीना अभिनंदन किया गया।