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Jasol: 01.07.2012
Acharya Mahashraman said that Jasol is getting first time Chaturmas of Terapanth Acharya. This Chaturmas is historical. 143 monks and nuns are with me and number can increase when Diksha takes place during Chaturmas. He inspired people to take advantage of Chaturmas. Chaturmas is time when Sadhana should be done.
News in Hindi
संत में होती है आंतरिक प्रसन्नता
संत में होती है आंतरिक प्रसन्नता
जसोल ०१ जुलाई २०१२ जैन तेरापंथ न्यूज ब्योरो
आचार्य महाश्रमण ने ऋषियों के स्वभाव व गुणों के बारे में कहा कि ऋषि महान प्रसाद वाले होते हैं। वे झटपट आवेश में नहीं आते और प्रसन्न रहने वाले होते हैं। संत में आंतरिक प्रसन्नता होती है। इस कारण पास आने वाले व्यक्ति पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। संत के प्रसन्न रहने का कारण उनके जीवन में साधना होना है। जो संत अहिंसा के पुजारी होते हैं, जो शरीर, वचन व मन से किसी को तकलीफ नहीं देते। ऐसे संतों के श्रद्धा के साथ मुख दर्शन करने से पापों का ह्वास हो जाता है। आचार्य शनिवार को चातुर्मास प्रवचन के दौरान श्रावक-श्राविकाओं को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि भ्रमणशील संतों का प्रवास होना महत्वपूर्ण बात है। आत्मोद्धार के साथ जनोद्धार भी संतों से ही होता है। जसोल चातुर्मास के संदर्भ में आचार्य ने कहा कि हमारी ग्यारह पीढिय़ों में पहली बार मैं चातुर्मास करने आया हूं। यह जसोल का विरल चातुर्मास है। 143 ठाणे अभी मेरे साथ चातुर्मास कर रहे हैं और दीक्षा होने पर और भी संख्या बढ़ सकती है। चातुर्मास में एक पीढ़ी ऐसी धर्म की गंगा प्रवाहित होती है कि लोग धर्म का लाभ प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। श्रावकों को साधु-साध्वियों के चातुर्मास का लाभ उठाना चाहिए। चातुर्मास होना अच्छा है और उसका लाभ उठाना विशेष बात है। राजनीतिज्ञों की ओर इंगित करते हुए उन्होंने कहा कि राजनीति भी एक सेवा का माध्यम है। राजनीति ऐशो-आराम के लिए नहीं है। राजनीति में सेवा की भावना के साथ नैतिकता के प्रति निष्ठा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को दान के साथ अहंकार से मुक्त रहना चाहिए। अहंकार से दान की गरिमा में कमी आ जाती है। व्यक्ति को नाम की भावना से मुक्त रहकर काम करने की भावना रखनी चाहिए।