Chobisi is a set of 24 devotional songs dedicated to the 24 Jain Tirthankaras.
Composed by: | Dedicated to: | ||
Acharya Jeetmal Language: Rajasthani:
|
Bhagwan Rishabhnatha Symbol - Bull | ||
01 | Stavan for Bhagwan Rishabhnatha | ||
Acharya Tulsi | 6:27 | ||
Babita Gunecha | 5:05 |
Language: Hindi
Author: Acharya Tulsi
अर्थ ~~१ तीर्थंकर ऋषभ प्रभु
मै प्रथम अर्हत् को प्रणाम करता हूँ ।हे जिन चन्द्र! तुम्हारी जय विजय हो।
में इस युग के आदि अर्हत् ऋषभ देव को बद्धानंजलि होकर वन्दना करता हूँ।हे मुनीन्द्र! कर्मशत्रु रूप हाथी को आहत करने के लिए तुम सिंह के समान हो।
तुमने अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितियों को समभाव से सहन कर विविद प्रकार का तप तप। भेद विज्ञान के द्वारा आत्मा और शरीर को भिन्न समझकर तुम शुक्ल ध्यान में लीन हो गए।
तुमने देखा- यह पोद्गलिक सुख अहितकर,दुः खहेतु और भय पैदा करने वाला है।उसे प्रत्यक्ष पाश के रूप में समझकर तुम्हारा विरक्त चित्त उससे विलग हो गया।
तुम संवेग रूप सरोवर के शांतरस रूप जल में तल्लीन होकर डुबकियां लगाते रहे ।निंदा -स्तुति और सुख - दःख-इन द्वन्दों में सम रहना ही साधना का पथ है।इस तथ्य को तुमने भली भांति समझ लिया।
तुम बसौले से काटते और चन्दन से चर्चित करने पर सम चित रहे ।तुमने स्थिर -चित्त होकर ध्यान किया। इस प्रकार देहाध्यास को छोड़ तुम केवली बन गए।
६,७ - हे जिनेश्वर! में तुम्हारे लिए उपहृत हूँ।उस स्थिति को मै किस दिन प्राप्त कर सकूँगा मेरा मन उतावला हो रहा है।अर्हत् ऋषभ! तुम्हारी स्तुति करने से मुझे अपार हर्ष हुआ।
रचनाकाल -वि.सं.१९००,भाद्रवै शुक्ला दशमी,रविवार।।
English Translation:
1st Tirthankara Bhagwan Rishabh Prabhu
I bow to the 1st Tirthankara Bhagwan Rishabh in the Vandana manner.
O Lord! I always wish your viva your mastery!
O Lord! Like a lion you conquered the elephants of enemy like Karma.
You have tolerated each and every favourable and unfavourable situation in consentience manner by various kinds of penances and engrossed yourself in Shukla Dhyan (Meditation)
You see this materialistic pleasure totally detrimental, reason of anguish and terror.
Your disenchanted soul found this as a snare and purposely isolates itself from this.
You engrossed yourself by dipping in the calm water as if it were a pond of impulses. You have learnt this fact very well that the path of industriousness is just living instinct in libel or praise.
You stay instinct either stung by adder or sandalwood liniment. You did meditation with stable mind and body, thus you abdicate the reincarnation and attained Kevalgayana.
O Lord! I am grateful to you and eager to get the same. Arhat Rishabh I am shoreless cheerful by glorifying you.
Time of Composing - V.S. 1900, 10th day of Shukla Bhadrava, Sunday.