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जब निर्धन के घर आये भगवान... #AcharyaVidyasagar #आचार्यविद्यासागर आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज अमरकण्टक छत्तीसगढ़ में चातुर्मास के बाद विहार करके पेण्ड्रारोड गए थे, वहाँ एक पति पत्नी छोटे से टूटे - फूटे घर में रहते थे, पति अपनी पुरानी साईकिल से गाँव गाँव जाकर चूड़ी,बिंदी, काजल, बेचकर घर चलाता था...
उनकी पारिवारिक संपत्ति का भी विवाद चल रहा था जहाँ से उन्हें कुछ मिलने की कोई संभावना नही थी, माली हालत बहुत ही ज्यादा खराब थी एक दिन आचार्य भगवन वहाँ विहार करते हुये आये, तो उसकी पत्नी में बोला देखो जी आज हमारे नगर में आचार्य श्री और उनका संघ आया है, हम उनके लिये चौका लगायेंगे, पत्नी की बात सुनकर पति बोला अरे ये कैसे हो पायेगा, हमारे पास ना वर्तन हैं ना घर में कोई पकवान बनाने के लिये सामग्री, और घर की छत पर खपरैल है जिससे बारिस का पानी घर में गिरता है, ऐसे में चौका लगाना कैसे सम्भव होगा लेकिन पत्नी जिद पर अड़ गई और उसने अपने पड़ोसियों से चौका लगाने वाली आवश्यक सामग्री जुटाना प्रारम्भ कर दिया, और आखिर में चौके की तैयारी पूर्ण हुई
दोनों पति पत्नी पढ़गाहन करने खड़े हो गए, वहाँ और भी कई बड़े बड़े घरों के चौके लगे थे, दम्पत्ति (पति पत्नी) का घर मन्दिर से दूर था तो उन्हें विश्वास ही नही था की कोई मुनिराज हमारे घर तक आ पाएंगे, आचार्य संघ की आहार चर्या शुरू हुई, आचार्य भगवन मन्दिर से निकले रास्ते में चौके वाले हे स्वामी नमोस्तू हे स्वामी नमोस्तू बोले रहे हैं 😲😲😲...... पर ये आचार्य भगवन तो किसी को देख ही नही रहे, वो उसी के चौके की ओर बढ़ते जा रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे भक्त की करूण पुकार उन्हें वहाँ खींचकर ले जा रही हो, थोड़ी दूर जाकर आचार्य श्री जी का पढ़गाहन उसी चौके में हो गया, जैसे ही गुरूजी खड़े हुये.. उस दम्पत्ति के आँखों से अश्रु की तेज धारा बहने लगी, बड़ी मुश्किल से शुद्धि बोली, और चौके में आकर गुरूदेव को उच्च आसन ग्रहण करने को कहा, परन्तु अश्रुधारा अभी भी तेजी से बह रही थी, रोते रोते ही आचार्य श्री की पूजन की, नीचे रखने के लिये कोई और पात्र था नही इसलिये वहाँ कढ़ाई रख दी, और आहार शुरू हुये, लेकिन लगता है उस दम्पत्ति को अभी और परीक्षा देनी थी, आहार शुरू होते ही तेज बारिस होने लगी, जिस स्थान पर आचार्य श्री खड़े थे उस स्थान को छोड़कर चौके में कई जगह बारिस का पानी गिर रहा था, चौके में खड़े लोग भी अपनी जगह से यहाँ वहाँ खिसक कर आहार दे रहे थे, पर कलयुग के महावीर को तो आज चन्दन बाला के घर आहार लेने थे, तो वो भी चेहरे पर मन्द मन्द मुस्कान लिये आहार ले रहे थे, आखिरकार निरान्तराय आहार सम्पन्न हुये,
आचार्य श्री वापिस आकर मन्दिर के बाहर बने मंच पर विराजमान हुये, और बोले आज जैसे अच्छे आहार हमने कभी नही किये सभी दातारों ने बहुत शांति से आहार कराये आज ऊपर से बारिस हुई और चौके वालों की आखों से भी, ये सुनते ही उस दम्पत्ति की आँखे फिरसे नम हो गईं, उन्होंने विशाल ह्रदयी गुरूजी के बारे में अभी तक सुना था आज देख भी लिया, कुछ दिनों बाद उस दम्पत्ति का व्यापार और अच्छा चलने लगा, उनका पारिवारिक संपत्ति का विवाद भी सुलझ गया, जिस कुटिया में गुरूदेव के चरण पड़े थे वहाँ आज पक्का और बड़ा घर बन गया, अब वो दम्पत्ति सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे
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Jainism states that the universe is without a beginning or an end, and is everlasting and eternal. Jainism emphasizes freedom of the soul from karma and the potential to gain liberation through self-effort and not the "grace" of a Supreme Being.
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News in Hindi
अध्यात्म का वर्णन करना सरल पर अनुभूति कठिनः मुनि समय सागर (आचार्य श्री विद्यासागर जी के ज्येष्ठ शिष्य तथा ग्रहस्थ अवस्था भाई) #MuniSamaySagar #AcharyaVidyaSagar
अध्यात्म का वर्णन करना सरल है, लेकिन अध्यात्म की अनुभूति करना कठिन है दीक्षित हो गए, पिच्छि, कमंडल आ गया, यह काफी नहीं है आत्मकल्याण के मार्ग पर आंतरिक साधना जरूरी है शरीर भिन्न है आत्मा भिन्न है ऐसा चिंतन रखो सल्लेखना या समाधि में दूसरा व्यक्ति णमोकार मंत्र सुनाता है, लेकिन समाधि के समय जो खुद णमोकार मंत्र पढ़े वह पुण्यशाली है धैर्यशाली जीव ही ऐसा कर सकता है, और ऐसे साधु की सामान्य मृत्यु नहीं होती है वह मृत्यु, मृत्यु महोत्सव बन जाती है नश्वरता को समझने वाला व्यक्ति कभी मृत्यु से नहीं डरता जिस दिन वस्तु तत्व को समझोगे तो उस दिन पर्यांय की नश्वरता समझ आ जाएगी यह जीवन आयु कर्म से चलता है जिस दिन आयु कर्म पूर्ण हो जाता है स्वयं तीर्थंकर अर्थात भगवान भी सामने आ जाएं तो मृत्यु को नहीं रोक सकते उक्त उपदेश मुनि समय सागर महाराज ने चौधरन कॉलोनी स्थित वासुपूज्य जिनालय पर समाधिस्थ मुनिराज धीर सागरजी महाराज की विनयांजलि सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए मुनिश्री ने कहा कि काल के हिसाब से वस्तु की अवस्थाओं में परिवर्तन होता है उससे प्रभावित होकर संसारी प्राणी सुखी, दुखी होता है संसारी प्राणी मृत्यु रूपी भय से हमेशा ग्रस्ति रहता है जबकि आत्मा अनश्वरी तत्व है संसार की नश्वरता को समझकर वैराग्य का धारण करने वाला मृत्यु से नहीं डरता इसलिए वह आत्मकल्याण के लिए निर्जन वन में भी तपस्या करने चला जाता है वर्तमान पंचम काल में मोक्ष नहीं है लेकिन अभी की तपस्या मोक्षमार्ग के लिए नर्सरी है मुनिश्री ने कहा कि जिसका जन्म हुआ है उसका मरण निश्चित है लेकिन मरण-मरण में अंतर है अज्ञानी जीव का मरण बाल मरण कहलाता है, अणुव्रती का मरण पंडित मरण होता है जबकि जिस मरण से निर्वाण की प्राप्ति होती है ऐसे साधु का मरण पंडित-पंडित मरण है
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