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सर्व काल वे गोमटेश प्रभु मेरे द्वारा वंदित है!!!
जय जय बाहुबली स्वामी!
जय जय बाहुबली स्वामी!
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Who is Tirthankara? and, what’s his role? #worthyRead
Time rolls along in eternal cycles of rise and decline. Utsarpini is a “rising” era in, which human morale and natural conditions improve over time. At the end of Utsarpini, begins Avasarpini, a “declining” era of the same length, in, which human morale and virtues deteriorate. Each era consists of six sub divisions called Äräs (Kaal). During the 3rd and 4th Äräs (Kaal) of every rising and declining era of each cycle, twenty-four souls become Tirthankaras in our region known as Bharat Kshetra. They are the humans like us who rise to that level. They had gradually purified their soul in prior lives after achieving Samyag Darshan and had acquired a special karma called Tirthankara Näma Karma. The Tirthankara Näma Karma is acquired by performing one or more of the 16 specific austerities.
Tirthankara Näma Karma matures in the final life and leads the person to become a Tirthankara after taking Dikshä and observing austerities to destroy all Ghäti karmas (Refer post no. # 28). After attaining omniscience (Kevaljnäna), Tirthankar organizes the Jain religion to suit the changing times. They reinstate the fourfold order of Muni/Sädhus (monks), Aryika/Sädhvis (nuns), Shrävakas (male householders/laymen), and Shrävikäs (female householders/laywomen) of Jain religion. Tithankaras has five very auspicious events called Panch Kalyanaka.
Tirthankaras are also called Arihantas, Jinas, Kevalis, and Vitarägi. Arihanta means “destroyer of inner enemies (Karma),” Jina means “victor of inner enemies,” and Vitarägi means “one who does not have attachment or hatred towards anyone or anything.” This means that they are totally detached from worldly aspects. They have destroyed four Ghäti Karmas, namely:
• Jnänävaraniya (knowledge obscuring) Karma
• Darshanävaraniya (perception obscuring) Karma
• Mohaniya (deluding) Karma
• Antaräya (obstructing) Karma
(For more detail regarding Ghati Karma, refer post no. # 28)
PANCH KALYANAKA (Five Auspicious Events):
Jains celebrate five major events from the life of a Tirthankara. They are called Panch Kalyänaka (Five auspicious events). They are:
1) Garbha Kalyänaka (Conception Event): This is the event when a Tirthankar’s soul leaves its previous body, and is conceived in the mother’s womb.
2) Janma Kalyänaka (Birth Event): This is the event when the Tirthankara is born.
3) Dikshä or Tapa Kalyänaka (Initiation Event): This is the event when the Tirthankara gives up all his worldly possessions and becomes a monk.
4) Kevaljnän Kalyänaka (Omniscience Event): This is the event when a Tirthankara completely destroys four Ghäti Karmas and attains the Kevaljnän (absolute knowledge). Celestial angels create a Samavasarana for Tirthankars from where he delivers the first sermon. This is the most important event for the entire Jain order as the Tirthankara re-establishes Jain Sangha and preaches the Jain path of purification and liberation.
5) Nirväna or Moksha Kalyänaka (Nirvana Event): This event is when a Tirthankar’s soul is liberated from this worldly physical existence forever and becomes a Siddha. On this day, the Tirthankar’s soul destroys the remaining four Aghäti Karmas completely (For more detail regarding Aghati Karma, refer post no. # 28), and attains salvation, the state of eternal bliss.
CONCLUSION:
There are five very auspicious events in the life of a Tirthankar. They are conception, birth, renunciation (initiation into monkhood), attaining omniscience, and nirvana. A Tirthankar has acquired the Tirthankara-Näma Karma in the second previous life by having an intense desire to alleviate the suffering of all living beings. The fruits of that karma resulted in the soul being born as a Tirthankara Bhagawäna. We celebrate these five major events of the Tirthankar’s life in the form of PanchaKalyänaka Puja Mahotsava. The nirvana places of Tirthankaras are pilgrimage places. Tirthankaras are supreme human beings and our faultless human models in whom we take spiritual refuge.
Lord Adinatha (Rishabha dev) was the first Tithankara, Lord Neminatha was the 22nd, Lord Parshawanatha was the 23rd and Lord Mahavira was the 24th Tithankara of this current era cycle.
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एक साधु के प्रकरण में एक बड़ी सूचना!! #ऽhare
दिगंबर जैन महासमिति की तरफ से आज अखिल भारतीय जैन समाज की नई दिल्ली में हुई बैठक में निम्न प्रस्ताव प्रस्तुत किए गए जिन्हें स्वीकृत किया गया एवं उपस्थित लोगों ने इन्हें लागू करने का वचन भी दिया, महा समिति की ओर से राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष श्री सुरेंद्र बाकलीवाल एवं राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष श्री सतीश जैन जिंद बैठक में उपस्थित हुए और नियम प्रस्तावों को स्वीकृति हेतु प्रस्तुत किया
1, एकल बिहारी मुनियों को भारत का कोई भी समाज प्रश्रय नहीं देगा एवं सख्ती से इस प्रवृत्ति पर काबू पाना चाहिए
2, आचार्य संघ इस बारे में विशेष ध्यान रखें कि उनके द्वारा दीक्षित साधु विशेष परिस्थितियों को छोड़कर एकल बिहारी नहीं हों
अगर साधु संघ छोड़कर जाने की कोशिश करें तो समाज को इस बारे में सचेत करें
3,आचार्यगण इस बात का ध्यान रखें कि आपने संघस्थ साधुओं को या उनके द्वारा दीक्षित साधुओं को आचार्य पदवी प्रदान नहीं करें
एक संघ में एक ही आचार्य होना चाहिए अगर कोई साधु छोड़ने की दबाव बनाएं तो भी उन्हें आचार्य पदवी प्रदान नहीं करें
4, साधु संतों से आर्यिका संघ एकदम पृथक रहे एवं सिवाय शिक्षण के समय के साधु संघ एवं आर्यिका संघ में कोई मेलजोल नहीं हो
5, महिलाओं को कम से कम 5 हाथ दूर ही रखें चाहे वह शिक्षण का समय हो या या महिलाएं दर्शन हेतु पधारें इसका एक मात्र अपवाद आहार के समय ही हो सकता है और आहार के समय भी कम से कम एक दो पुरुषों का उपस्थित होना अनिवार्य है सिर्फ महिलाएं आहार चर्या पूरी नहीं कर सकती
6, एक या दो महिलाएं बगैर कुछ पुरुषों की उपस्थिति के साधुओं से ना तो मिल सकती हैं और ना ही वार्तालाप कर सकती है
7, साधु संतों के साथ परमानेंट रूप से महिलाएं ना तो निवास कर सकती हैं और ना ही आहार आदि चर्या कर सकती हैं यह जिम्मेदारी स्थानीय समाज को भी उठानी होगी
8, आगम की व्यवस्था के अनुरुप चातुर्मास के समय को छोड़ कर एक शहर या एरिया में संघ अधिक से अधिक 15 दिन निवास करें तत्पश्चात उन्हें विहार करना चाहिए
9, एक बार किसी दुष्कृत्य में लिप्त पाए जाने पर उस साधु की पुनर्दीक्षा नहीं की जा सकती एवं उसे फिर आजीवन गृहस्थ बनकर ही रहना होगा
10, हर आचार्य उनके द्वारा दीक्षित साधुओं की एक सूची प्रदान करें ताकि स्वयं ही दीक्षा लेकर घूमने वाले साधुओं की पहचान हो सके एवं उन आचार्यों पर भी उनके द्वारा दीक्षित साधुओं की जिम्मेदारी आ जाएगी
*सभी समाज जनों से अपील है कि इस 10 सूत्री कार्यक्रम पर अमल करें एवं अपने मंदिरों में भी इसे फ्लेक्स बनाकर लगवा दे*
*प्रस्तुतकर्ता*
*अशोक बड़जात्या*
*राष्ट्रीय अध्यक्ष*
*दिगंबर जैन महासमिति*
एक बात और जोड़ना चाहिए था कि मोबाइल, लेपटोप, AC बाले संतों को अपने मन्दिर जी में प्रवेश न दें। सब कर्मो की जड़ इन भौतिक उपकरणों का साधुओं के पास क्या काम।*
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एक विदेशी भारत घूमने आया घूमते घूमते वह आचार्य विद्यासागर जी महाराज के दर्शन करने उनके कक्ष तक पहुच गया वह बहुत आश्चर्यचकित हुआ वहां लकड़ी के पाटे और तख्त के अलावा कुछ भी नही था
उसने आचार्य श्री से प्रश्न किया आप बुरा न माने तो एक बात बताए कि यह साधारण सा दिखाई देने वाला कमरा जिसमे आप रहते है उसका और फर्नीचर कहा है व आपके जरूरत का और भी सामान होगा वह कहा है, आचार्य श्री ने प्रति उत्तर में पूछा आपका कहा है
आगन्तुक विदेशी ने कहा में तो मात्र दर्शक हु कुछ दिनों में वापिस चला जाऊंगा
तब आचार्य श्री ने जो जबाब दिया उसमें शब्द नही थे बस इशारा था जिसे मात्र समझा जा सकता है समझाया नही जा सकता
वे बोले ----- ‘मैं भी’
आज शंकर नगर दिल्ली में मंदिर व महाराज के रुकने के कमरों में से.. AC हटा दिए गए.. ओर जिन महाराज के पास मोबाइल/ लैप्टॉप होगा, अकेले होंगे मंदिर में नहीं रुक सकेंगे!
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🐄🐄 बाल ब्र.ज्योति दीदी कर रही गाय का उपचार
दिगौडा जैन मंदिर के पास पडी गाय कई दिन से अस्वस्थ चल रही है सभी मुहल्ले वाले एवं जैन समाज के लोग कर रहे है गाय की सेवा, खेद तो इस बात का है कि जिसने उस गाय को जन्म से पाला पोसा उसका दुहन किया एवं उसके मीठे दुग्ध का रसपान किया और उसे ही अंत समय मे लाचार छोड दिया! सच ही है सेवा का फल जरूर मेवा दिलाये या नही हमे नही पता पर सेवा भाव जरूर याद दिलाता है
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आज आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज ने 24 धंटे का नियम दिया हैं समोसे नहीं खाने का.. जो पालन करना चाहते हैं नीचे आप्शन चुने
प्रिय Young Jaina Awardee,
मुनिश्री क्षमा सागर जी महाराज के दीक्षा दिवस के अवसर पर, मैत्री समूह आप सभी Young Jaina Awardee (2001 से 2008 तक) को Get-Together के लिए 19 एवं 20 अगस्त को कुंडलपुर जी (दमोह, मध्यप्रदेश) आमंत्रित कर रहा है,
आप अपने आगमन का कॉन्फ़र्मेशन फ़ॉर्म में डिटेल्ज़ भर कर दे 🙏🏻
Form link: https://goo.gl/4ELTfF
मैत्री समूह
+91 94254 24984
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#आचार्यश्री_विद्यासागरजी_की_सीख
किसी ने आचार्य श्री विद्यासागर जी के समक्ष शंका रखते हुए कहा कि कुछ प्रवचनकार ऐसे हैं जो किसी नगर या गाँव में पर्युषण पर्व आदि में प्रवचन करने जाते हैं तो विदाई के समय टीका (पैसा) की कामना करते हैं तो क्या यह उचित है? आचार्य श्री जी ने कहा कि- कोईभी धार्मिक क्रिया लौकिक फल की इच्छा को लेकर नहीं की जाती बल्कि कर्मों के संवर या निर्जरा के लिए की जाती है। मुक्ति की इच्छा करना मिथ्या इच्छा नहीं कहलाती। निर्जरा के लिए की गई इच्छा-इच्छा नहीं मानी जाती किन्तु भोग के लिए जो इच्छा होती है। वही इच्छा वांछा मानी जाती है। जिनवाणी को माध्यम बनाकर व्यवसाय करना यह मिथ्या मार्ग है क्योंकि जिन्होंने सारे संसार संबंधी व्यवसाय से अपने आपको बचाने के लिए जिनवाणी की शरण ली और यदि उसी से व्यवसाय करने लगे तो फिर व्यवसाय की परंपरा कभी नहीं छूट सकती और संसार की परम्परा टूट नहीं सकती, कल्याण मार्ग को हम कभी पकड़ नहीं पायेगें।
श्री कुन्दकुन्द भगवान् ने समयसार व्यवसाय के लिए नहीं लिखा है, किन्तु उन व्यवसाय संबंधी अध्यवसानों को मिटाने के लिए लिखा। "जिस वक्ता की आजीविका श्रोताओं पर आधारित है, वह कभी भी सत्य का उद्घाटन नहीं कर सकता।"
सत्य का उद्घाटन करने के लिए बहुमत की कभी भी ओट नहीं लेना चाहिए। सत्य के लिए चुनाव नहीं करना चाहिए अन्यथा सत्य का बहुमान समाप्त जायेगा। सत्य के लिए बहुमत की नहीं, किन्तु बुधमत (बुद्धिमानों) की आवश्यकता होती है। मोक्षमार्ग में जो भी प्रवचन करते हैं, वे परमार्थ के लिए करें, अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए नहीं। सांसारिक लोभ, लिप्सा से रहित होकर उपदेश देना चाहिए।
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