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Delhi
23.8.2014
पर्युषण पर्व न्वान्हिक कार्यक्रम
(दूसरा दिन)
(स्वाध्याय दिवस)
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स्वाध्याय व्यक्ति का दर्पण व प्रतिबिम्ब -साध्वी श्री सुदर्शना जी
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सूरत-23 अगस्त 14
पर्युषण पर्व की श्रंखला के दुसरे दिन नवान्हिक कार्यक्रम के अंतर्गत सिटीलाईट स्थित तेरापंथ भवन में शनिवार को 'स्वाध्याय दिवस' पर अपने उदगार व्यक्त करते हुए आचार्य श्री महाश्रमणजी की सुशिष्या साध्वी श्री सुदर्शनाजी ने फरमाया कि
पर्युषण पर्व पौरुष,पराक्रम व शौर्य का पर्व हैं, यह आठ दिवसीय समय हमारे लिए अति मूल्यवान होता हैं, हमें स्वाध्याय, ध्यान, तपस्या आदि के द्वारा हमारी सोई हुई शक्ति को जागृत करना हैं, यह एक ऐसा समय हैं अगर व्यक्ति एकाग्रता के साथ प्रवचन सुन लें तो भावधारा निर्मल व उत्कृष्ट हो जाती हैं, जो कि शुभ गति का कारण बनती हैं, यहाँ सभागार में मौजूद हर व्यक्ति अपने कर्मों की जंजीरें तोड़ने हेतु एकत्रित हुए हैं, स्वाध्याय इसका सटीक माध्यम हैं, स्वाध्याय हमारा दर्पण व प्रतिबिम्ब हैं, इससे हमारी दशा व दिशा ही बदल जाती हैं, हमारे आगमों व सद्साहित्य का पठन कर भी स्वाध्याय हो सकता हैं, जो पुस्तकें पढ़ नहीं सकते वे अनुप्रेक्षा करें तथा नमस्कार महामंत्र का उच्चारण करें, इस से हमारा कल्याण सम्भव हैं, साध्वी जी ने आगे कहा कि वर्तमान के इस दौर में बहुत कम परिवार मिलेंगे जहाँ सद् साहित्य का पठन होता होगा, घर में हर तरह के शो-केश मिल जाएंगे, लेकिन साहित्य का शो केश नहीं मिलेगा, हम हर वर्ष भगवान महावीर के 27 भवों का वर्णन पढ़ते हैं, भगवान महावीर कर्मों को बांधने में भी शूरवीर थे तो तोड़ने में भी शूरवीर थे, हर एक प्राणी संसार में तब तक परिभ्रमण करता रहता हैं, जब तक उसे सम्यकत्व नहीं मिलता, आपने आगे कहा कि ज्ञान, दर्शन चरित्र तीन ऐसे अमुल्य रत्न हैं, जिससे कभी नाश नही होता, जिससे कर्म बंधन की जंजीरें टूट जाती हैं, अगर हमारी भावधारा निर्मल होती हैं तो तीर्थंकर गौत्र का बंध हो जाता हैं, इस अवसर पर साध्वी श्री पुनीतयशाजी ने स्वाध्याय विषय पर अपने उदगार व्यक्त करते हुए कहा कि भगवान महावीर ने फरमाया हैं कि बहुत वर्षों से संचित कर्मों को स्वाध्याय खपा देता हैं, इसी तरह महात्मा गांधी ने कहा हैं कि स्वाध्याय महकता हुआ गुलदस्ता हैं, स्वाध्याय से हमारे मन में परिवर्तन आ जाता हैं, व बुरी वृतियों का रूपान्तरण हो जाता हैं, किसी दार्शनिक ने ठीक ही कहा हैं कि अगर आपके पास दो रूपये हैं तो एक रूपये की रोटी व एक रूपये से पुस्तक खरीदें, पुस्तकें हमारी जीवन की सर्वोतम मित्र हैं, इस से हमारी मैत्री की धारा प्रवाहित होती हैं, भगवान महावीर ने कहा हैं कि अच्छे साहित्य से ज्ञानावर्णीय व दर्शनावर्णीय कर्म हल्के होते हैं तथा कर्मों की निर्जरा होती हैं, तथा भावधारा पवित्र व निर्मल होती हैं, बनार्ड शा, अब्राहम लिंकन व रविन्द्र नाथ टेगौर आदि दार्शनिको व प्रबुद्धजनों का स्वाध्याय के प्रति गहरा आकर्षण रहा हैं। आचार्य श्री तुलसी आचार्य श्री महाप्रज्ञ व वर्तमान में आचार्य श्री महाश्रमणजी के साहित्य के पठन-पाठन से हमारी जीवनधारा ही परिवर्तित हो जाती हैं, कार्यक्रम का आगाज तेरापंथ महिला मंडल की सदस्याओं ने मंगलाशरण के द्वारा किया। कार्यक्रम का संचालन तेयुप अध्यक्ष नरपत कोचर ने किया। रविवार को सामायिक दिवस पर प्रवचन होगा।
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लिपिबद्ध-गणपत भंसाली
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