19.09.2015 ►Muni Saurabh Sagar Ji Maharaj ►News

Published: 19.09.2015
Updated: 18.11.2015

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Source: © Facebook

18-09-2015
by Ashok Jain
उत्तम क्षमा पर मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज के प्रवचन
अपनी भूलो के प्रायशिचत का नाम है क्षमा,क्षमा के अभाव मे त्याग,तपस्या नियम सब व्यर्थ हो जाते है।क्षमा आत्मधर्म को प्राप्त करने का पहला मार्ग है । उक्त विचार मुनि श्री सौरभ सागर जी महाराज ने पर्यूषण पर्व के शुभारंभ पर प्रथम दिन व्यक्त किए।
उन्होने कहा कि जहा हमारी अपेक्षा कि उपेक्षा होती है वही क्रोध आता है । जहा हमारे मनोनुकूल क्रिया नहीं होती वही क्रोध आता है,क्योकि मनुष्य कि प्रवर्ति है कि वह जैसा चाहता है वैसा ही पाना चाहता है अगर उसको वैसा न मिले तो क्रोध बाहर आता है । उन्होने क्षमा का विवेचन करते हुए हजारो श्रद्रालुओ के बीच कहा कि क्रोध को कभी क्रोध से समाप्त नहीं किया जा सकता,क्रोध को समाप्त करने के लिए क्षमा के नीर कि आवश्यकता है ।
मुनि श्री ने कहा कि क्रोध का प्रारंभ नादानी से होता है और अंत पश्चाताप से होता है ।क्रोध को रोकने के लिए मोन रखो तो सामने वाला बोलकर शांत हो जाएगा ।क्रोध हमेशा नीचे कि और बढ़ता है,पिता का क्रोध पुत्र पर होगा,पुत्र का क्रोध खिलोनों पर या घर कि अन्य वस्तुओ पर,काही न कही प्रकट जरूर होगा ।उन्होने कहा कि जब तक क्रोध कि गंदगी समाप्त नहीं होगी तब तक आत्मदर्शन की सुगंध बयार भीतर से नहीं बहेगी,प्रतिकूल परिस्थिति मे समता धारण करना ही क्षमा धर्म है ।
सारा विश्व जब तुम्हें मित्र लगने लगे तो समझना कि तुम्हारे जीवन में क्षमा का जागरण हो गया है। अतीत की भूलों के प्रायश्चित का नाम है क्षमा। यदि तुम्हारे जीवन में क्षमा का अभाव है तो तुम्हारा त्याग, तपस्या, नियम, संयम सब व्यर्थ हो जाते हैं।
आत्म धर्म को प्राप्त करने की पहली सीढ़ी क्षमा है। ये विचार मुनिश्री सौरभ सागर ने व्यक्त किए।उन्होंने कहा कि क्रोध अग्नि है और क्षमा पानी है। क्षमा रूपी जल धारण करने वाले के पास किसी भी प्रकार के क्रोध के अंगारे आएं वे सब स्वत: ही कुछ समयोपरांत बुझ जाते हैं।
जिस प्रकार कड़वी नीम मुख के स्वाद को खराब कर देती है, वैसे ही क्रोध भी जीवन को खराब कर देता है। मुनिश्री ने कहा कि आज तुम अपने अहंकार को त्याग दो, क्योंकि क्षमा मांगने और बांटने से व्यक्ति छोटा नहीं, बल्कि महान होता है। तुम अपने मन को सरल बनाआ, तभी इस पर्व की सार्थकता होगी।

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