25.12.2015 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 25.12.2015
Updated: 05.01.2017

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PLZ READ IT IF U WANT TO HAVE SOME CHANGE IN URSELF

"no one is creater,operator and destroyer of world",these are the most basic line which a follower of jain knows,but many of us don,t implement it,it means they all believe that god is regulating the world,god has created the world and god will destroy the world,ok let us discuss that to how much extent these lines are right.

in general,we hears that god has created world,operating world and will destroy world,in many philloshphies it has been given that one person created the world,one person is destroying world and one is operating world,let us consider urself as a rational or philloshper or thinker,i know all have qualities of rational,thinker and philloshper,some has little and some has more..the first question arises is that "if god has created or operating or destroying or will destroy world,then there should be someone who has created them,then we hears that no one has created the god,niether someone has created him,nor it will get destroyed"..ok,now for 2 minute think for that about what extent this statement is right,now we get that god has created,operating and will destroy world and he is neither created nor he will die...now another question arises if god is so powerful that he has created,operated and has ability to destroy world,then we see in general that many are rich and many are poors,many are intelligent and many are illiterate,now its mean that god is so cruel and monarch type of personality,also he is partial because he made someone rich or someone poor.after this all queries and arguement,....ok--now a question arise that why god created this world?..there must be a reason and from which material the world is created...one philloshpies say-that..there was nothing during creation..of world then how new thing formed,because science also say that matter can neither be created nor be destroyed..then how new thing got formed..as there was not previous thing...and if god is so powerful that he created matter...then why he has weapon..he can also destroy his creation which harm him...and how someone can harm this powerful god??...what is need of living in kailash..and what is the need of cloth..and this is not the way that so powerful god became angry with his follower d ue to there small mistakes...and god has anger,raag-dwesh...then what isthe difference beetween a wordly jeev and god...hence...we get that this is due to the karma of jeeva,the jeeva is himself responsible for his misiries,his good suffering or bad suffering.it means that there is no role of god in creation of world,operating the world and destruction of world,and we can,not say that god has no role in working of jeeva,god has role,god is like a mirror,let consider that you have black ink on ur face and in ur home there is a mirror,you bichance come at front of it,and watch that your face is having black ink,similarly the function of god is,god only displays ur good qualities and bad qualities,now u will remove black ink from ur fac,after seeing the mirroe,telll me if mirror is removing ur black ink,is mirror is saying that u have black ink and i will remove it,similarly god has its function,it is your choice that you follow it or not,if u not follow it then u will urself remain dirty,and u yourself suffer,and if u follow you will get your orignal state,god also displays ur orignal form,not he do something,if u burns a paper,you see fire,when you will bring it in front of mirror,you will see fire at mirror,tell me if fire will burn the mirror,is mirror has any effect of mirror,similary the person having any quality come at front of god,he will not effected by him,mirror tells that this fire will burn u,similarly god tells that ur bad karma will harm u,god will not protect u from karma..so after this all we should understand that no one has created the world,operating the world and no one will destroy this world.............this world is never ending..

on the basiS of pravachan of muni shri 108 kshama sagar ji...

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कैसे जीतें कर्म

हम भी कर्म जीत सकते हैं...मन हम सकल निर्जरा नहीं कर सकते लेकिन कर्मों का भार तोह आत्मा के ऊपर से कम कर ही सकते हैं..कुछ बातें जो मुनि क्षमा-सागर जी महाराज द्वारा "कर्म सिद्धांत" के प्रवचनों में जो इन्टरनेट पे उपलब्ध हैं..और डाउनलोड कर के सुनी जा सकती हैं...वह कुछ इस प्रकार से हैं..

१.समता भाव रखो-समता भाव से मतलब है की भूत और भविष्य के विकल्पों के बारे में नहीं सोचना,ऐसा नहीं सोचना की कल क्या हुआ था,और आगे क्या होगा,ऐसा नहीं हुआ तोह क्या होगा,हो गया तोह क्या होगा..अगर ऐसा सोचते हैं...तोह समता भाव से तोह अपन दूर हो ही जाते हैं औ साथ की साथ आत्र-ध्यान और रौद्र ध्यान भी करने लगते हैं..समता भाव हमें सिखाता है..वर्तमान में जीना..और खुश जीना..बिना किसी चिंता के

२.सदभाव और अभाव में सामंजस्य बनाये रखना - अगर मैं चाहता हूँ की मेरे ऊपर से कर्मों का भार कम हो..तोह मुझे चाहिए सामंजस्य बनाये रखने की...मुझे दुखी नहीं होना चाहिए..अगर मेरे पे किसी चीज का सदभाव है...जैसे की अगर मेरे पे कुछ नहीं है..तोह मैं दुखी नहीं होऊं..और इसके बारे में नहीं सोचूं..जैसे अगर मेरे पे मोटर साइकिल नहीं है..तोह मुझे मोटर साइकिल के बारे में सोचने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए...और किसी दुसरे से जिसके पास यह सब है..उसे इर्ष्या और कषाय नहीं करना चाहिए...मेरे पास जो भी है उससे खुश रहना चाहिए...अगर मेरे पास किसी चीज का सदभाव है..यानि की कोई चीज जरुरत से ज्यादा मौजूद है...तोह उसका गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए...अगर हम पे पैसा ज्यादा है..तोह बर्बाद न करें..कोई चीज ज्यादा है..उसका गलत इस्तेमाल और ज्यादा इस्तेमाल न करें..जो जीव किसी चीज के सदभाव में शांत रह सकता है..वह किसी चीज के अभाव में भी शांत रह सकता है..इस आदत को अपने अन्दर लाने के लिए एक मंत्र है...की यह सोचें की "यह दिन ऐसे ही निकल जाएगा,यह भी एक दिन बीतेगा)

३.कम से कम प्रतिक्रिया -इसकी विपरीत आदत हम सब में है.अगर मान लीजिये की हम किसी पत्थर से टकरा कर गिर जाते हैं..तोह हम गाली देना शुरू कर देते हैं....पत्थर के मालिक को,वहां रखने वाले को,कुछ नहीं तोह पत्थर को ही गाली देते हैं..और साथ की साथ रोते हैं..चीखते हैं...कराहते हैं..अगर हम इस आदत को सुधर लें तोह बहुत से कर्मों से बच सकते हैं..वह भी थोड़े से पुरुषार्थ में..जब ऊपर बताई हुई अवस्था आये तोह हमें सोचना चाहिए सकारात्मक.जैसे की किसी ने चांटा मारा--हमें सोचना चाहिए..की यह आदमी कितना अच्चा है..जो इतनी सी गलती पे चांटा मारा..चाहे तोह लात मर सकता था,पीट सकता था..या और कुछ भी कर सकता था..लेकिन मेरा असाता वेदनीय बहुत प्रवल था..लेकिन किसी शुभ कर्म के कारण यह सिर्फ इतना ही सिमट कर रह गया..और साथ की साथ सातों तत्वों का सच्चा श्रद्धां भी हम कर सकते हैं.

४.शुभ की तरफ दिशा-हम कर्म बंध की प्रक्रिया श्रावक स्तिथि में बंद नहीं कर सकते तोह ऐसा तोह हो सकता है,,की हम शुभ ही शुभ कर्म करें..अशुभ न करें..मुझे अपना समय शुभ में व्यतीत करना चाहिए...और अशुभ से बचना चाहिए..मुझे मंदिर जाना चाहिए...अच्छी-अच्छी बातें करनी चाहिए,प्रवचन सुनने चाहिए..न की गंधे या अश्लील गाने सुनने चाहियें..मुझे अपनी दिशा शुभ की तरफ कर लेनी चाहिए.

५.घात-प्रतिघात से बचाव-

इस पुरे संसार में हमारे हित के बारे में कोई नहीं सोचता है..सिर्फ सच्चे देव,सच्चे शास्त्र और सच्चे गुरु को छोड़ कर....इसलिए मुझे अपना समय इन ही की शरण में बिताना चाहिए..पूरा संसार हमें अच्छा बन्ने से रोकता है..और अच्छा भी स्वार्थ के लिए ही बनवाता है..हम कुछ भी करते हैं..दुनिया का काम है कमी निकालना..और बीच में बोलना मान लीजिये एक आदमी रोज मंदिर जाता है..और दान करता है..तोह यह बात पक्की है की उसके रिश्तेदार,या उसके दोस्त..या वह लोग जिनको वह हितेषी मानता है..वह उससे चिड़ेंगे..और किसी तरह उसे रोकेंगे..और कमियां निकालेंगे,अगर दो लोगों में अच्छी दोस्ती है..तोह चार लोग उसे जरूर तुडवाएंगे,..और उनके बीच में लड़ाई करवाएंगे..दुनिया सलाह देती है..लेकिन हमें सोचना है की क्या सही है..और क्या गलत...दोस्त तोह बहुत दूर की बात है..अपने जान पहचान वाले रिश्तेदार,यहाँ तक की माता पिता हमारी निंदा करते हैं..और सामने तारीफ़ करते हैं...उसके जवाब में हम उनकी निंदा करते हैं..और यह घात-प्रतिघात का सिलसिला चालू रहता है...अगर कोई हमारे सामने गुस्सा करता है..तोह हम भी गुस्सा करने लगते हैं..हमें एक बात सोचनी चाहिए..की क्या कोई व्यक्ति हमारे सामने अपनी आँख फोड़ ले तोह क्या हम उसे देखकर अपनी आँख फोड़ लेंगे..जवाब होगा नहीं..तोह फिर मुझे उसे देखकर गुस्सा क्यों करना चाहिए..उल्टा मुझे उसे समझाना चाहिए..और वैसे भी हम शरीर को,इन्द्रियों को क्यों किसी दुसरे की वजह से कषय करके नुक्सान पहुंचाएं.

अगर यह साड़ी आदतें हमारे अन्दर आ गयीं तोह हम एक दिन कर्मों पे बहुत जल्दी विजय पा-पाएंगे,बहुत सारे उदहारण और शब्द मेरे द्वारा जोड़े गए हैं...वैसे आधारित मुनि क्षमा सागर जी के प्रचनों पर है.

जय जिनेन्द्र.

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श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र चाँदखेडी

जहाँ व्यक्ति है, वहाँ सृष्टि है। जहाँ सृष्टि है, वहाँ जीवन है, जहाँ आस्था है, वहाँ चमत्कार है। चमत्कारों की अविस्थिति कौतुहल पैदा करती है तो चमत्कारों का सिलसिला श्रद्धा को जन्म देता है। राजस्थान के झालावाड जिले के खानपुर कस्बे से जुडा हुआ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, चाँदखेडी भी ऐसी ही श्रद्धा का केन्द्र है। यह स्थान जयपुर-जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित झालावाड जिला मुख्यालय से पैंतीस कि.मी. दूर और राजस्थान के प्रमुख औद्योगिक नगर कोटा से 120 कि.मी. दूर स्थित है।

गर्भगृह में मूलनायक आदिनाथ की अवगाहन पद्मासन प्रतिमा प्रतिष्ठित है, जिसकी चरन चौकी पर संवत 512 अंकित है। ऊपरी तल पर पाँच वेदियां, एक गंधकुटी और कई छोटी-छोटी वेदियां हैं। इन वेदियों में तीर्थंकर की छोटी-बडी प्रतिमाओं के अलावा साधु और सीमन्दर स्वामी की प्रतिमा भी प्रतिष्ठित हैं। पूरे मन्दिर में 900 से अधिक जिनबिम्ब प्रतिष्ठित हैं। महत्वपूर्ण यह भी है कि मन्दिर का मुख्य शिखर गंधकुटी बना है, न कि मूलनायक भगवान ऋषभदेव की प्रतिष्ठा वाले गर्भगृह पर।

जिससे दो-तीन घंटों में ही हजारों लोग एकत्रित हो गये दोपहर 2:00 बजे मुनिश्री ने गुफा के रहस्य पर प्रवचन दिया तद्पश्चात मात्र पिच्छीधारी पूरे संघ ने गुफा में प्रवेश कर 4:19 मिनट पर लगभग पौने तीन फूट उतंग दिगम्बर जैन पद्मासन स्फटिक मणी, हीरा मणी, चन्द्रप्रभु भगवान, अरिहंत भगवान, पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा ऊपर ला कर मंडल में विराजमान की। इस चतुर्थकालीन अद्वितीय चैत्यालय के ऊपर आते ही सारी चाँदखेडी का आकाश श्री चन्द्रप्रभु एवं मुनिश्री सुधासागर जी महाराज की जयजयकार की ध्वनि से गुंजायमान हो गया, दर्शन करते ही दर्शनार्थियों के मुँह से एक ही आवाज निकल रही थी। महा अतिशय, अलौकिक, अद्वितीय दर्शन कर जीवन धन्य हो गया। मन्दिर के भीतर और बाहर एक ही नारा गूँज रहा था कि - “जैन प्रतिमा कैसी हो, चन्द्र प्रभु जैसी हो”, “गुरु का शिष्य कैसा हो, सुधा सागर जी महाराज जैसा हो” । तत्पश्चात प्रथम अभिषेक श्रेष्ठी श्री कस्तुरचन्द जैन (दोतडा वाले), रामगंजमंडी वालों ने किया। प्रथम महाशांतिधारा गौरव जैन, श्री अशोक पाटनी (आर. के. मार्बल ग्रुप) किशनगढ वालों ने की। मुनि श्री ने अपने प्रवचनों में कहा कि - “ ये इतिहासातीत चतुर्थकालीन महा अतिशयकारी जिनबिम्ब है। इन्हे नमस्कार कर के मेरा जीवन धन्य हो गया। मुनिश्री ने अपने प्रवचनों में बार-बार यह भावना व्यक्त की कि –
“गर हो जन्म दुबारा जिनधर्म ही मिले।
फिर यही जिनालय जिनवर शरण मिले”

मुनिश्री ने यह भी कहा कि - “यह चैत्यालय चैत्र बुदी नवमी अर्थात आदिनाथ जयंती दिन शनिवार संवत 2058 तक दर्शनार्थ ऊपर रहेगा। तत्पश्चात इसे यथा स्थान गुफा में विराजित कर दिया जायेगा”। इन पन्द्रह दिनों में सम्पूर्ण भारत से आये लगभग 15 से 20 लाख लोगों ने दर्शन कर अपना जीवन धन्य किया एवं 10 से 12 हजार लोगों ने अभिषेक कर अतिशय पुण्य बन्ध किया।
चैत्रबुदी दशमी दिन रविवार संवत 2058 को यथा समय चैत्यालय को गुफा में प्रदीप जी (अशोक नगर वालों) के प्रतिष्ठा चार्यत्व में शांति विधान पूर्वक मुनि संघ द्वारा विराजमान कर दिया गया तदुपरांत 19 दिन चैत्र शुक्ल त्रयोदशी महावेर जयंती के दिन शुक्रवार संवत 2059 की रात्रि में उसी दैव्य शक्ति ने मुनि श्री को तीसरी बार स्वप्न में आ कर नमोस्तु कर कहा कि - आपके मन में चाँदखेडी का इतिहास जानने की जो इच्छा है उसे सुनिये - मैं किशनदास “मडिया” बघेरवाल का जीव हूँ जो आपके स्वप्न में पहले भी दो बार आया, चतुर्थकालीन महा अतिशय आदि चन्द्रप्रभु भगवान आदि रत्न मयी प्रतिमाओं का आदिनाथ भगवान की प्रतिमाओं के साथ ला कर मैंने ही स्थापित करवाया था। आदि भगवान की प्रतिमा लाते समय कई बैल टेक पर पछाड खा कर गिर गये, तब प्रतिमाजी को यहीं उतार कर उसी स्थान पर, यह मन्दिर मैंने बनवाया था। ये रत्नमयी प्रतिमायें आदिनाथ भगवान के ऊपरी मंजिल में 30 वर्ष तक विराजमान रही। बाद में मैंने ही इन्हे भू-गर्भ में विराजमान करवाया था। इन्ही चन्द्र प्रभु के नाम से ये स्थान चन्द्र प्रभु का बाडा कहलाता था जिसे आज चाँदखेडी के नाम से जाना आता है। इन रत्नमयी प्रतिमाओं को कभी भी स्थायी रूप से बाहर विराजमान नहीं किया जावे। मात्र सीमित समय के लिये ही दर्शनार्थ निकाल सकते हैं तथा बाद में संकल्पित तिथि के पूर्ण होने पर पुनः भू-गर्भ में ही विराजमान कर दिया जावे। परमपूज्य मुनिश्री जी को उस दैव्यशक्ति ने भविष्य में चैत्यालय किस विधि से निकाला जावे वह विधि भी बतायी जिसे कमेटी ने अलग से शिलालेख एवं ताम्रपत्र पर अंकित करा दी है। मुनिश्री ने स्वप्न में ही पुनः पूछा कि आप इस समय कहाँ हैं तो उसने इसका कोई उत्तर नहीं दिया और अदृष्य हो गया। हम सब भारतवासी श्रद्धालुजन परमपूज्य मुनि पुंगव 108 श्री सुधा सागर जी के अत्यंत उपकारी हैं। जिन्होने अपनी साधना एवं तपस्या से इस चाँद खेडी के इतिहास को जो कि शिलालेखों में एवं जनश्रुतियों में था उसे साक्ष्य में परिवर्तित कर दिया एवं ऐसी अलौकिक अकल्पनीय चतुर्थ कालीन महा अतिशयकारी महान पुण्य का बोध कराने वाली रत्नमयी प्रतिमाओ के दर्शन करवा कर सभी का जीवन धन्य किया। साथ ही जैन धर्म की ध्वजा को गगन की ऊँचाई तक पहुँचा दिया और इस अतिशय क्षेत्र को महाअतिशय क्षेत युगों युगों तक के लिये बना दिया मुनि श्री आप धन्य हैं।

श्रमन संस्कृति के रक्षक एवं तीर्थ जीर्णोद्धारक मुनि पुंगव 108 श्री सुधासागर जी महाराज का पुनः आगमन

आध्यात्मिक एवं दार्शनिक संत मुनि पुंगव 108 श्री सुधासागर जी महाराज ससंघ का श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन अतिशयकारी चाँदखेडी के मन्दिर में भव्यता के साथ पुनः मंगल प्रवेश दिनांक 31 दिसम्बर 2005 को डेढ कि.मी. लम्बी श्रद्धालुओं एवं पुण्यार्जकों की पद यत्रा के साथ हुआ। यह पदयात्रा दिनांक 27 दिसम्बर,2005 को श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, नसियांजी, दादाबाडी, कोटा से प्रारम्भ हुई जिसमें सात हाथी, एक्यावन घोडे, एक गज रथ एवं एक जिनवाणी रथ था। बग्घी में कुबेर, हाथियों पर इन्द्र- इन्द्राणी तथा अश्वों पर आरूढ युवा इन्द्र अपने हाथों में धर्म ध्वजायें फहराते हुए चल रहे थे। महाराज 108 श्री सुधासागर जी शुभ आगमन से चाँदखेडी क्षेत्र धन्य हो उठा तथा सम्पूर्ण वातावरण जय-जय कार से गुंजायमान हो गया।
अलौकिक चमत्कार

वर्षों से स्थापित चाँदखेडी के अतिशय क्षेत्र के मूलनायक 1008 श्री आदिनाथ भगवान की प्रतिमा जिसे रंचमात्र भी हिलाया नहीं जा सकता था, पर प्रतिमा कुछ नीचे होने के कारण स्पर्श दोष होता था। इस दृष्टि से इस मूलनायक प्रतिमा को आगे सरका कर वास्तु दोष का निवारण किया जाये ऐसा विचार बना।
ऐसी स्थिति में मुनि श्री 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने ध्यानस्थ हो कर कुछ अनुयायियों के सहयोग से इस 30 टन वजनी, सवा छः फीट लम्बी विशाल लाल पाषाण की प्रतिमा को सहजता के साथ पौने दो फीट आगे सरका दिया, इस अलौकिक घटना की चर्चा सम्पूर्ण क्षेत्र में बडी तेजी के साथ फैली जिससे यहाँ धर्मावलम्बियों का हुजूम उमड पडा।
महाराज श्री सुधासागर जी के सनिध्य में इस मूलनायक भगवान 1008 श्री आदिनाथ की मनोहरी प्रतिमा को सुन्दर कमल पर विधि के साथ विराजमान किया गया।

यही नहीं चाँदखेडी अतिशय क्षेत्र में भरने वाले “ऋषभ जयंती” के वार्षिक मेले का शुभारम्भ भी महाराज श्री के मंगल आशीर्वाद के साथ हुआ। जिसमे संभाग के हजारों जैन एवं अजैन मतावलम्बियों ने भाग ले कर वार्षिक मेले को ऊँचाईयों के सोपान दिये। महाराज जी के प्रवास के अंतर्गत उनकी सतत् प्रेरणा से भव्य वेदी प्रतिष्ठा का भी आयोजन अतिशय क्षेत्र पर हुआ। अतिशय क्षेत्र पर पधारें एवं श्री आदिनाथ भगवान के दर्शन कर अपनी मनोकामना को साकार करें।

जबतक सूरज चाँद रहेगा
श्री सुधा सागर जी का नाम रहेगा।

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