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महावीर वाणीधम्मंमि हु सद्दहंतया, दुल्लहया काएण फासया ।
इह कामगुणेसु मुच्छिआ, समयं गोयम! मा पमायए ।।
धर्म में श्रद्धा हो जाने पर भी धर्म में आचरण दुर्लभ है । शब्द आदि विषयों में डूबे होने के कारण धर्म सामग्री मिलने पर भी धर्म की आराधना नहीं हो पाती है । अतः हे गौतम! एक समय का भी प्रमाद मत करना ।
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हे वीर.....
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