18.08.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 18.08.2016
Updated: 05.01.2017

Update

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* #रक्षाबंधन #RakshaBandhan #Bhadva आज रक्षा बंधन हम सबने मनाई और कल से जैन धर्म का पवित्र महिना 'भादवा' शुरू हो रहा है।। आप क्या नियम ले रहे है।। नियम नियम होता है छोटा बड़ा नहीं! मैंने 1 घंटा जैन बुक पढना और रात के खाने के त्याग किया है और आपने???? अपना नियम या तो यहाँ बताये या मन में रखले.. बताने से सिर्फ लोगो को motivation मिले ये भावना हैं:)

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श्री महावीरजी में एक गाय टीले पर नित दूध झराती थी.. #MahavirJi #Jainism #Jain #Dharma #Tirthankara

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समाधिस्थ आचार्य श्री नेमीसागर जी तपस्या करते हुए दुर्लभ पिक्चर...:) #Digambara #Jainism #Dharma #Tapasya #Nemi #truthseeker

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शंका समाधान
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१. मुहूर्त की जरूरत उनको पड़ती है जिनका मनोबल कमजोर होता है!

२. मंदिर जाते समय प्रसन्न चित्त होते हुए ये भाव लेकर जाना चाहिए की हम बड़े सौभाग्यशाली है जो आज तीन लोक के नाथ से मिलने जा रहे हैं!

३. अगर आप चाहते हो की बुढ़ापा अच्छा निकले तो वानप्रस्थ आश्रम को अंगीकार करिये, घर परिवार से मोह त्याग करके साधुओं के साथ हो लीजिये! बच्चों के सहारे रहोगे तो हो सकता है की जरूरत पड़ने पर कोई दवाई देने वाले वाला भी ना मिले!

४. आजकल खाने पीने की वस्तुओं में इतना कीटनाशक डालते हैं की ये कैंसर का सबसे बड़ा कारण बनता जा रहा है! एक कैंसर चिकित्सक ने बताया की हम लोग खाना नहीं जहर खा रहे हैं, इससे बचने के लिए एक अच्छा तरीका बताया की जो भी अनाज / सब्जी / फल लेकर आते हैं उसको पहले पानी में थोड़ा सा पोटास डालकर २० मिनट तक गाला दीजिये फिर उसको साफ़ पानी से अच्छी तरह धोकर उपयोग में लाइए!

गाय को भी इंजेक्शन की वजह से स्तन कैंसर हो जाता है तो ऐसी गाय का दूध पियोगे तो क्या होगा! केवल बछड़े वाली गाय का दूध पीना चाहिए!

५. जैन दर्शन में ज्योतिष को स्वीकार किया गया है! लेकिन इसके चक्कर में पड़कर उलटे सीधे कार्य करने में दोष ही है!

- प. पू. मुनि श्री १०८ प्रमाण सागर जी महाराज

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#RakshaBandhan -रक्षा बंधन की स्टोरी तो आपने बहुत बार पढली होगी इस बार आचार्य श्री विद्यासागर जी के शिष्य क्षुल्लक ध्यानसागर जी के प्रवचन से ये पढ़े कुछ हटके:) रक्षा बंधन के Celibration में छुपा हैं 'साधू लोगो को आहार देने से Related एक गजब Logic' अगर आप भी ऐसी भावना से आहार देंगे तो आपका पुण्य भी डबल और आनंद भी डबल:)) MUST READ BEFORE CELIBRATE RAKSHA BANDHAN THIS TIME:)

अगर कभी देव-शास्त्र-गुरु पर कभी कोई संकट आये और उस भक्त में क्षमता है तो अपनी विवेक बुद्धि के अनुसार कदाचित रक्षा कर सकता है! अगर आप देव-शास्त्र-गुरु की रक्षा करेंगे तो आपकी रक्षा होगी संसार सागर से डूबने से बचने में! जैन ग्रंथो की अनुसार आहार दान की विधि अलग है, "मेरे यहाँ जो आहार बने वो ऐसा भोजन हो जिसमे से मैं साधु को दे सकू" ऐसी भावना श्रावक के है तो वो महान पुण्य कमा लेता है, और यदि श्रावक की ये भावना है की आज मैं स्पेशल महाराज जी ने लिए तैयारी करू, तो महाराज जी के संकल्प से आप भोजन तैयार करते है तो उसमे आपको भी दोष लगेगा और महाराज जी को भी दोष लगेगा, क्योकि महाराज जी को संकल्पित भोजन लेने का निषेध है, सहज जो श्रावक ने अपने लिए भोजन बनाया है उसमे से अगर देता है तो वो तो स्वीकार है, अगर कोई हमसे पूछे आहार वाले दिन की ये आप क्या कर रहे है तो आप बोलते है आज महाराज जी का आहार है हम उनके लिए ये सब घी, दूध, की व्यवस्था कर रहे है जबकि आपका भाव होना चाहिए मैं भोजन ऐसा बनाऊ अगर महाराज जी आये तो वो भी लेसके नहीं तो मैं तो भोजन करूँगा ही, क्योकि साधु का दोष तो हो सकता है साधु तपस्या से ख़तम भी करदे, लेकिन सही पुण्य का जो उपार्जन होता है वो सिर्फ अपने विचारो का खेल है, साड़ी व्यवस्था दोनों के करते है एक का विचार है "महाराज के लिए" दुसरे का विचार है "इसमें से महाराज को दिया जा सके" जिनवाणी बोलती है पुण्य तब लगता है जब अपनी चीज़ आप दान दो, एक बार ऐसी भावना के साथ आहार दे कर देखो तब आपको पता चलेगा, क्योकि सारी बाते सुनने से अनुभव में नहीं आसकती है, इधर भावना है की अपने आहार में से मैं साधु को आहार दू और दूसरी तरफ भावना ये है की साधु के लिए मैं आहार बना रहा हूँ!

हमें यहाँ पर विवेक से भी कार्य करना चाहिए, क्योकि यहाँ पर सिर्फ वैसा ही मान लिया की "सहज जो श्रावक ने अपने लिए भोजन बनाया है उसमे से अगर देता है तो वो तो स्वीकार है" तो औषधिदान की व्यवस्था नहीं बन पायेगी क्योकि परिस्थिति के कारण हमें विवेक को प्रयोग करना चाहिए, इसका सबसे अच्छा उदाहरण विष्णुकुमार मुनि की कथा ही है, पूरी हस्तिनापुर नगरी में आहार के चोके लगे थे, सबको पता था यही मुनिराज आएंगे, और सबने वही खीर का आहार तैयार किया था...तो भी उनके कोई दोष नहीं था, फिर इसी तरह अगर कोई महाराज जी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो उनको उनके स्वास्थ्य के अनुकूल ही आहार देना चाहिए, और ऐसी भावना में तो मुनि के रत्न-त्रय के सुरक्षा की भावना ही है, तो इसमें उन् मुनिराज के निमित से औषधि को भोजन रूप में देने पर भी दोष नहीं लगेगा, फिर अगर कोई महाराज जी नमक नहीं लेते तो फिर कैसे होगा और सोचो अगर किसी मुनिराज को बुखार आगया तो हम उनके लिए औषधि के साथ उनके स्वास्थ्य के लिए संगत आहार तैयार करेंगे, तो दशा में उस आहार को भी दोषित मानना पड़ेगा क्योकि वो उन एक मुनिराज के लिए ही तैयार किया गया था लेकिन ऐसा नहीं होता.... तो इस तरह हमें विवेक से ही कार्य करना चाहिए!

ये लेख - क्षुल्लक ध्यानसागर जी महाराज (आचार्य विद्यासागर जी महाराज के शिष्य) के प्रवचनों से लिखा गया है! -Nipun Jain:)

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एक राजा👑 का जन्मदिन🎂 था.
सुबह🌞 जब वह घूमने निकला, तो उसने तय किया कि वह रास्ते में मिलने वाले पहले व्यक्ति को पूरी तरह खुश😀 व संतुष्ट😌 करेगा.
उसे एक भिखारी👴🏿 मिला.
भिखारी ने राजा सें भीख मांगी, तो राजा ने भिखारी की तरफ एक तांबे🔶 का सिक्का उछाल दिया.
सिक्का भिखारी के हाथ सें छूट कर नाली में जा गिरा.
भिखारी नाली में हाथ डाल तांबे का सिक्का🔶 ढूंढ़ने लगा.
राजा ने उसे बुला कर दूसरा तांबे का सिक्का🔶 दिया.
भिखारी ने खुश😀 होकर वह सिक्का अपनी जेब में रख लिया और वापस जाकर नाली में गिरा सिक्का🔶 ढूंढ़ने लगा.
राजा👑 को लगा की भिखारी बहुत गरीब है, उसने भिखारी को फिर बुलाया और चांदी🕡 का एक सिक्का दिया.
भिखारी राजा की जय जयकार करता चांदी का सिक्का🕡 रख लिया और फिर नाली में तांबे बाला सिक्का🔶 ढूंढ़ने लगा.
राजा ने फिर बुलाया और अब भिखारी को एक सोने का सिक्का ⭕दिया.
भिखारी खुशी सें झूम उठा और वापस भाग कर अपना✋🏾 हाथ नाली की तरफ बढ़ाने लगा.
राजा को बहुत खराब😦 लगा.
उसे खुद सें तय की गयी बात याद आ गयी कि पहले मिलने वाले व्यक्ति को आज खुश😃 एवं संतुष्ट😌 करना है.
उसने भिखारी👴🏿 को बुलाया और कहा कि मैं तुम्हें अपना आधा राज-पाट देता हुं, अब तो खुश😃 व संतुष्ट😌 हो जाओ...
भिखारी बोला, मैं खुश😃 और संतुष्ट😌 तभी हो सकूंगा जब नाली में गिरा तांबे का सिक्का🔶 भी मुझे मिल जायेगा.
हमारा🙏 हाल भी उस भिखारी👴🏿 जैसा ही है.
हमें मानव रूपी अनमोल💎 खजाना दिया है देव-शास्त्र-गुरु तुल्य अनमोल रत्न💎 मिले हैं, रत्नों से भरा माँ जिनवाणी का आँचल💰💸💰💎 मिला हैं और हम उसे भूलकर संसार रूपी नाली में तांबे के सिक्के🔶 निकालने के लिए जीवन गंवाते जा रहे है...
इस अनमोल मानव जीवन का हम अगर सही इस्तेमाल
💎श्री देव-शास्त्र-गुरु💎
की आराधना और तत्वाभ्यास📚📖 में करें तो हमारा जीवन भी धन्य हो सकता हैं.....🙏
🙏🙏🙏🙏जय जिनेंद्र🙏🙏🙏🙏

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Rakṣā bandhana [Vātsalya aṅga]: The name itself is a giveaway. ' Rakṣā ' implying protection and ' bandhana ' signifying the protective approach. It is an affirmation to protect and parental affection for Dēva śāstra guru stand for protective attitude corresponding Dharma and for its true seeker. This chronicle itself called pinnacle of fondness approach regarding homologous seeker, when Sage Viṣṇukumāra, who had about to break the web of karmic bondage and was near to get the enlightenment but had left Penance just for save to Akampanācaryā & so on 700 homologous Digambara sages. my bonjour and obeisance for the Sage Viṣṇukumāra. Conclusion is that it is inspired us to take the decision ahead with wisdom and tact whenever need to go for if happen any kind of such circumstances. Because Vātsalya [parental affection] is also a crux of the Jainism philosophy.

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🌷 आज 11 वे तीर्थंकर श्रेयांसनाथ भगवान् का मोक्ष कल्याणक महोत्सव भी हे🌷 🇰🇿 आज लवानांकुश का जन्म दिन भी हे 💠 विष्णु कुमार मुनि द्वारा 700 मुनियो की रक्षा 🔰चितौड़ के राजा की रानी कर्मवती ने शील की रक्षा के लिए 16000 सतियों सहित अग्नि कुण्ड में प्रवेश!
UtiR
देव शास्त्र गुरुओ की रक्षा का पर्व हे रक्षावन्धन
🏯 सलुना पर्व भी कहते हे
700 मुनियो की रक्षा हुई थी
सभी ने संकल्प लिया था की मुनियो का उपसर्ग जब तक दूर नहीं होगा आहार जल ग्रहण नहीं करेगे
🌻🌻🌻🌻🌻🌻
उए घटना अरहनाथ भगवान् के समय हुई थी
💐💐💐💐💐i
🚩जैन धर्म आगम अनुसार विस्तार से जानकारी 📚
📝📝📝📝📝
♦प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ला पूर्णिमा को रक्षाबंधन पर्व आता है। यह अत्यंत प्राचीन पर्व है। इसकी उत्पति अठारहवें तीर्थकर अरहनाथ भगवान के काल में हुई थी।
🔷इस पर्व का प्रादुर्भाव 👏महामुनि विष्णु कुमार👏 के निमित्त से हुआ था,
अतः यह कर्मी पर्व है। जो पुराकृत शुभाशुभ कर्म हैं उनका शुभाशुभफल अवश्य ही प्राप्त होता है,अतः वीतराग भाव की प्राप्ति करना प्रत्येक के जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।
यह इस पर्व का संदेश है।
इसकी कथा इस प्रकार है।
♦अवन्ती देश में उज्जयिनी नगरी में राजा श्रीवर्मा था। उसकी रानी श्रीमती थी और बलि, बृहस्पति, प्रह्लाद, तथा नमुचि, ये चार मंत्री थे। एक बार उज्जयिनी में समस्त श्रुत के धारी, दिव्यज्ञानी सात सौ मुनियों के साथ अकम्पनाचार्य आकर उद्यान के वन में ठहर गये।
♦आचार्य ने समस्त संघ से कहा कि यदि राजादिक भी आये तो भी कोई मुनि बोले नहीं, अन्यथा समस्त संघ का नाश हो जायेगा। ‘‘धवलगृह पर स्थित राजा ने हाथ में पूजा की सामग्री लेकर नगर के लोगों को जाते हुए देखकर मंत्रियों से पूछा- यह लोग असमय में ही कहां जा रहे है?’’ मंत्रियों ने कहा- ‘‘बहुत से जैन मुनि नगर के बाहर में आए हुए है, वहां पर यह लोग जा रहे हैं। हम भी उनके दर्शन के लिए चलें, ऐसा कहकर राजा भी चारों मंत्रियों के साथ गया।
प्रत्येक मुनि की सभी ने वन्दना की, किंतु किसी ने भी आशीर्वाद नहीं दिया।
🔷 राजा ने सोचा दिव्य अनुष्ठान के कारण अत्यंत निःस्पृह ये मुनि बैठे है, अतः वह वापिस लौटने लगा। रास्ते में दुष्ट अभिप्राय धारक मंत्रियों ने उपहास किय कि ‘‘ये मूर्ख बैल हैं- कुछ भी नहीं मानते है अतः दम्भ से मौनपूर्वक बैठे हैं।’’
इस प्रकार बोलते हुए जब वे आग्र जा रहे थे, तभी आगे चर्याकर श्रुतसागर मुनि को आते हुए देखकर उन मंत्रियों में से किस ने कहा- ‘‘यह तरूण बैल, पेट भर कर आ रहें है।’’
♦यह सुनकर श्रुतसागर मुनि ने राजा के ही सामने उन मंत्रियों को शास्त्रार्थ में ही जीत लिया तथा आकर अकम्पनाचार्य से समाचार कहा।
🔷आचार्य श्री ने कहा - ‘‘तुमने सारे संघ को मार दिया। यदि शास्त्रार्थ के स्थान में जाकर रात में तुम अकेले ठहरते हो तो संघ जीवित रहेगा तथा तुम्हारी शुद्धि होगी।’’ अनन्तर श्रुतसागर मुनि वहां जाकर कायोत्सर्ग पूर्वक खड़े हो गये। अत्यंत लज्जित क्रुद्ध मंत्रियों ने रात्रि में संघ को मारने के लिए जाते समय उन एक मुनि को देखकर- ‘‘जिसने हमारा निरादर किया, उसे ही मारना चाहिए’’ ऐसा विचारकर उनके वध के लिए एक साथ चार तलवारें खींची। इस समय नगरदेवी का आसन कम्पायमान हुआ। उसने उन मंत्रियों को उसी अवस्था में कील दिया। प्रातः काल समस्त लोगों ने उन्हें उसी प्रकार देखा। राजा बहुत रूष्ट हुआ, किंतु ये मंत्री कुल परम्परा से आगत है, ऐसा जानकर उन्हें उसने नहीं मारा। उन्हें गधे पर चढ़ाना आदि कराकर देश से निकाल दिया।
📚📚📚📚📚
♦कुरूजड्गल देश के हस्तिनागपुर में राजा पद्मरथ था। उसकी रानी का नाम लक्ष्मीमति था। उसके पद्म और विष्णु दो पुत्र थे। एक बार पद्म को राज्य देकर महापद्म विष्णु के साथ श्रुतसागरचन्द्राचार्य के समीप मुनि हो गये। वे बलि आदि मंत्री आकर राजा पद्म के मंदत्री हो गये। कुम्भपुर नगर में राजा सिंहबल था, वह दुर्ग के बल से पद्म के मण्डल के ऊपर उपद्रव करता था। उसे पकडने की चिंता के कारण पद्म को दुर्बल देखकर बलि ने कहा- ‘‘महाराज दुर्बलता का क्या कारण है?’’ राजा ने उससे अपनी दुर्बलता का कारण कहा। वह सुनकर आदेश मांगकर कुम्भपुर जाकर बुद्धि के माहात्म्य से दुर्ग तोड़कर सिंहबल को पकडकर लौटकर उसे पद्म को समर्पित कर दिया। ‘‘महाराज! वह सिंहबल यह है?’’ संतुष्ट होकर उसने कहा- ‘‘इच्दित वर मांगो।’’ बलि ने कहा- ‘‘वह मांगूगा, तब दीजिएगा।’’
♦अनन्तर कुछ दिनों में विाहर करते हुए वे अकम्पनाचार्य आदि सात सौ मुनि हस्तिनागपुर आए। नगर में चहल-पहल होने पर बलि आदि ने भयपूर्वक विचार किया कि राजा इनका भक्त है। अतः संघ को मारने के लिए पहले से ही पद्म से प्रार्थना की- ‘‘हमें सात दिना के लिए राज्य दीजिए।’’ अनन्तर पद्मरीाज सात दिन का उन्हें राज्य देकर अपने अंतःपुर में रहने लगे। बलि ने आतापन गिरि पर कायोत्सर्ग से स्थित मुनियों को बाड़ से घेरकर मण्डप बनाकर यज्ञ करना आरम्भ किया। छोडे हुए सकोरे तथा बकरे आदि, जीवों के कलेकर और धुयें से मुनियों को मारने के लिए उपद्रव किया। ♦मुनि आभ्यन्तर और बाह्य संयास पूर्वक स्थित हो गये।
अनन्तर मिथिलानगरी में आधी रात्रि के समय बाहर निकलते हुए श्रुतसागरचन्द्र आचार्य ने आकाश में श्रवणनक्षत्र को कांपता हुआ देखकर अवधिज्ञान से जानकर कहा- ‘‘महामुनियों के ऊपर महान उपसर्गहो रहा है।’’ उसे सुनकर पुष्पदन्त नामक विधाधर क्षुल्लक ने पूछा- भगवान! कहां पर? किन मुनियों के ऊपर उपसर्ग हो रहा है? 👏आचार्य ने कहा- ‘‘हस्तिनागपुर में अकम्पनाचार्य आदि मुनियों के ऊपर उपसर्ग हो रहा।’’ क्षुल्लक ने पूछा- ‘‘वह उपसर्ग कैसे नष्ट होगा?’’ आचार्य ने उत्तर दिया- ‘‘धरणिभूषण पर्वत पर विष्णुकुमार मुनि ठहरे है। उन्हें विक्रिया ऋद्धि प्राप्त है, वह उपसर्ग नाश करेंगे।’’ यह सुनकर उनके समीप जाकर क्षुल्लक ने सब वृत्तान्त सुनाया। विष्णुकुमारने क्या मुझे विक्रियाऋद्धि है? यह विचारकर विक्रिया ऋद्धि की परीक्षा के लिए हाथ फैलाया। वह हाथ पर्वत को भेदकर दूर चला गया। अनन्तर विक्रिया ऋद्धि का निर्माण कर हस्तिनापुर जाकर उन्होंने पद्मराज से कहा- ‘‘क्या मुनियों के ऊपर उपसर्ग तुमने कराया है? आपके कुल में किसी ने भी ऐसा नहीं किया।’’ पद्मराज ने कहा- ‘‘क्या करूं? पहले इन्हें मैंने वर दे दिया है?’’
♦अनन्तर विष्णकुमार मुनि ने वामन ब्राह्मण का रूप धारण कर दिव्यध्वनि से प्रार्थना की। बलि ने कहा- ‘‘आपको क्या दूं?’’ उन्होंने कहा- ‘‘तीन डग भूमि दीजिए।’’ ‘‘हठी ब्राह्मण! अन्य बहुत मांगो,’’ इस प्रकार बारम्बार लोगों के द्वारा कहे जाने पर भी वे वही मांगने लगे। हाथ में जल लेने आदि की विधि से तीन पैर भूमि दिए जाने पर उन्होंने एक पैर मेरू पर रखा,दूसरा पैर मानुषोत्तर पर्वत पर, तीसरे पैर से देवविमान आदि में क्षोभ उत्पन्न कर बलि की पीठ पर उस पैर को रखकर बलि को बांधकर मुनियों के उपसर्ग का निवारण किया। अनन्तर वे चारों मंत्री और पद्म भयवश आकर विष्णुकुमार और अकम्पनाचार्यादि मुनियों के पैरों में पड़ गए। वे मंत्री श्रावक हो गए। व्यंतरदेवों ने सुघोष नामक तीन वीणायें विष्णुकुमार मुनि को प्रदान की

News in Hindi

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❖ Take Care of Your Own Treasure -Acarya VishudhaSagar G ❖

O, pure soul! Why are you so careless about your own treasure? You know little about the richness of your own treasure. Take care of your jewels. O, wise and prudent person the thieves of sensual pleasure and rooming all around you. Be cautious about them. They would not delay even for a moment n taking advantage of solitariness. There is no place for moving alone, sitting alone and whispering etc. by a saint marching on the path of salvation. If an aspirant really wants to safe guard himself from the thieves of sensual. He should look away his mind by the lock of his thoughts. #VishuddhaSagar #Jainism

|| I bow disembodied pure souls (Siddhas) and all the five supreme beings ||

From: 'Shuddhatma Tarngini'
Author: Aacharya Vishudha Sagarji Maharaj
English Translator: Darshan Jain, Prof. P. C. Jain

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#RakshaBandhan आज के दिन अकम्पनाचार्य आदि सात सो मुनियों का उपसर्ग विष्णुकुमार मुनि ने दूर किया था, जय हो.. वात्सल्य पर्व रक्षा बंधन की सबको बधाई हो, तथा आज श्रेयांसनाथ भगवन का मोक्ष कल्याणक है!!! #JainDharma #Jainism

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