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Gadal, Dharapur, Guwahati, Assam, India
कृतिदेव यहां अहिंसा यात्रा प्रेस विज्ञप्ति
उल्लासपूर्ण वातावरण में मनाया गया तेरापंथ धर्मसंघ का 23वां विकास महोत्सव
-आचार्यश्री ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र, क्षमा व अनासक्ति के क्षेत्र में विकास का दिखाया रास्ता
-आचार्यश्री ने विकास पत्र का किया वाचन
-साध्वीप्रमुखाजी ने कहा आचार्यों ने किया है चतुर्विध धर्मसंघ के विकास का प्रयास
-आचार्यश्री ने स्वरचित गीत का किया संगान, साध्वीवृन्द ने भी गीत का किया संगान
-साध्वीवर्याजी ने आचार्य तुलसी को बताया दृढ़निश्चयी और स्वप्नद्रष्टा
-महिला मंडल/कन्या मंडल गुवाहाटी ने भी अपनी गीतिका दी प्रस्तुति
10.09.2016 गड़ल (असम)ः शनिवार को चतुर्मास प्रवास स्थल स्थित प्रवचन पंडाल में उल्लासपूर्ण वातावरण में ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा के प्रणेता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी और साध्वीप्रमुखाश्री की पावन सन्निधि में 23वां विकास महोत्सव आयोजित किया गया। इसमें संभागी बनने के लिए हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। आचार्यश्री ने सभी को ज्ञान, दर्शन, चारित्र, क्षमा और अनासक्ति में विकास करने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री ने महोत्सव पर बनाए गीत का संगान किया तो साध्वीवृन्द, कन्या मंडल व महिला मंडल ने गीत की प्रस्तुति दी। इसके उपरान्त आचार्यश्री ने विकास पत्र का वाचन किया और संघगान के साथ महोत्सव पूर्ण हो गया।
तेरापंथ धर्मसंघ के विकासपुरुष, स्वप्नद्रष्टा, और धर्मसंघ में क्रांतिकारी परिवर्तन करने वाले और धर्मसंघ को कई नए अवदान देने वाले धर्मसंघ के नवमाधिशास्ता गणाधिपति आचार्य तुलसी के पट्टोत्सव को विकास महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। आज से लगभग 22 वर्ष पूर्व जब धर्मसंघ के नवें आचार्यश्री तुलसी ने जब अपने पद का विसर्जन कर धर्मसंघ को आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के रूप में दसवां आचार्य प्रदान किया। दिल्ली चतुर्मास के दौरान जब पट्टोत्सव का समय करीब आ रहा था कि आचार्यश्री महाप्रज्ञजी अपने गुरुदेव के रहते अपना पट्टोत्सव न मनाने और अपने गुरुदेव का पट्टोत्सव मनाने का निवेदन किया, किन्तु गणाधिपति गुरुदेव तुलसी ने ऐसा करने से मना करते हुए कहा कि जो आचार्य पद पर है पट्टोत्सव तो उसी का मनाना विधि सम्म्त है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने एक चिन्तन किया और अपने गुरुदेव के पट्टोत्सव का विकास महोत्सव के रूप में मनाए जाने का प्रस्ताव रखा, जिसे आचार्यश्री तुलसी ने नकार नहीं सके। आचार्यश्री तुलसी के आचार्य काल को धर्मसंघ का स्वर्णिम काल घोषित करते हुए आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने मर्यादा पत्र की भांति विकास पत्र बनाया और स्थापित कर दिया विकास महोत्सव।
शनिवार को गड़ल, धारापुर स्थित चतुर्मास प्रवास स्थल में बना वीतराग समवसरण का विशाल पंडाल श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था। घड़ी ने नौ बजाए और मंचासीन हो गए तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा के प्रणेता महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी। उनके साथ मंचासीन हुई महासमणी, असाधारण साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी। इसके अतिरिक्त मुख्यनियोजिकाजी, मुख्यमुनिजी और साध्वीवर्याजी सहित समस्त साधु-साध्वी समाज भी मंचासीन हो चुका था। आचार्यश्री ने 23वें विकास महोत्सव का शुभारम्भ नवकार महामंत्र से किया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ करते हुए गुवाहाटी तेरापंथ महिला मंडल व कन्या मंडल ने संयुक्त रूप से गणाधिपति आचार्यश्री तुलसी के जीवन चरित्र पर बनाए गए गीतिका का संगान कर किया। विकास परिषद के सदस्य श्री मांगीलालजी सेठिया ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति देते दिल्ली के उस चतुर्मास काल को याद किया जिसमें इस विकास महोत्सव की नींव पड़ी थी। साथ ही उन्होंने आचार्यश्री तुलसी के जीववृत्त का भी वर्णन किया। विकास परिषद के सदस्य श्री बनेचन्दजी मालू ने भी अपने भावनाओं की अभिव्यक्ति दी और समाज को मां-पिताजी के स्थान पर प्रयोग किए जा रहे मम्मी और डैड शब्दों से बचाने की अर्चना की। इसके उपरान्त सिलीगुड़ी में 2017 में होने वाले 153वें मर्यादा महोत्सव के लिए तैयार किए गए बैनर-पोस्टर के साथ सिलीगुड़ी के श्रावक समाज पहुंचे और आचार्यश्री से आशीर्वाद प्राप्त किया। सिलीगुड़ी संघ की ओर से श्री रतनलाल भंसाली ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति दी। साध्वीवृन्द ने ‘भैक्षव शासन की यशगाथा सात समंदर पार’ का संगान किया। वहीं दिल्ली से आए संघ ने भी आचार्यश्री के चरणों मंे वन्दना की और उन्हें दिल्ली पधारने की प्रार्थना की।
अपने युग का महत्त्व समझ सभी आचार्यों ने किया है धर्मसंघ चहुंमुखी विकास: साध्वीप्रमुखा
महासमणी और आचार्यश्री द्वारा असाधारण का अलंकर प्राप्त करने वाली साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने अपने उद्गार से श्रद्धालुओं को तृप्त करते हुए कहा कि आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के चिन्तन से हमें यह विकास महोत्सव का अवसर प्राप्त हुआ है। यह धर्मसंघ एक विकासशील धर्मसंघ है। यह परमपूज्य गुरुदेव तुलसी के पट्टोत्सव से जुड़ा हुआ दिन है। वे धर्मसंघ के ऐसे आचार्य हुए जिनके समय में धर्मसंघ ने बहुत नए आयाम देखे। वैसे तो अपने-अपने युग का महत्त्व समझते हुए समस्त पूर्वाचायों ने धर्मसंघ का विकास किया है। साध्वीप्रमुखाजी ने अतीत का सिंहावलोकन, वर्तमान की समीक्षा और भविष्य का चिन्तन करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि जैसे एक कल्पवृक्ष लाखों लोगों की मुरादे पूरी करता है, जैसे एक सूर्य करोड़ों कमल पुष्पों को खिला देता है, उसी प्रकार एक आचार्य आधारित इस धर्मसंघ को एक आचार्य का ही चिन्तन निरन्तर प्रगति के पथ ले जाने का कार्य कर रहा है। महासमणीजी ने आचार्यश्री की सन्निधि में धर्मसंघ का अबाध रूप से विकास करने की मंगलकामना की।
आचार्यश्री ने प्रदान किया प्रेरण पाथेय
शांतिदूत आचार्यश्री ने विकास महोत्सव में वर्धमान बनो की प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को ज्ञान, दर्शन, चारित्र, क्षमा और अनासक्ति की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। इस दुनिया में ज्ञान का परम महत्त्व है। ज्ञान के बिना आदमी के भीतर अंधेरा ही रह जाता है। दुनिया में ज्ञानार्जन के लिए कितने-कितने विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय स्थापित किए गए हैं और कितने-कितने विद्यार्थी उनमें ज्ञान प्राप्त करते होंगे। ज्ञान अपने आप में पवित्र होता है चाहे वह किसी भी विषय का हो, किन्तु आध्यात्मिक ज्ञान आदमी की आत्मा को मोक्ष की द्वार तक ले जाने वाला हो सकता है। पूज्यप्रवर ने दर्शन, चारित्र, क्षमा और अनासक्ति में भी विकास करने की प्रेरणा प्रदान की।
आचार्यश्री ने धर्मसंघ को एक समुच्चय की संज्ञा देते हुए कहा कि पूर्व के दस आचार्यों ने धर्मसंघ के बहुमुखी विकास के साथ सुरक्षा का भी ध्यान दिया है। विकास है तो उसकी सुरक्षा भी आवश्यक होती है, किन्तु विकास करने में मूल अर्थात् जड़ का त्याग नहीं करना चाहिए। मूल स्थापित रहे तो विकास संभव हो सकता है। किसी भी मकान को ऊंचा उठाने के लिए उसके नींव का मजबूत बने रहा आवश्यक होता है उसी तरह किसी संघ या संस्था को ऊंचा उठाने के लिए उसके मूल तत्त्वों और नियमों का मजबूती से पालन किया जाना आवश्यक है। परिवर्तन हो, विकास हो पर मूल को बनाए रखने के लिए जागरूक रहने का प्रयास करना चाहिए। मूल मजबूत होता है तो अच्छा विकास हो सकता है। आज के दिन आचार्यश्री ने समस्त साधु-साध्वियों, श्रावक-श्राविकाओं और जीवन में अध्यात्मिकता के विकास के साथ प्रमाणिकता बनाए रखने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री ने विकास परिषद के साथ-साथ साधु-साध्वियों की संस्था बहुश्रुत परिषद को विशेष प्रेरणा भी प्रदान की। आचार्यश्री ने पुरातन के साथ अधुनातन का बेहतर समन्वय को विकास का साधन बताया। इस अवसर पर आचार्यश्री ने विकास पत्र का वाचन किया। तत्पश्चात इस अवसर के लिए स्वरचित गीत ‘प्रगति का उच्छ्वास वाला रोज रवि आए’ गीत का संगान भी किया। इस मौके पर साध्वीवर्याजी ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए और आचार्यश्री से शुभाशीष प्राप्त किया।
इसके उपरान्त आचार्यश्री ने चतुर्मास के बाद की यात्रा का वर्णन किया। साथ ही कुल 54 श्रावक-श्राविकाओं को महादानी, तपोनिष्ठ, श्रद्धानिष्ठ, श्रद्धा की प्रतिमूर्ति और प्रेक्षा गौरव अलंकरण भी प्रदान किया। साथ ही कुछ साधु-साध्वियों के चतुर्मास काल के उपरान्त उनके विहार क्षेत्र के बारे में भी सूचना प्रदान की। कार्यक्रम के अंत में आचार्यश्री ने संघगान का संगान किया।
चन्दन पाण्डेय
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