Update
*#पूज्यवर का #प्रेरणा #पाथेय*
👉 -#संयम के पर्याय महात्मा ने संयम का पढ़ाया पाठ#
👉 -साथ ही #आचार्यश्री ने विवेकयुक्त पुरुषार्थ और पराक्रम करने की दी प्रेरणा#
👉 -#श्रद्धालुओं ने अपने #आराध्य की वाणी का #श्रवण कर जीवन को बनाया धन्य#
👉 -#साध्वीप्रमुखाजी की ममतामयी वाणी से लाभान्वित हुए श्रद्धालु#
👉 -#पूज्यप्रवर की सन्निधि में आरम्भ हुआ #जैनविद्या का 19 वां त्रिदिवसीय दीक्षांत समारोह#
👉 -जैन #विश्वभारती के पदाधिकारियों ने प्राप्त किया पूज्यप्रवर से आशीर्वाद#
दिनांक - 05-07-2017
📝 धर्म संघ की सटीक व तटस्थ जानकारी आप तक पहुचाए
*#तेरापंथ संघ संवाद*
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दिनांक 05-07-2017 राजारहाट, कोलकत्ता में पूज्य प्रवर के आज के प्रवचन का संक्षिप्त विडियो..
प्रस्तुति - अमृतवाणी
सम्प्रेषण -👇
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
👉 चेन्नई - तेयुप एवं महिला मण्डल की नवगठित टीम का "शपथग्रहण समारोह"
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 98* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*सन्त-श्रेष्ठ आचार्य श्याम के प्रभावक व्यक्तित्व*
वाचक परंपरा के आचार्य स्वाति के बाद श्यामाचार्य हुए। युगप्रधान पट्टावलीकारों ने आचार्य शाम को युगप्रधान माना है। युगप्रधानाचार्यों की श्रृंखला में श्यामाचार्य का क्रम बारहवां और वाचनाचार्यों की कड़ी में उनका क्रम तेरहवां है।
जैन परंपरा में चार कालकाचार्य हुए हैं। उनमें प्रस्तुत श्यामाचार्य को ही प्रथम कालक के रूप में पहचाना गया है।
वल्लभी युगप्रधान पट्टावली में युगप्रधान गुणसुंदर के बाद कालकाचार्य का नाम एवं *'दुस्सम-काल समण-संघत्थव'* युगप्रधान पट्टावली में गुणसुंदर के बाद युगप्रधान के रूप में श्यामाचार्य का नाम है। आचार्य गुणसुंदर के बाद एक युगप्रधान पट्टावली में कालक के नाम का उल्लेख और दूसरी युगप्रधान पट्टावली में श्याम नाम का उल्लेख श्यामाचार्य और कालकाचार्य की अभिनेता को प्रमाणित करता है।
*गुरु-परंपरा*
वाचनाचार्य क्रम में आचार्य महागिरि के शिष्य बलिस्सह के बाद आचार्य स्वाति और आचार्य स्वाति के बाद शाम हुए।
युगप्रधान पट्टावली में दशपूर्वधर आचार्य सुहस्ती के बाद युगप्रधान आचार्य गुणसुंदर और उनके बाद आचार्य शाम का उल्लेख है। युगप्रधान गुणसुंदर और श्यामाचार्य दोनों की गणना दशपूर्वधर आचार्यों में की गई है।
*जन्म एवं परिवार*
आचार्य शाम का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ। नंदी के उल्लेखानुसार वे हारित गोत्र के थे। उनका जन्म समय वी. नि. 280 (वि. पू. 190, ई. पू. 247) है। परिवार संबंधी अन्य सामग्री उपलब्ध नहीं है।
*जीवन-वृत्त*
संसार से विरक्त होकर श्यामाचार्य ने वी. नि. 300 (वि. पू. 170, ई. पू. 227) में श्रमण दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा ग्रहण के समय उनकी अवस्था 20 वर्ष की थी।
युगप्रधानाचार्य गुणसुंदर और वाचनाचार्य स्वाति के स्वर्गवास के बाद आचार्य श्याम ने वी. नि. 335 (वि. पू. 135, ई. पू. 192) में युगप्रधानाचार्य और वाचनाचार्य दोनों पदों का दायित्व एक साथ संभाला।
दोनों पदों पर श्यामाचार्य की नियुक्ति उनके प्रभावक व्यक्तित्व को सूचित करती है। आचार्य शाम की श्रुत साधना विशिष्ट थी। वे जैन सिद्धांतिक विषयों के सूक्ष्म व्याख्याकार थे। इतिहास में उनकी प्रसिद्धि निगोद व्याख्याता के रूप में है। एक बार महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी से सूक्ष्म निगोद की व्याख्या सौधर्मेंद्र ने सुनी और प्रश्न किया "भगवन्! क्या भरत क्षेत्र में निगोद संबंधी इस प्रकार की व्याख्या करने वाले कोई मुनि, उपाध्याय या आचार्य हैं?"
*सौधर्मेंद्र कि इस जिज्ञासा को सीमंधर स्वामी ने कैसे समाहित किया...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 98📝
*व्यवहार-बोध*
*एषणा*
लय- देव! तुम्हारे...
*12.*
जीने का उद्देश्य आत्महित,
साधन उसका यह तन है।
हो इसका समुचित संपोषण,
इसी दृष्टि से भोजन है।।
(दोहा)
*13.*
क्यों? कैसे? कितना? कहां?
कब भोजन करणीय?
भोजन-वेला में रहें,
ये बातें स्मरणीय।।
*6. क्यों? कैसे? कितना? कहां?*
साधु गोचरी में प्राप्त भिक्षा से भोजन करता है। भोजन के संदर्भ में पांच प्रश्न उपस्थित किए गए हैं– उन प्रश्नों को यहां उत्तरित किया जा रहा है—
🔹भोजन क्यों? साधु शरीरधारी प्राणी है। शरीर साधना में सहयोगी बनता है। उसको पोषण देना जरूरी है। उसके लिए भोजन करने का विधान है।
🔹भोजन कैसे? अनासक्त भाव से।
🔹भोजन कितना? भूख से कम।
🔹भोजन कहां? एकांत और प्रकाशयुक्त ऐसे स्थान में जहां छोटे-छोटे जीव-जंतुओं की विराधना का प्रसंग न हो।
🔹भोजन कब? सामान्यतः यह कहा जाता है कि भूख लगे, तब भोजन करना चाहिए। यह सिद्धांत ठीक है। आगम साहित्य में भिक्षा काल के विषय में यह निर्देश दिया है कि जिस प्रदेश में भिक्षा उपलब्ध होने का जो समय हो, वह साधुचर्या से प्रतिकूल न हो तो उसी काल में भिक्षा करनी चाहिए। भिक्षा और भोजन विधि के संबंध में दशवैकालिक सूत्र का पांचवां अध्ययन गहराई से पठनीय है।
*आवेशजनित परिस्थितियों में मौन का प्रयोग व्यक्ति के संतुलित रहने में कैसे निमित्त बनता है...?* जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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👉 विजयवाड़ा - ते.यु.प. का शपथ ग्रहण समारोह आयोजित
👉 बाड़मेर: समणी वृन्द का चतुर्मासिक "मंगल प्रवेश"
👉 मलाड, मुम्बई - महासभा अध्यक्ष की संगठन यात्रा
👉 इंदौर - GST जानकारी सम्बंधित सेमीनार का आयोजन
👉 चिकमगलूर - जीएसटी पर सेमिनार का आयोजन
👉 अहमदाबाद - साध्वीवृन्द का चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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News in Hindi
👉 सिरसा - साध्वी श्री चंद्रलेखा जी (लाडनूँ) की बैंकुठी यात्रा एवं अग्नि संस्कार
👉 पालघर - अभातेयुप प्रभारी संगठन यात्रा पर
👉 गांधीनगर, बैंगलोर: साध्वी वृन्द का चतुर्मासिक "मंगल प्रवेश"
👉 मोमासर: अणुव्रत समिति द्वारा आदर्श विद्या मंदिर, मोमासर में अणुव्रत पट्ट भेंट
👉 बिड - मुनि श्री जिनेश कुमार जी का चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
👉 तोशाम - साध्वी श्री सुप्रभा जी का चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
👉 कांटाबाजी - मुनि श्री अर्हत कुमार जी का चातुर्मासिक मंगल प्रवेश
👉 सूरत - तेरापंथ महिला मंडल का शपथ ग्रहण समारोह
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दिनांक 04-07-2017 राजारहाट, कोलकत्ता में पूज्य प्रवर के आज के प्रवचन का संक्षिप्त विडियो..
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📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
प्रकाशक - प्रेक्षा फाउंडेसन
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