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*आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
👉 *विषय - चैतन्य केंद्र व प्राप्तियां भाग 3*
👉 *खुद सुने व अन्यों को सुनायें*
*- Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482
संप्रेषक: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
👉 #गंगावती - वर्ग पहेली प्रतियोगिता का आयोजन
👉 #उधना - वरिष्ठ श्रावक सम्मेलन
👉 #तोशाम - रक्षाबंधन पर विशेष कार्यक्रम
#प्रस्तुति - 🌻 *#तेरापंथ #संघ #संवाद* 🌻
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👉 #कोयम्बत्तूर - "मोक्ष की सीढ़ी चंडकौशिक का डंक" कार्यक्रम आयोजित
👉 #लिलुआ - म.म. का शपथ ग्रहण समारोह
👉 #विजयनगरम - अंताक्षरी प्रतियोगिता आयोजित
👉 #ईरोड - पंचरंगी तप अनुष्ठान सम्पन्न
👉 #बारडोली - जैन संस्कार विधि से जन्मोत्सव कार्यक्रम
👉 #ईरोड - तप अभिनंदन समारोह आयोजित
👉 #शाहीबाग (अहमदाबाद) - स्वास्तिक आकार में सजोड़े जप अनुष्ठान
प्रस्तुति: 🌻 *#तेरापंथ #संघ #संवाद*🌻
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👉 बारडोली - नवकार मन्त्र जप बेनर का अनावरण
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News in Hindi
👉 आसींद - तप अभिनन्दन
प्रस्तुति - *तेरापंथ संघ संवाद*
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#जैनधर्म की #श्वेतांबर और #दिगंबर #परंपरा के #आचार्यों का #जीवन #वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के #प्रभावक #आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 121* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*क्षमाधर आचार्य खपुट*
गतांक से आगे...
जैन संघ ने भृगुपुर में दो गीतार्थ स्थविर मुनियों को आचार्य खपुट के पास भेजा। आचार्य खपुट ने समग्र स्थिति को समझा एवं प्रतिकारार्थ अपने विद्वान् शिष्य महेंद्र को वहां भेजा। राजा दहाड़ की सभा में ब्राह्मण पंडितों के सम्मुख मुनि महेंद्र द्वारा लाल एवं धवल कणेर के माध्यम से विद्या प्रयोग का प्रदर्शन कर राजा को झुका लिया। यह प्रयोग जैन संघ के हित में हुआ। राजा दहाड़ ने श्रमण वर्ग के लिए प्रदत्त कठोर आदेश हेतु मुनि महेंद्र से क्षमायाचना की। बार-बार राजा दहाड़ ने नम्र हो कर कहा *"क्षमस्वैकंव्यलीकं मे"*
*।।208।। (प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 35)*
इस घटना से जैन धर्म की महती प्रभावना हुई। राजा दहाड़ और ब्राह्मण प्रतिबोध को प्राप्त हुए।
कुछ समय के बाद शिष्य भुवन ने अपने गुरु के पास आकर स्वीकृत अविनय की क्षमायाचना की और श्रमण संघ में मिल गया। गुरु ने उसे योग्य समझकर बहुमान दिया। गुणवान, विनयवान, चरित्रवान, श्रुतवान बनकर भुवन ने संघ को आश्वस्त किया। आचार्य खपुट ने शिष्य भुवन को सूरिपद पर स्थापित कर अनशनपूर्वक स्वर्ग प्राप्त किया। आर्य कालक की भांति अनेक चामत्कारिक घटनाएं खपुटाचार्य के जीवन के साथ जुड़ी हुई हैं।
उनके चमत्कारिक प्रसंगों के आधार पर प्रभावक चरित्र आदि साहित्य में वे सर्वत्र विद्या सिद्ध आचार्य के रूप में विशेषित हैं। टीकाकार मलयगिरि ने उन्हें विद्या चक्रवर्ती का संबोधन देकर अतिशय विद्याओं पर उनका प्रबल आधिपत्य सूचित किया है।
*समय-संकेत*
खपुट के समय का उल्लेख प्रभावक चरित्र के विजयसिंहसूरि प्रबंध में इस प्रकार है
*श्रीवीरमुक्तित: शतचतुष्टये चतुरशीतिसंयुक्ते।*
*वर्षाणां समजायत श्रीमानाचार्य खपुटगुरुः।।79।।*
*(प्रभावक चरित्र, पृष्ठ 43)*
प्रभावक चरित्र के उक्त उल्लेखानुसार आचार्य खपुट का समय वी. नि. 484 (विक्रम संवत 14, ई. पू. 43) है।
*नयनानंद आचार्य नंदिल और आचार्य नागहस्ती के प्रभावक चरित्र* पढ़ेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻#तेरापंथ #संघ #संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 121📝
*व्यवहार-बोध*
*समय प्रबंधन*
*(सोरठा)*
*55.*
'दसवेआलिय' सीख, क्यों अकालचारी बनें।
हो समयांकन ठीक, 'काले कालं समायरे'।।
*56.*
जब भी जो करणीय, नियत काम नियमित करें।
वैयक्तिक संघीय, उदाहरण मुनिवर-द्वय।।
*30. जब भी जो करणीय...*
समय नियोजन का एक सूत्र है अप्रमाद और दूसरों सूत्र है नियमितता। जिस समय जो काम करना है, उसको उसी समय करना। इस दृष्टि से वर्तमान के अनेक साधु-साध्वियों को उपस्थित किया जा सकता है। पर उदाहरण के रूप में अतीत के केवल दो मुनियों का उल्लेख यहां किया जाता है—
*(क)* मुनि जीत (जयाचार्य)
*(ख)* मुनि भीमराजजी (आमेट)
*(क)* मुनि जीत सहज रुप में प्रतिभासंपन्न साधु थे। बहुत छोटी अवस्था में उन्होंने अपनी ज्ञान-चेतना और सृजन-चेतना को निखार लिया। वे बहुत वर्षों तक मुनि हेमराजजी (सिरियारी) के साथ रहे। उन्हें वे अपना विद्यागुरु मानते थे। उनमें एक विद्यागुरु की सारी विशेषताएं थीं। वे मुनि जीत को पढ़ाने के साथ समय-समय पर शिक्षा भी देते थे। एक दिन उन्होंने कहा— 'जिस समय जो काम करना हो, उसे उसी समय करने का लक्ष्य रखना चाहिए।' यह सीख मुनि जीत के मन में रम गई। उन्होंने अपनी दिनचर्या के प्रमुख
-प्रमुख कामों के लिए समय का निर्धारण कर लिया।
मुनि जीत लिखने का काम करते। लिखते-लिखते अपराह्न का समय होने पर मुनि हेमराजजी के पंचमी समिति जाने का शब्द हो जाता। मुनि जीत की दिनचर्या का एक काम था– पंचमी समिति मुनि हेमराजजी के साथ जाना। शब्द होने के बाद वे तत्काल लिखना बंद कर देते। किसी शब्द के मात्रा लगाना या लाइन खींचना बाकी होता, उसे भी वे पूरा नहीं करते। उसे दूसरे दिन के लिए छोड़ देते। ऐसा एक-दो बार नहीं, अनेक बार हुआ। यह समय की नियमितता का अनूठा उदाहरण है। यदि वे समय के पाबंद नहीं होते तो *'भगवती जोड़'* जैसे विशालकाय ग्रंथ की रचना पांच वर्षों में कैसे कर पाते है।
*(ख)* मुनि भीमराजजी (आमेट) को मैंने (ग्रंथकार आचार्यश्री तुलसी) अपनी आंखों से देखा था। उनकी दिनचर्या बहुत नियमित थी। उनका शयन, जागरण, स्वाध्याय, आहार आदि सब काम व्यवस्थित व समय पर होते थे। व्यक्तिगत या संघीय किसी भी काम में समय का अतिक्रमण उन्हें पसंद नहीं था। उनके बारे में विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें हमारी *"सम्बोध"* की पोस्ट *श्रृंखला - 44*।
*जीवन की एक कला है समयनियोजन* इसे समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻#तेरापंथ #संघ #संवाद🌻
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 121📝
*व्यवहार-बोध*
*समय प्रबंधन*
*(सोरठा)*
*55.*
'दसवेआलिय' सीख, क्यों अकालचारी बनें।
हो समयांकन ठीक, 'काले कालं समायरे'।।
*56.*
जब भी जो करणीय, नियत काम नियमित करें।
वैयक्तिक संघीय, उदाहरण मुनिवर-द्वय।।
*30. जब भी जो करणीय...*
समय नियोजन का एक सूत्र है अप्रमाद और दूसरों सूत्र है नियमितता। जिस समय जो काम करना है, उसको उसी समय करना। इस दृष्टि से वर्तमान के अनेक साधु-साध्वियों को उपस्थित किया जा सकता है। पर उदाहरण के रूप में अतीत के केवल दो मुनियों का उल्लेख यहां किया जाता है—
*(क)* मुनि जीत (जयाचार्य)
*(ख)* मुनि भीमराजजी (आमेट)
*(क)* मुनि जीत सहज रुप में प्रतिभासंपन्न साधु थे। बहुत छोटी अवस्था में उन्होंने अपनी ज्ञान-चेतना और सृजन-चेतना को निखार लिया। वे बहुत वर्षों तक मुनि हेमराजजी (सिरियारी) के साथ रहे। उन्हें वे अपना विद्यागुरु मानते थे। उनमें एक विद्यागुरु की सारी विशेषताएं थीं। वे मुनि जीत को पढ़ाने के साथ समय-समय पर शिक्षा भी देते थे। एक दिन उन्होंने कहा— 'जिस समय जो काम करना हो, उसे उसी समय करने का लक्ष्य रखना चाहिए।' यह सीख मुनि जीत के मन में रम गई। उन्होंने अपनी दिनचर्या के प्रमुख
-प्रमुख कामों के लिए समय का निर्धारण कर लिया।
मुनि जीत लिखने का काम करते। लिखते-लिखते अपराह्न का समय होने पर मुनि हेमराजजी के पंचमी समिति जाने का शब्द हो जाता। मुनि जीत की दिनचर्या का एक काम था– पंचमी समिति मुनि हेमराजजी के साथ जाना। शब्द होने के बाद वे तत्काल लिखना बंद कर देते। किसी शब्द के मात्रा लगाना या लाइन खींचना बाकी होता, उसे भी वे पूरा नहीं करते। उसे दूसरे दिन के लिए छोड़ देते। ऐसा एक-दो बार नहीं, अनेक बार हुआ। यह समय की नियमितता का अनूठा उदाहरण है। यदि वे समय के पाबंद नहीं होते तो *'भगवती जोड़'* जैसे विशालकाय ग्रंथ की रचना पांच वर्षों में कैसे कर पाते है।
*(ख)* मुनि भीमराजजी (आमेट) को मैंने (ग्रंथकार आचार्यश्री तुलसी) अपनी आंखों से देखा था। उनकी दिनचर्या बहुत नियमित थी। उनका शयन, जागरण, स्वाध्याय, आहार आदि सब काम व्यवस्थित व समय पर होते थे। व्यक्तिगत या संघीय किसी भी काम में समय का अतिक्रमण उन्हें पसंद नहीं था। उनके बारे में विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें हमारी *"सम्बोध"* की पोस्ट *श्रृंखला - 44*।
*जीवन की एक कला है समयनियोजन* इसे समझेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*#प्रेक्षाध्यान #जिज्ञासा #समाधान #श्रृंखला*
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08 अगस्त का संकल्प
*तिथि:- भादवा कृष्णा एकम्*
अरहंत-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय-शुद्ध साधु हैं तरण तारण ।
नहीं रहता शेष कुछ भी पाना जो करता इनको मन में धारण ।।
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