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*08/02/18* दक्षिण भारत मे मुनि वृन्द, साध्वी वृन्द का सम्भावित विहार/ प्रवास
दर्शन सेवा का लाभ ले
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी* *के आज्ञानुवर्ति मुनिश्री सुव्रत कुमार जी ठाणा* 2 का प्रवास
*तेरापंथ भवन*
*के.वी. कुप्पम*
गुडियातम-वैलुर रोड
☎9003789485
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*संघ संवाद* + *संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के आज्ञानुवर्ती मुनि श्री रणजीत कुमार जी ठाणा २* का प्रवास
*किरण जी सुखलेचा*
मंजुनाथ बडावनी
बी. एम. रोड
आंजणेया स्वामी मन्दिर के सामने
*Hunsur* (कर्नाटक)
☎9448385582
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य*
*मुनि श्री ज्ञानेन्द्र कुमार जी ठाणा 3* का प्रवास
*महावीर भवन*
*विलिपुरम*
☎8107033307
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य डॉ *मुनि श्री अमृत कुमार जी ठाणा २ का प्रवास*
*महावीर भवन*
*विलिपुरम*
☎9566296874
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री प्रशान्त कुमार जी ठाणा २* का प्रवास
*Sree Agastiya Temple*
No ER -391/91
Pudiyagoan
Tirupunitra(केरला) ☎9672039432,7907269421
9246998909
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी के सुशिष्य मुनि श्री सुधाकर जी एवं मुनि श्री दीप कुमार जी का प्रवास*
*HEBBALU SCHOOL*
(कर्नाटक)
हुबली - बैगलौर हाईवे
☎7821050720,9558651374
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री विद्यावती जी 'द्वितिय' ठाणा ५* का प्रवास
*M.T.V. SCHOOL*
*मल्लीनायकहल्ली*
बैगलोर - चेन्नई रोड
☎8890788494,9845353039
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या "शासन श्री" साध्वी श्री यशोमती जी ठाणा 4* का प्रवास
*कतीपुडी घर्मशाला से 11 km का विहार करके घर्मावरम् HP पेट्रोल पम्प पर पधारेगे*
विशाखापट्नम् - चेन्नैइ रोड
☎7297958479,9025434777
7044937375
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या 'शासन श्री' साध्वी श्री कंचनप्रभा जी ठाणा 6* का प्रवास
*अर्हम भवन विजयनगर बैगलौर*
(कर्नाटक)
☎7624946879,
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री काव्यलता जी ठाणा 4* का प्रवास
*North town*
*Chennai* (तमिलनाडु)
☎9884901680,
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*संघ संवाद*+ *संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिस्या साध्वी श्री प्रज्ञाश्री जी ठाणा 4 का प्रवास*
*THIRUVANTHAPURAM* *से कोलम के रास्ते मे 13 km पर* (केरला)
☎8875762662
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*संघ संवाद+ संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिस्या साध्वी श्री सुर्दशना श्री जी ठाणा 4 का प्रवास*
*संगलकल से 10 km का विहार करके मोका पधारेगे*
बेलारी- रायचुर रोड
☎9845123211
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*संघ संवाद+संघ संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री लब्धि श्री जी ठाणा 3 का प्रवास*
*ओलेनरसिहपुरा से11km का विहार करेके आरेहल्ली पधारेगे*
हासन - मैसुर रोड
☎9601420513,
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*संध संवाद*+ *संध संवाद*
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*आचार्य श्री महाश्रमण जी की सुशिष्या साध्वी श्री मघुस्मिता जी ठाणा 6* का प्रवास *तेरापंथ सभा भवन गॉधीनगर बैगलौर* (कर्नाटक)
☎7798028703
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प्रस्तुति:- 🌻 *संघ संवाद* 🌻
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Sangh Samvad
News, photos, posts, columns, blogs, audio, videos, magazines, bulletins etc.. regarding Jainism and it's reformist fast developing sect. - "Terapanth".
News in Hindi
🛡 ❄ *अणुव्रत* ❄ 🛡
💎 *संपादक* 💎
*श्री अशोक संचेती*
☄ *फरवरी अंक* ☄
‼पढिये‼
*पाथेय*
स्तम्भ के अंतर्गत
*आत्म-चिंतन*
एवं
*सह-अस्तित्व*
पर
विशेष सामग्री❗
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👉 बलांगीर - समणीवृंद के आध्यात्मिक मिलन समारोह का कार्यक्रम
👉 जलगांव - जैन संस्कार विधि से सामूहिक जन्मोत्सव
👉केलवा - प्लास्टिक फ्री दिवस
👉फारविसगंज - वर्ल्ड कैंसर डे पर कार्यक्रम का आयोजन
👉बेंगलुरु (गांधीनगर)- तेरापंथ महिला मंडल द्वारा प्लास्टिक फ्री सप्ताह का आयोजन
प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद*🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।
📙 *'नींव के पत्थर'* 📙
📝 *श्रंखला -- 77* 📝
*शोभाचंदजी बैंगानी (प्रथम)*
*पूर्व पुरुष*
बीदासर में बैंगानियों का निवास काफी प्राचीनकाल से है। उनके पूर्वज पहले मेड़ता फिर नागौर और उसके पश्चात् डीडवाना में बसे। कालांतर में हिम्मतसिंहजी बैंगानी डीडवाना से उठकर संवत् 1638 में बीदासर में आकर बसे। वे राजपूत वृत्ति के अत्यंत साहसी व्यक्ति थे। तत्कालीन ठाकुर के साथ उनकी अच्छी मित्रता थी। एक बार राठा लोग डाकुओं की तरह आए और गांव की गायों को घेर कर ले गए। ठाकुर को पता लगा तो वे सज्ज होकर राठों का पीछा करने के लिए जाने को उद्यत हुए। हिम्मतसिंहजी ने उनसे कहा— "आप अभी नव-विवाहित हैं। आपके कोई संतान भी नहीं है। यदि कहीं अघटित घट गया तो फिर गांव की रक्षा कौन करेगा? मैंने संसार को देखा है। मेरे पांच पुत्र हैं। मैं यदि मारा भी जाऊं तो कोई चिंता की बात नहीं है। आप यहां रहिए और शत्रुओं से निपटने का अवसर मुझे दीजिए।" ठाकुर ने उनकी बात मान ली। सैनिकों को लेकर हिम्मतसिंहजी ने राठों का पीछा किया। युद्ध में दोनों ही पक्षों के व्यक्ति आहत हुए तथा मारे गए। हिम्मतसिंहजी भी उसमें काम आए। वे 'जुझार' होकर इतने भयंकर लड़े कि राठा लोगों के छक्के छूट गए। राठा भाग गए। गाय छुड़ा ली गईं। हिम्मतसिंहजी का धड़ जहां गिरा, वहां शमशान भूमि के पास आज भी उनकी स्मृति में चबूतरा बना हुआ है।
*प्रथम श्रावक*
शोभाचंदजी बैंगानी हिम्मतसिंहजी के वंशजों में से ही थे। वे अपने पूर्वजों के समान ही निर्भय और दबंग व्यक्ति थे। ओसवाल समाज के तो एक आदरणीय और सर्वमान्य व्यक्ति थे ही, अपितु पूरे इलाके के सभी समाजों में उनको आदर की दृष्टि से देखा जाता था। उनका जीवन-काल संवत् 1840 से 1920 तक का था। उस युग में आक्रमण तथा लूट आदि का भय अधिक रहता था, अतः निवास स्थान बनाते समय लोग सुरक्षा की दृष्टि को प्रमुखता दिया करते थे। बैंगानी परिवार ने बीदासर में काफी बड़े क्षेत्र को घेरकर एक मुहल्ला बनाया। उसमें प्रवेश और निर्वेश के लिए मुख्य द्वार एक ही था, जो कि प्रतोली के रूप में सुदृढ़ बनाया गया था। स्थानीय बोली में उसे 'पोल' कहा जाता है। 'पोल' के फाटक बंद कर देने के पश्चात् सारा मोहल्ला पूर्ण सुरक्षित हो जाता। प्रतोली के अर्थ में प्रयुक्त 'पोल' शब्द बाद में पूरे मोहल्ले का बोधक हो गया। कालांतर में वैसी ही एक 'पोल' और बसाई गई। सबसे पहले वाली को 'पुरानी पोल' और दूसरी को 'नई पोल' कहा जाने लगा। शोभाचंदजी का निवास स्थान 'नई पोल' में था।
थली में तेरापंथ को लाने में शोभाचंदजी तथा उनके साथियों का श्रम प्रमुख था। उन्हें थली का प्रथम श्रावक ही नहीं, अपितु प्रथम कोटि का श्रावक भी कहा जा सकता है। यों तो थली में संवत् 1836 में स्वयं स्वामीजी का पदार्पण हो चुका था। वे चुरू तक गए थे। वहां बांठिया तथा पारख परिवार के कुछ व्यक्ति समझे भी थे। सरूपां नामक एक बहन ने गुरु धारणा भी की थी। परंतु स्वामीजी का वह पदार्पण धर्म प्रसार के ध्येय से नहीं किंतु टालोकर मुनि तिलोकचंदजी और मुनि चंद्रभानजी द्वारा भ्रांत बना दिए गए मुनि संतोषजी और मुनि शिवजी को प्रतिबोध देने के लिए हुआ था। कुछ दिन ठहर कर वे मारवाड़ की ओर वापस चले गए। फिर लंबे समय तक किसी अन्य सिंघाड़े का उधर आगमन नहीं हो पाया।
*श्रावक शोभाचंदजी थली में तेरापंथ को कैसे लाए...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 253* 📝
*भवार्णव पारगामी आचार्य भद्रबाहु-द्वितीय*
*(निर्युक्तिकार)*
*साहित्य*
गतांक से आगे...
आचार्य भद्रबाहु की उपलब्ध निर्युक्तियों का परिचय इस प्रकार है—
*आवश्यक निर्युक्ति* आचार्य भद्रबाहु की इस निर्युक्ति के प्रारंभ में आवश्यक आदि 10 निर्युक्तियों का उल्लेख है। आवश्यक सूत्र में छह आवश्यक हैं। उनका पद्यबद्ध विस्तृत विवेचन इस निर्युक्ति में है। विषय सामग्री की दृष्टि से यह निर्युक्ति अन्य निर्युक्तियों की अपेक्षा अधिक समृद्ध है। इस निर्युक्ति में जैन शास्त्र सम्मत तिरेसठ शलाका पुरुषों का पूर्वभव सहित जीवन चरित्र तथा उनके माता-पिता से संबंधित सामग्री भी इसमें है। इसमें आर्य महागिरि, सुहस्ती आदि आचार्यों का शालिवाहन आदि राजाओं का तथा निह्नवों का विस्तृत वर्णन भी है।
कालिक-उत्कालिक सूत्रों में भेद-प्रभेदों के आधार पर इस निर्युक्ति की रचना नन्दी के बाद भी संभव है। आवश्यक निर्युक्ति के प्रारंभ में 880 गाथाओं का विस्तृत उपोद्घात है, जो एक स्वतंत्र ग्रंथ जैसा लगता है। आगम की अन्य निर्युक्तियों में समागत कई विषयों को विस्तार से समझने के लिए आवश्यक निर्युक्ति का अध्ययन आवश्यक है।
*दशवैकालिक निर्युक्ति* इसके 371 पद्य हैं। धर्म, मंगल आदि अनेक पदों की इसमें निक्षेप पूर्वक व्याख्या है एवं विविध प्रकार के शिक्षात्मक सूत्र हैं। लौकिक एवं लोकोत्तर दोनों प्रकार की कथाओं का वर्णन इसमें उपलब्ध है। कई कथाओं के संकेत मात्र है जिन्हें समझने के लिए चूर्णि और टीकाओं का अध्ययन आवश्यक हो जाता है। यह संक्षिप्त निर्युक्ति विविध प्रकार की सामग्री से परिपूर्ण है।
*उत्तराध्ययन निर्युक्ति* इस निर्युक्ति की 603 गाथाएं हैं। विविध विषयक सामग्री प्रस्तुत करती हुई यह निर्युक्ति पाठक के लिए विशेष उपयोगी है। स्थूलभद्र, कालक आदि विशिष्ट पुरुषों के ऐतिहासिक संदर्भ, भद्रबाहु के चार विशिष्ट अभिग्रहधारी शिष्यों का उल्लेख इस निर्युक्ति में है। शान्त्याचार्य ने उत्तराध्ययन-निर्युक्ति गाथाओं पर टीका रची है। इस निर्युक्ति की कई गाथाएं भावपूर्ण और शिक्षात्मक है। इसकी एक गाथा है
*राईसरिसवमित्ताणी परछिद्दाणी पाससि।*
*अप्पणो बिल्लमित्ताणि पासन्तोऽवि न पाससि।।*
*आचारांग निर्युक्ति* आचारांग के दो श्रुतस्कंध हैं। भद्रबाहु ने दोनों पर निर्युक्ति रचना की है। इस निर्युक्ति की लगभग 348 गाथाएं हैं। इस निर्युक्ति की निम्नोक्त गाथाएं सुप्रसिद्ध हैं—
*अंगाणं किं सारो? आयारो, तस्स हवइ किं सारो?*
*अणुओगत्थो सारो, तस्सवि य परूवणा सारो।।*
*सारो परूवणाए चरणं, तस्सवि य होइ निव्वाणं।*
*निव्वाणस्स सारो, अव्वाबाहं जिणा बिंति।।*
अंगों का सार आचार की प्ररूपणा, प्ररूपणा का सार चरित्र, चरित्र का सार निर्वाण और निर्वाण का सार अव्याबाध सुख है। प्रस्तुत निर्युक्ति की रचना उत्तराध्ययन निर्युक्ति के बाद हुई है। इस निर्युक्ति में रोचक कथाएं भी हैं। आगम के महत्त्वपूर्ण शब्दों की व्याख्या निक्षेप पद्धति के आधार पर की गई है।
निर्युक्तिकार ने द्वितीय श्रुतस्कंध की पंचम चूलिका पर बाद में निर्युक्ति रचना करने का उल्लेख किया है।
*आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) की अन्य निर्युक्तियों का परिचय एवं उनके आचार्य काल के समय-संकेत* के बारे में जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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👉 *"अहिंसा यात्रा"* के बढ़ते कदम
👉 पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ विहार करके "हैंडपा" पधारेंगे
👉 आज का प्रवास - महानदी हाइस्कूल, हैंडपा, जिला - अंगुल (ओड़िशा)
प्रस्तुति - *संघ संवाद*
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